लगता है कमीशन ज्यादा था...तभी तो 6 महीने में ही धंस गई 35 लाख की सड़क
 

लोक निर्माण विभाग द्वारा मात्र छह महीने पहले 35 लाख रुपये की लागत से मरम्मत कराई गई यह सड़क अब पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है। सड़क की गिट्टी उखड़ने लगी है, जगह-जगह गड्ढे बन गए हैं और कई हिस्सों में सड़क धंस चुकी है।
 

चंदौली में छह महीने में धंसी PWD की 35 लाख में बनी सड़क

घटिया निर्माण पर ग्रामीणों का आक्रोश

लोक निर्माण विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल 

चंदौली जिले के इलिया क्षेत्र में ईसापुर से नसोपुर तक बनी तीन किलोमीटर लंबी सड़क की हालत ने सरकारी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। लोक निर्माण विभाग द्वारा मात्र छह महीने पहले 35 लाख रुपये की लागत से मरम्मत कराई गई यह सड़क अब पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है। सड़क की गिट्टी उखड़ने लगी है, जगह-जगह गड्ढे बन गए हैं और कई हिस्सों में सड़क धंस चुकी है। इस स्थिति ने न केवल स्थानीय लोगों की आवाजाही को बाधित किया है, बल्कि बच्चों की शिक्षा और मरीजों की चिकित्सा सुविधा तक पहुंच भी मुश्किल बना दी है।

ग्रामीणों का आरोप है कि सड़क निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया, जिससे यह इतनी जल्दी टूट गई। उनका कहना है कि यह पहली बार नहीं हुआ है—पिछले वर्ष भी बारिश के बाद सड़क की यही हालत हुई थी, लेकिन विभाग ने केवल कागजी कार्रवाई कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस बार भी यदि त्वरित मरम्मत नहीं हुई तो ग्रामीण आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।

स्थानीय निवासी प्रमीण सुभाष यादव, दिना चौहान और हरी चौहान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि विभाग ने जल्द कार्रवाई नहीं की तो वे सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। उनका कहना है कि सड़क की खराब हालत ने उनके दैनिक जीवन को प्रभावित किया है और अब वे चुप नहीं बैठेंगे।

लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता पंकज खेमखा ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विभाग ने क्षतिग्रस्त सड़क की स्थिति का निरीक्षण किया है और जल्द ही मरम्मत कार्य शुरू किया जाएगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि सड़क पर यातायात को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे।

हालांकि, यह आश्वासन ग्रामीणों के लिए पर्याप्त नहीं है। उनका कहना है कि विभाग की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी है और गुणवत्ता नियंत्रण की प्रक्रिया पूरी तरह विफल साबित हो रही है। सड़क निर्माण में ठेकेदारों और अफसरों के बीच कमीशनखोरी का आरोप भी सामने आया है, जिससे भाजपा सरकार की ईमानदारी और सुशासन की छवि पर सवाल उठने लगे हैं।

यह मामला केवल एक सड़क की खराब गुणवत्ता का नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की लापरवाही और जवाबदेही की कमी का प्रतीक बन गया है। जब सरकारें विकास और पारदर्शिता की बात करती हैं, तो ऐसे उदाहरण उन दावों को कमजोर कर देते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें बार-बार सड़क की दिक्कतों के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन विभाग की ओर से समय पर कार्यवाही नहीं होती।

इस घटना ने यह भी उजागर किया है कि निर्माण कार्यों की निगरानी और गुणवत्ता परीक्षण की प्रक्रिया कितनी कमजोर है। यदि छह महीने में ही सड़क धंस जाती है, तो यह स्पष्ट है कि निर्माण में मानकों की अनदेखी की गई है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।