शरद पूर्णिमा 2021 : जानिए क्यों खास होती है शरद पूर्णिमा की रात ?
शरद पूर्णिमा के कई नाम - कोजोगार पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा
इस दिन रखा जाता है कौमुदी व्रत
शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था माँ लक्ष्मी का जन्म
हर एक माह की पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण, देवी लक्ष्मी एवं चंद्रदेव की पूजा-अर्चना का विधान है। परन्तु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधा की अदभुत दिव्य रासलीलाओं का आरम्भ हुआ था। पूर्णिमा की श्वेत उज्जवल चाँदनी में यमुनाजी के निकट भगवान श्री कृष्ण ने अपनी नौ लाख गोपिकाओं के साथ स्वंय के ही नौ लाख अलग-अलग गोपों के रूप में आकर ब्रज में महारास रचाया था इसलिए इस महीने की पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
शरद पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है और इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत कहते हैं। इस दिन भगवान रजनीश यानि चन्द्रमा की भी पूजा अर्चना करने का विधान हैं। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है, कुआंरी कन्याएं इस दिन सुबह सूर्य और चन्द्र देव की पूजा अर्चना करें तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है
आश्विन पूर्णिमा की रात्रि पर सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है-पुष्णामि चौषधिः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्यमकः।।
“मैं रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चंद्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।“इस रात्रि में चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है एवं चन्द्रमा की किरणों से अमृत तत्व बरसता है। चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांति रूपी अमृत वर्षा करते हैं उसकी उज्ज्वल किरणें जब फसलों, पेड़-पौधों, पेय एवं खाद्य पदार्थो में पड़ती हैं तो इनमें अमृत्व का प्रभाव आ जाता है और ये जीवनदायिनी होकर जीव-जगत को आरोग्य प्रदान करती है।
पृथ्वी पर आती हैं माँ लक्ष्मी
ज्योतिष मान्यता के अनुसार जो भक्त इस रात लक्ष्मीजी की षोडशोपचार विधि से पूजा करके श्री सूक्त का पाठ, कनकधारा स्त्रोत, विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करते है उनकी कुण्डली में धनयोग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं। नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की श्वेत धवल चाँदनी में विष्णुप्रिया माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं, और माता यह भी देखती है- कि कौन जाग रहा है? यानि अपने कर्मों को लेकर कौन-कौन सचेत हैं। जो जन इस रात में जागकर माँ लक्ष्मी की उपासना करते है माँ लक्ष्मी की उन पर असीम कृपा होती है, प्रतिवर्ष किया जाने वाला कौमुदी व्रत लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने वाला है ।
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