जानें आखिर किसने, कब और किसे बांधी थी पहली राखी, भाई से पहले इन 5 देवताओं को बांधेंगे रक्षा सूत्र तो होगा लाभ
भाई-बहन का पावन पर्व रक्षाबंधन सावन माह की पूर्णिमा को पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। यह एक ऐसा पर्व है जिसका भाई और बहन दोनों को इंतजार होता है। इस दिन बहनें अपने भाी की कलाई पर राखी जिसे रक्षासूत्र कहते हैं, बांधकर भगवान से उसकी लंबी उम्र, आरोग्य व सुख-संपत्ति का वरदान मांगती है।
भाई-बहन का पावन पर्व रक्षाबंधन सावन माह की पूर्णिमा को पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। यह एक ऐसा पर्व है जिसका भाई और बहन दोनों को इंतजार होता है। इस दिन बहनें अपने भाी की कलाई पर राखी जिसे रक्षासूत्र कहते हैं, बांधकर भगवान से उसकी लंबी उम्र, आरोग्य व सुख-संपत्ति का वरदान मांगती है।
वहीं माना जाता है कि रक्षासूत्र बांधने से भाई की रक्षा होती है। इस बार रक्षाबंधन का पर्व 22 अगस्त 2021 रविवार को मनाया जाएगा। इस बार खास बात यह है कि बहनें दिन भर अपने भाई को राखी बांध सकेंगी क्योंकि भद्रा का अशुभ साया नहीं रहेगा। वहीं राहुकाल भी शाम में 5.15 को लगेगा जिसके पहले ही राखी बांधना शुभ होगा।
अब यहां सवाल यह उठता है कि आखिर राखी बांधने की ये परंपरा कब से शुरू हुई, किसने पहली बार किसको राखी बांधी ? आइये राखी के त्यौहार पर जानते हैं कि कैसे हुई इस परंपरा की शुरुआत ......
शची ने इंद्र को बांधा था रक्षासूत्र
रक्षाबंधन को लेकर सबसे पहली कथा तो यहै कि वृत्तासुर से युद्ध करने जब इंद्र जा रहे थे तो उनकी पत्नी शची ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा और रक्षा के लिए प्रार्थना की। तब से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा और रक्षा के लिए सूत्र बांधा जाने लगा। पर माता लक्ष्मी का संबंध जब इस रक्षासूत्र से जुड़ गया तो ये भाई-बहन का पावन पर्व बन गया।
मां लक्ष्मी से जुड़ी है ये पावन कथा
मां लक्ष्मी को जाता है रक्षाबंधन मनाने का श्रेय क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले महाराज बली को अपना भाई बनाकर उनकी कलाई में रक्षासूत्र बांधा था। स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज बली से तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया तब राजा बली ने भी वर के रूप में भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।
भगवान विष्णु को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था परंतु वे बली को वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली के पास रहने लगे। दूसरी ओर जब श्री हरि माता लक्ष्मी के पास नहीं लौटे तो वे चिंतित हो गई। तब नारदजी ने उन्हें बताया कि भगवान विष्णु तो बली के यहां रह रहे है औ उसके वचन से बंधे हैं।
तब माता लक्ष्मी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि कैसे श्री हरि को वहां से निकाला जाए क्योंकि वचन तो भगवान उनके कहने पर भी नहीं तोड़ सकते। ऐसे में नारदजी ने उन्हें ऐसा उपाय बताया जिससे भगवान विष्णु बलि के चंगुल से छूट गए।
नारदजी ने मां लक्ष्मी से कहा कि वे राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधें और उनसे भगवान विष्णु को छोड़ने का वचन ले ले।
नारदजी के बताए अनुसार माता लक्ष्मी ने एक साधारण महिला का रूप धरा और रोते हुए पहुंच गई राजा बलि के दरबार में। राजा बलि ने महिला से रोने का कारण पूछा। तब माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं और मुझे कोई बहन नहीं बनाना चाहता क्या करूं महाराज।
महिला की व्यथा सुनकर राजा बलि ने उन्हें अपनी धर्म बहन बनने का प्रस्ताव रखा। तब साधारण महिला के रूप में माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और वचन लिया कि बहन की रक्षा करोगे और उसे दक्षिणा भी दोगे।
राजा बालि ने वचन दे दिया। तब माता लक्ष्मी ने असली रूप में आकर कहा कि यदि आपने मुझे अपनी बहन माना है तो दक्षिणा के रूप में आप मुझे मरे पति को लौटा दें।
इस प्रकार माता लक्ष्मी ने बलि को अपना भाई बनाया और श्रीहरि को भी वचन से मुक्ति कराकर अपने साथ ले गई। जिस दिन यह घटना घटी थी उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। इतना ही नहीं तबसे रक्षा बंधन पर महाराज बली की कथा सुनने का प्रचलन भी बन गया जो आज तक चला आ रहा है।
भाई से पहले इन देवताओं को बांधें राखी
यह तो हम जानते ही हैं कि राखी के इस पावन पर्व पर बहनें भाई को राखी बांधती है पर यह रक्षासूत्र बहनों को भाई से पहले इन देवताओं को बांधना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से न सिर्फ हमारे भाई की रक्षा होती है बल्कि परिवार की भी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं और भाई व बहन दोनों को शुभ फल मिलता है।
अब सवाल यह उठता है कि किन-किन देवताओं को राखी बांधनी चाहिए जिससे कि हमें शुभ फल मिल सके। तो आइये यहां यही जानते हैं ...........
