अवैध पत्थर खनन माफियाओं से डरता है वन विभाग या कर रखी है अपनी सेटिंग
चकिया इलाके में जारी है अवैध खनन का काम
बौना साबित हो रहा वन विभाग
महीनों से चल रही है पहाड़ियों पर ड्रिल मशीनें और क्रेन
लगता है सबका बंधा है कमीशन
चंदौली जिले में वन संपदा की सुरक्षा के लिए इस वन क्षेत्र को तीन भाग में बांटा गया है, ताकि वनों की रक्षा व सुरक्षा हो सके, लेकिन यहां तैनात अफसर और वनकर्मी न जाने किसी नशे में मदहोश हैं, जो उनको अवैध खनन की मशीनें नहीं दिखती हैं। ऐसा लग रहा है कि सारा काम वन विभाग की मिलीभगत से हो रहा है तभी तो खनन की मशीनों को देखकर भी आंख मूदे हुए हैं। ऐसा लगता है कि सब अपना हिस्सा लेकर खामोश हैं।
जिले के चंद्रप्रभा रेंज, चकिया तथा राजपथ रेंज में तीनों रेंजों के क्षेत्राधिकारियों तथा अन्य वनकर्मियों की नियुक्ति है। इसके बाद भी न तो जंगल का दायरा बढ़ पाया और नहीं क्षेत्र की पहाड़ियों का दोहन रुकने का नाम नहीं ले रहा। लोगों का कहना है कि इलाके में खनन माफिया का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। खनन माफिया द्वारा अपने काले कारोबार को अंजाम देने के लिए पहाड़ों का सीना छलनी करने की कई तस्वीरें कई बार कैमरे में कैद हुई हैं।
ताजा मामला देखें तो पता चलेगा कि क्षेत्र के चतुरीपुर पहाड़ी में खनन माफिया द्वारा बड़ी-बड़ी ड्रिल मशीन और क्रेन लगाकर पहाड़ियों का सीना चीर कर परिवहन हो रहा है। प्रशासन और विभाग की नाक के तले इस सारे गोरखधंधे को अंजाम दिया जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल है कि खनन की इतनी बड़ी मशीन और परिवहन के लिए संसाधन उन पहाड़ों तक पहुंच गया और विभागीय अधिकारियों की
कुंभकर्णी नींद अभी तक नहीं टूटी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वन विभाग की निष्क्रियता से खनन माफिया के हौसले बुलंद हैं। अभी तक नजर बचाकर चोरी छिपे पहाड़ियों में हथौड़े और टांकियों के सहारे पहाड़ियों से पत्थर तोड़े जा रहे थे। लेकिन, अब तो दिनदहाड़े ड्रिल मशीन, पत्थर काटने वाला रसायन, क्रेन आदि लगाकर बिना किसी भय के प्रतिबंधित पहाड़ियों से बड़े- बड़े चट्टानों को काटकर समीप के मीरजापुर जिला क्षेत्र में परिवहन किया जा रहा है।
लगभग तीन दशक वर्ष पूर्व जंगल और पहाड़ियों के अस्तित्व को बचाए रखने के उद्देश्य से जिले को वन सेंचुरी घोषित कर दिया गया। लेकिन इससे ना तो वनों का आकार बढ़ पाया और ना ही छोटी-छोटी पहाड़ियां का खनन रुक पाया, जिससे ये पहाड़िया अपने अस्तित्व को बचा पाए। हकीकत में देखा जाए तो जिम्मेदार अफसरों ने वनों के संरक्षण के वन संपत्ति की सुरक्षा करने में फेल रहे। इसके संरक्षण कर्ता अपने गोरखधंधों से अपनी तिजोरियां भरने में लगे रहे हैं।
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