किसलिए मनाया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए जितिया व्रत की तिथि, पूजा मुहूर्त और खास महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत इसलिए है बेहद खास
महिलाओं के कठिन व्रतों में से है एक
बच्चों की सलामती के लिए रखा जाता है व्रत
जीवित्पुत्रिका व्रत बेहद महत्वपूर्ण और कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत में माताएं अपनी संतानों की सलामती व अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए पूरे दिन और पूरी रात निर्जला उपवास रखती हैं। इसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं भगवान जीमूतवाहन की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस बार जितिया व्रत 25 सितंबर 2024 यानी बुधवार के दिन रखा जाएगा। लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इस व्रत की शुरुआत कैसे हुई और इस व्रत को क्यों रखा जाता है। आइए जानते हैं कि जितिया व्रत का इतिहास और महत्व। साथ ही जानेंगे कि इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या है और इस व्रत में किस भगवान की पूजा की जाती है।
अष्टमी तिथि कब से कब तक
इस बार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12:38 बजे पर प्रारंभ होगी और 25 सितंबर 2024 को दोपहर 12:10 बजे समाप्त होगी। इसलिए उदया तिथि के आधार पर इस साल जितिया व्रत 25 सितंबर 2024 यानी बुधवार के दिन रखा जाएगा।
जितिया व्रत के दिन शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:35 से सुबह 05:22 तक।
अमृत काल- 12:11 पी एम से 01:49 पी एम तक।
प्रातः सन्ध्या - सुबह 04:59 बजे से सुबह 06:10 बजे तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 02:12 बजे से दोपहर 03:00 बजे तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:13 से शाम 06:37 बजे तक।
सायाइ सन्ध्या- शाम 06:13 बजे से शाम 07:25 बजे तक।
पूजन का शुभ मुहूर्त
जितिया व्रत में भी छठ पूजा की तरह नहाय-खाय और खरना की परंपरा है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड व उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में ही मनाया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन का समय शाम के चौघड़िया शुभ मुहूर्त यानी शाम 04 बजकर 43 मिनट से शाम 06 बजकर 13 मिनट तक रहेगा।
क्यों मनाया जाता है जितिया व्रत
इस व्रत की शुरुआत के बारे में बात करें तो भविष्य पुराण के अनुसार, शिव जी ने माता पार्वती से कहा कि जो माताएं अपनी संतान की भलाई के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं, उनकी संतान के जीवन में कभी संकट नहीं आते हैं। सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। साथ ही संतान का वियोग का कष्ट भी नहीं मिलता है। तब से ही संतान की सलामती के लिए जितिया व्रत रखा जाता है।
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