नौगढ़ के आदिवासियों व वनवासियों के अधिकार देने में योगी सरकार विफल :अजय राय
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मुख्यमंत्री को चन्दौली जनपद में वनाधिकार लागू कराने को लेकर स्वराज अभियान का खुला पत्र लिखा है और यहां के लोगों के दर्द से वाकिफ कराने की कोशिश की है।
अजय राय ने इस मामले पर कहा कि वनाधिकार में दाखिल दावा की पु:न सूनवाई आंदोलन की जीत हुयी लेकिन वनाधिकार लागू करने को लेकर योगी सरकार विफल है।
स्वराज अभियान के नेता अजय राय व आदिवासी वनवासी महासभा के प्रवक्ता अजय राय ने कल नौगढ़ में वनवासी आश्रम में कल आगमन होने के पूर्व उनके नाम वनाधिकार लागू को लेकर खुला पत्र जारी करते हुए कहा।
उन्होंने कहा कि वन विभाग व चन्दौली जिला प्रशासन न तो वनाधिकार लागू कराने को लेकर गंभीर हैं और न ही वनाधिकार के दावे की सही तरह से निस्तारण हो रहा हैं और तो और जब तक निस्तारण न हो तब-तक उत्पीड़न न किया जाए लेकिन उत्पीड़न हो रहा है। वही स्थलीय भौतिक सत्यापन हो , इसकी मांग को आंल इण्डिया पिपुल्स फ्रंट से जूडी आदिवासी वनवासी महासभा के द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के आदेश पर भी वनाधिकार लागू नही हो रहा हैं।
उन्होंने कहा कि वनाधिकार कानून के तहत दावों की पुनः सुनवाई का आदेश के बाद भी नौगढ़ में यह प्रक्रिया शुरू नही हुयी हैं। वनाधिकार कानून को सपा-बसपा ने भी अपनी सरकार में लागू नहीं किया था । आज भी पुनर्सुनवाई का आदेश के बाद भी न्याय पालिका के आदेश को पालन नही आपके सरकार द्वारा हो रहा हैं।
उन्होंने कहा कि चकिया व नौगढ़ मे वन निवासियों ने वनाधिकार कानून के तहत वनभूमि जमीन पर अपने पुश्तैनी कब्जे पर अधिकार के लिए गांवस्तरीय वनाधिकार समिति में दावा जमा किया था। जिस पर जांचोपरांत दावे को स्वीकृत करते हुए ग्रामसभा की वनाधिकार समिति ने दिनांक 25 जुलाई 2009 को नौगढ़ व चकिया तहसील में दावें को जमा किया था। इस दावें के सम्बंध में आज तक दावेदारों को कोई सूचना नहीं दी गयी। जबकि वनाधिकार कानून की संशोधित नियमावली 2012 की धारा 12 क की उपधारा-3 के तहत दावेदार को व्यक्तिगत रूप से संसूचित किया जाना अनिवार्य है।
जिससे वह उच्चतर स्तर की समिति में 60 दिन के अंदर अपील कर सके। इसी धारा की उपधारा-5 कहती है कि किसी व्यक्ति की याचिका को तब तक निपटाया नहीं जायेगा जब तक कि उसे अपने दावे के समर्थन में कुछ प्रस्तुत करने का युक्ति युक्त अवसर न प्रदान कर दिया गया हो। वहीं उपधारा-7 कहती है कि दावे को स्वीकार न करने के कारण का ब्यौरावार लिखित रूप से अभिलेखबद्ध किया जायेगा और दावाकर्ता को कारणों के साथ उपलब्ध कराया जायेगा।
इस सम्बंध में आल इण्ड़िया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) से सम्बद्ध आदिवासी वनवासी महासभा के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दायर जनहित याचिका सं. 27063/2013 में दिनांक 05 अगस्त 2013 को माननीय मुख्य न्यायाधीश की खण्ड़पीठ ने सरकार को नियमावली 2012 के तहत दावा निस्तारण का आदेश दिया है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन हेतु हमारे द्वारा कई बार पत्रक उ0 प्र0 शासन और जिला प्रशासन को दिए गए।
परन्तु खेद के साथ अवगत कराना है कि आज तक माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुई और वनाधिकार कानून के तहत पेश दावों का निस्तारण नहीं हुआ और दावेदार को उसके दावों के सम्बंध में सूचित तक नहीं किया गया।
आपके संज्ञान में यह भी लाना चाहेंगे कि वनाधिकार कानून के अध्याय तीन की धारा 5 में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य परम्परागत वन निवासियों का कोई सदस्य उसके अधिभोगाधीन वन भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जाएगा या हटाया नहीं जाएगा जब तक कि मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है।
अतः स्पष्ट है कि बिना दावा निस्तारण के चन्दौली जनपद में वन विभाग और प्रशासन द्वारा की जा रही बेदखली की कार्यवाही विधि के विरूद्ध है और हस्तक्षेप कर विधि विरूद्ध हो रही बेदखली की कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश दें। वनाधिकार के दावे की सही तरह से निस्तारण करे।और जब तक निस्तारण न हो तबतक उत्पीड़न न किया जाए। वही स्थलीय भौतिक सत्यापन करने के लिए कहे ।
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