बरांव गांव में चल रही श्रीराम कथा का सातवां दिन, कथा वाचिका मानस मयूरी सुना रहीं कथा
 

कथा वाचिका शालिनी त्रिपाठी ने कहा कि रावण से युद्ध के समय भगवान श्रीराम कहतें है कि अधर्म पर विजय प्राप्त करने के लिए जो धर्म रूपी रथ है उसमें शौर्य के साथ- साथ धैर्य रूपी पहिया होने चाहिए। जीवन में धैर्यपूर्वक बड़ी बड़ी कठिनाईयों को पार किया जा सकता है।
 

परीक्षा और समीक्षा से नहीं प्रतीक्षा से मिलते हैं परमात्मा

शालिनी त्रिपाठी की संगीतमय रामकथा

श्रीराम कथा के सातवें एवं अंतिम दिन कथा

चंदौली जिला के शहाबगंज विकासखंड अंतर्गत बरांव गांव में चल रही श्रीराम कथा के सातवें एवं अंतिम निशा पर कथा वाचिका मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी ने श्रोताओं को श्रीराम कथा सुनाते हुए कहा कि प्रभु को नाही परीक्षा से, नहीं समीक्षा से अपितु प्रतीक्षा से प्राप्त किया जा सकता है।

   उन्होंने कहा कि मइया शबरी वन में वर्षों तक प्रभु श्रीराम की राह देखते रह गई और भरत चौदह वर्षों तक धैर्य के साथ प्रभु की प्रतीक्षा करते रहें। लेकिन माता सती परीक्षा लेकर प्रभु को जानने का प्रयास की, वहीं सूपर्णखा समीक्षा के भाव से प्रभु को प्राप्त करना चाहतीं हैं लेकिन भगवान समीक्षा नहीं प्रतीक्षा करने वाले को मिलते हैं। माता शबरी,ऋषि शरभंग, अगस्त अत्रि,अयोध्यावासी एवं भईया भरत ने भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा से प्रभु को प्राप्त कर लिया। 

कथा वाचिका शालिनी त्रिपाठी ने कहा कि रावण से युद्ध के समय भगवान श्रीराम कहतें है कि अधर्म पर विजय प्राप्त करने के लिए जो धर्म रूपी रथ है उसमें शौर्य के साथ- साथ धैर्य रूपी पहिया होने चाहिए। जीवन में धैर्यपूर्वक बड़ी बड़ी कठिनाईयों को पार किया जा सकता है। धर्म में धैर्य आवश्यक है। चौदह वर्ष के पश्चात रावण पर विजय प्राप्त कर प्रभु श्रीराम, भरत जी एवं समस्त नगर नर नारियों से मिलें हैं। इसी बीच राम राज्य बैठे त्रैलोका हर्षित भये गए सब लोका की चौपाई सुनाकर सब को भावविभोर कर दिया। प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक की कथा सुनते ही श्रोता झूम उठे। और विजय की जयकारा से पूरा माहौल राममय हो उठा।