-सबसे पहले तो हमें भगवान गणेश की पूजा करके उनको राखी बांधनी चाहिए क्योंकि हर शुभ काम में, हर पूजा में सबसे पहले उन्हीं की पूजा होती है। वे प्रथम पूज्य है तो उनको राखी बांधने से बहनों को मनचाहा फल मिलता है और साथ ही उनके भाई के कष्ट भी दूर होते हैं। भगवान गणपति की बहनें हों अशोक सुंदरी, मनसा देवी और ज्योति।
-गणेश जी के बाद दूसरी राखी भोलेनाथ को बांधनी चाहिए क्योंकि रक्षाबंधन का ये पावन पर्व सावन के महीने में यानी श्रावन पूर्णिमा को मनाते हैं और सावन का महीना शिवजी को समर्पित है। प्रचलित मान्यता अनुसार कहते हैं कि भगवान शिव की बहन असावरी देवी थीं।
-तीसरी राखी हनुमानजी को बांधनी चाहिए क्योंकि बजरंगबली शिवजी के रुद्रावतार हैं। कहते हैं कि जब देवता सो जाते हैं तो भगवान शिव भी ध्यान में लीन हो जाते हैं ऐसे में हनुमानजी ही रुद्रावतार के रूप में सृष्टि का संचालन करते हैं। वे जागृत देवता हैं और सभी संकटों से बचने के लिए हनुमानजी को राखी बांधी जाती है।
-भगवान श्रीकृष्ण को चौथी राखी बांधी जाती है। इस विषय में महाभारत की एक कथा के अनुसार जब कान्हा ने शिशुपाल का वध किया तो उसके बाद जब फिर से सुदर्शन चक्र उनके हाथ में आया तो उनकी अंगुली को चोट लगी और खून बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी चोट पर बांध दिया। ऐसा करने पर श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया था कि जब उसे मदद की जरूरत होगी तो वे आकर उसकी रक्षा करेंगे।
वहीं यह भी कहते हैं कि जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों से कैसे पार पा सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। श्रावण माह में श्रीकृष्ण की पूजा का भी खास महत्व है क्योंकि भादो में उनका जन्म हुआ था तो एक माह पूर्व से ही ब्रजमंडल में उनके जन्मोत्सव की धूम रहती हैं
-पांचवी राखी नाग देवता को बांधी जाती है। मनसा देवी के भाई वासुकि नाग सहित सभी नागों की नागपंचमी के दिन पूजा होती है और महिलाएं उन्हें भाई मानकर अपने परिवार की रक्षा का जिम्मा सौंपती है। इसीलिए राखी भी उन्हें चढ़ाने की परंपरा बन गई है। नाग देव सभी तरह के सर्प योग और भय से मुक्त करते हैं।
इसके अलावा आप अपने कुल देवता और इष्टदेव को भी राखी चढ़ा सकते हैं। इन सब देवताओं को राखी बांधकर या चढ़ाकर ही अपने भाई को राखी बांधनी चाहिए। ऐसा करने से आपके साथ ही आपके भाई को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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