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मोक्षदा एकादशी : जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। मोक्ष की प्रार्थना के लिए यह एकादशी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती एक दिन ही पड़ती है। 
 

मोक्षदा एकादशी : जानिए तिथि

शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिन्दु पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की 11वीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित एक दिन माना जाता है। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी आती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की। इस प्रकार, एक वर्ष में कम से कम 24 एकादशी हो सकती हैं, लेकिन अधिक मास (अतिरिक्त महीने) के मामले में यह संख्या 26 भी हो सकती है।


मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। मोक्ष की प्रार्थना के लिए यह एकादशी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती एक दिन ही पड़ती है। इस दिन भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। 

Mokshada Ekadashi


माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने और भगवान कृष्ण की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और पूर्वजों को स्वर्ग तक पहुंचने में मदद मिलती है। मोक्षदा एकादशी की तुलना मणि चिंतामणि से की जाती है, जिसके बारे में माना जाता है कि इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


इस साल मोक्षदा एकादशी 14  दिसंबर को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत के प्रभाव से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रतियों के सभी पापों का नाश होता है और उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

Mokshada Ekadashi


मोक्षदा एकादशी का मुहूर्त 

  • एकादशी तिथि प्रारंभ:  13 दिसंबर, रात्रि 9: 32 मिनट से 
  • एकादशी तिथि समाप्त: 14 दिसंबर रात्रि 11:35 मिनट पर
  • व्रत का पारण:  15 दिसंबर प्रातः 07: 5 मिनट से प्रातः 09: 09 मिनट तक

Mokshada Ekadashi


मोक्षदा एकादशी व्रत विधि

  • सर्वप्रथम प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
  • स्नानादि से निवृत्त होकर घर के मंदिर की सफाई करें।
  • इसके उपरांत पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें छिड़कें। 
  • इसके उपरांत मंदिर में भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें वस्त्र अर्पित करें। 
  • वस्त्रआदि अर्पण करने के बाद भगवान को रोली और अक्षत का तिलक लगाएं। 
  • भोगसवरूप भगवान को फल और मेवे अर्पित करें। 
  • पूजा आरंभ करते समय सबसे पहले भगवान गणपति और फिर माता लक्ष्मी के साथ श्रीहरि की आरती करें। 
  • भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अवश्य अर्पित करें।

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