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आखिर भगवान शिव के मस्तक पर क्यों विराजते हैं चंद्रमा? इसके पीछे छिपी है रोचक कथा

देवो के देव महादेव जिन्हें भोलेनाथ के नाम से भी पूजा जाता है और इनकी कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ऐसे भगवान हैं जिन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है
 
भोलेनाथ की कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट हो जाते हैं दूर

देवो के देव महादेव जिन्हें भोलेनाथ के नाम से भी पूजा जाता है और इनकी कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ऐसे भगवान हैं जिन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, और जब वह अपने किसी भक्त से प्रसन्न होते हैं और उसके जीवन में हर रही सभी परेशानियों को दूर कर देते हैं।

 हिंदू धर्म में जहां अन्य देवी-देवता सोने के आभूषणों में दिखाया गया है, वहीं भगवान शिव के गले में सांपों की माला, सिर पर गंगा और मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है। भोलेनाथ के शरीर पर भस्म लगी होती है. ये सभी चीजें इन्हें सभी देवी—देवताओं से अलग दर्शाती हैं। लेकिन कई बार लोगों के मन में यह सवाल जरूर आता होगा कि आखिर भगवान शिव के मस्तक पर चंद्र देवता यानि चंद्रमा क्यों विराजमान हैं? आइये जानते है कि भगवान शिव के मस्तक पर चंद्र देवता यानि चंद्रमा क्यों विराजमान हैं ।


इसलिए भोलेनाथ के मस्तक पर विराजते हैं चंद्रमा..


शिव पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो सभी देव व असुर परेशान हो गए कि इसका क्या किया जाए। ऐसे में सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने विष पिया जो कि उनके कंठ में जमा हो गया। इसी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं। ​विष के प्रभाव से उनका शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा, जिसे देखकर देवी-देवता परेशान हो गए कि आखिर भोलेनाथ को विष की गर्मी से किस प्रकार राहत दिलाई जाए। उस समय सभी ने चंद्र देवता से प्रार्थना की वह भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हो जाएं ताकि उनकी शीतलता के प्रभाव से विष की गर्मी को शांत किया जा सके। चंद्रमा बेहद ही शीतल होता है और सृष्टि को शीतलता प्रदान करता है। इसलिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है।

दूसरी पौराणिक कथा…


भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा के विराजमान होने से जुड़ी एक अन्य पौ​राणिक कथा भी है। जिसके अनुसार राजा दक्ष के 27 पुत्रियां थीं और उन्होंने सभी का विवाह चंद्रमा से किया। साथ ही यह भी शर्त रखी कि चंद्रमा अपनी सभी 27 पत्नियों के साथ एक जैसा व्यवहार करेंगे। लेकिन चंद्रमा रोहिणी के सबसे करीब थे और अन्य कन्याओं ने दुखी होकर अपने पिता राजा दक्ष से शिकायत की। जिसके बाद दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया और इससे वह क्षय रोग से ग्रसित हो गए। साथ ही उनकी सभी कलाएं भी खत्म हो गईं। ऐसे में नारद मुनि ने चंद्रमा से भगवान ​शिव की अराधना करने को कहा। चंद्रमा ने भोलेनाथ की अराधना की और वह प्रसन्न हो गए। जिसके बाद चंद्रमा के रोग दूर हुए और वह पूर्णमासी के दिन अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए। तब चंद्रमा ने भगवान शिव से प्रार्थना की वह उन्हें अपने मस्तक पर धारण कर लें। तभी से चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं।

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