रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट : एक छोर से दूसरे छोर की दूरी 250 किमी, पहुंचने में ही लगते हैं 7-8 घंटे

नए परिसीमन के बाद रॉबर्ट्सगंज उन सीटों में शामिल है, जिनका क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है। इसका छोर मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले से लगता है तो दूसरा छोर चंदौली जिले के मुख्यालय के पास तक है।
 

सूबे के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र से जुड़ती हैं पांच राज्यों की सीमा

17.5 लाख मतदाता चुनेंगे अपना नया सांसद

लंबा चौड़ा है रॉबर्ट्सगंज लोकसभा का क्षेत्रफल

कई गांवों तक पहुंच नहीं पाते तमाम प्रत्याशी

मतदाता भी रहते हैं 5 साल उनसे अनभिज्ञ

सोनभद्र जिले के रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना आसान नहीं है। पांच राज्यों तक फैली इसकी सीमाएं नापने में प्रत्याशियों को पसीने छूट जाते हैं। यह यूपी का सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र भी है। एक छोर से दूसरे छोर की दूरी करीब ढाई सौ किमी है। भौगोलिक रूप से जटिल संरचनाओं के चलते कई गांवों तक प्रत्याशी पहुंच ही नहीं पाते। इन गांवों में मतदाताओं को अपने प्रत्याशी का चेहरा देखे बिना ही वोट देना पड़ता है। चंदौली जिले की चकिया विधानसभा भी इसी लोकसभा में आती है, जिनके कई गांवों सांसद जी चुनाव प्रचार को कौन कहे अपने 5 साल के कार्यकाल में भी नहीं जा पाते हैं।

आपको बता दें कि रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पहले मिर्जापुर का हिस्सा था। वर्ष 1962 में परिसीमन के बाद इसका उदय हुआ तो इसमें मिर्जापुर जिले की चुनार, मझवां, राजगढ़ और दुद्धी, रॉबर्ट्सगंज विधानसभा क्षेत्र शामिल थे। वर्ष 2009 में नए परिसीमन ने इस सीट का परिदृश्य बदल दिया। इस परिसीमन में ओबरा और घोरावल दो नए विधानसभा क्षेत्र बने। साथ ही पड़ोसी चंदौली जिले की चकिया विधानसभा सीट को भी इसमें शामिल करते हुए रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट का पुर्नगठन किया गया।

बताते चलें कि नए परिसीमन के बाद रॉबर्ट्सगंज उन सीटों में शामिल है, जिनका क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है। इसका छोर मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले से लगता है तो दूसरा छोर चंदौली जिले के मुख्यालय के पास तक है। इनके बीच की दूरी करीब ढाई सौ किमी है। झारखंड और छत्तीसगढ़ सीमा से भी दूसरे क्षेत्र की दूरी करीब इतनी ही है। ऐसे में प्रत्याशियों को पूरा चुनावी क्षेत्र घूमने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जिनके नाम पहले से तय हैं, वह तो फिर भी किसी तरह एक-एक गांव में पहुंच जाते हैं, लेकिन नामांकन के बाद उम्मीदवारों को मतदाताओं तक पहुंचना ही संभव नहीं हो पाता।

लिहाजा मतदाता भी कइयों से अनभिज्ञ रहते हैं। इसमें भी चोपन, म्योरपुर, कोन और नगवां ब्लॉक के कई गांवों की बसावट इतनी दुरुह है कि वहां चाहकर भी प्रत्याशी पहुंच नहीं पाते। बड़े राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं व बूथ समितियों के जरिए फिर भी मतदाताओं तक पहुंच जाते हैं, लेकिन अन्य छोटे दलों के पास बूथ स्तरीय संगठन के अभाव में प्रत्याशियों के सामने चुनौती बनी रहती है।

मप्र की सीमा पर स्थिति शक्तिनगर और बीजपुर की चकिया विधानसभा क्षेत्र के अंतिम छोर कांटा विशुनपुरा से आगे तक की दूरी करीब 250 किमी है। इसी तरह छत्तीसगढ़ सीमा पर सागोबांध, झारखंड सीमा पर छतरपुर, धोरपा की घोरावल विस क्षेत्र के अंतिम छोर मूर्तिया, से भी दूरी करीब 250 किमी है।