सरोज देवी ने नहीं मानी हार, आज कर रही है पूरे परिवार का पालन
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चंदौली जिले के नक्सल प्रभावी क्षेत्र के लिए एक मिशाल बनी है। कहते हैं कि महिला अगर चाह ले तो अबला का ठप्पा उसके उपर से अपने आप हट जाता है और अबला सबला बन जाती है। वह अपने काम को करने के साथ साथ दूसरे के लिए प्रेरणास्रोत बन जाती है।
कुछ ऐसी ही कहानी नौगढ़ ब्लॉक के ग्राम पंचायत लौवारीकलां के जमसोती गांव की सरोज देवी की है। पति के निधन के बाद परिवार के जिम्मेदारी की बागडोर संभाली। अतिपिछड़े गांव की होने के बाद भी सरोज ने कभी हार नहीं मानी।
पहले ससुर और फिर पति राकेश कोल का निधन हो गया। कोटे की दुकान लंबे समय से इसी परिवार में रही, लेकिन पति के निधन के बाद गंवई राजनीति शुरू हो गई। सरोज देवी ने अपनी काबिलियत साबित करते हुए ग्रामीणों का विश्वास जीता। कोटे की दुकान की आय से सरोज देवी अपने बच्चों की परवरिश के साथ बेहतर शिक्षा दे रहीं हैं।
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