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114 साल पहले पांच मित्रों ने शुरू की थी कुश्ती प्रतियोगिता, आज भी लोग लेते हैं आनंद

जलालपुर गांव के काली मंदिर पर वर्ष 1909 से अब तक लगातार कुश्ती का अयोजन हो रहा है और लोगों को कोई खास सुविधा न होने पर भी कई गांव से लोग कुश्ती का अयोजन देखने आते हैं।
 

मां काली मंदिर पर आज भी होती कुश्ती

गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक हैं यहां कुश्ती के मुकाबले

जमीन पर बैठकर लोग लेते हैं दांवपेंच का आनंद

चंदौली जिले के जलालपुर गांव स्थित काली मंदिर पर चैत्र शुक्ल की नवमी और दशमी तिथि को होने वाली अंतर जनपदीय कुश्ती प्रतियोगिता 114 वर्ष पुरानी हो चुकी है। इसके बावजूद आज भी इसका क्रेज कायम है। इसे लोग गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल भी मानते हैं।
आपको बता दें कि वर्ष 1909 में गांव के शिवटहल सिंह,  इलियास खां,  ठाकुर दयाल सिंह,  विश्वनाथ सिंह और आदित्य सिंह ने इस प्रतियोगिता की नींव रखी थी। तब से कुश्ती प्रतियोगिता होती चली आ रही है। केवल कोरोना संक्रमण काल ने इस परंपरा को रोक दिया था। इसके अलावा लोग हर साल इसमें राजी-खुशी तरीके से शिरकत करते हैं।

इस मंदिर व खेल प्रतियोगिता के बारे में लोग बताते हैं कि गांव में कुश्ती प्रतियोगिता शुरू कराने से पूर्व शिव टहल सिंह, इलियास खां, ठाकुर दयाल सिंह,  विश्वनाथ सिंह और आदित्य सिंह ने गांव के बाहर पूरब तरफ मां काली का मंदिर बनवाया था। साथ ही यहां पर कुश्ती करवाने की योजना बनायी। वहीं पर वर्ष 1909 में सालाना कुश्ती प्रतियोगिता की नींव रखी थी। तब से प्रतियोगिता की यात्रा अनवरत रूप से जारी है।

 wrestling competition

देश की आजादी के लिए मचे उथल-पुथल के दौरान भी प्रतियोगिता पर कोई व्यवधान नहीं पड़ा लेकिन वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना ने इस परंपरा को रोक दिया था। दो वर्ष तक ग्रामीण इस प्रतियोगिता से वंचित रहे थे। लेकिन कोरोना का खौफ खत्म होने के बाद एक बार फिर से इसे शुरू करवा दिया गया है।

इस प्रतियोगिता की खासियत है कि कुश्ती प्रेमी बिना किसी खास व्यवस्था के जमीन पर बैठकर खेल का आनंद लेते हैं। परंपरा का निर्वहन करने की कोशिश वर्तमान में भी गांव के नवयुवकों में दिखती है। गांव के संजय सिंह ने बताया कि इस वर्ष कुश्ती दंगल की तैयारियां लगभग पूरी हो गई हैं।

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