शहाबगंज क्षेत्र के मसोई गांव में श्रीमद्भागवत कथा का तीसरा दिन, ध्रुव चरित्र की कथा सुनकर आनंदित हुए भक्त
भगवान का भजन करने से मिलेगी मुक्ति
शरीर व आत्मा के उद्धार के लिए सत्संग जरूरी
श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री सुना रहे हैं कथा
चंदौली जिले के शहाबगंज क्षेत्र के मसोई गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास वृन्दावन से पधारे श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री ठाकुर जी महाराज ने ध्रुव चरित्र की कथा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं सुनीति और सुरुचि। सुनिति के बेटे का नाम ध्रुव था और सुरुचि के बेटे का नाम उत्तम था। एक बार उत्तानपाद सिंहासन पर बैठे हुए थे। ध्रुव भी खेलते हुए राजमहल में पहुँच गये। उस समय उनकी अवस्था पाँच वर्ष की थी। उत्तम राजा उत्तानपाद की गोदी में बैठा हुआ था। ध्रुव जी भी राजा की गोदी में चढ़ने का प्रयास करने लगे।
सुरुचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने ध्रुव को डांटा इस गोद में चढ़ने का तेरा अधिकार नहीं है। अगर इस गोद में चढ़ना है तो पहले भगवान का भजन करके इस शरीर का त्याग कर और फिर मेरे गर्भ से जन्म लेकर मेरा पुत्र बन।तब तू इस गोद में बैठने का अधिकारी होगा। ध्रुव जी रोते हुए अपनी माँ के पास आये। माँ को सारी व्यथा सुनाई। सुनीति ने सुरुचि के लिये कटु-शब्द नहीं बोले, उसे लगा यदि मैं उसकी बुराई करुँगी तो ध्रुव के मन में हमेशा के लिये वैर-भाव के संस्कार जग जायेंगे। सुनिति ने कहा ध्रुव तेरी विमाता ने जो कहा है,सही कहा है। बेटे यदि भिक्षा माँगनी है तो फिर भगवान से ही क्यों न माँगी जाय। भगवान तुझ पर कृपा करेंगे, तुझे प्रेम से बुलायेंगे, गोद में भी बिठाएंगे।अब तुम वन में जाकर नारायण का भजन करो।
कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि बालक ध्रुव माँ का आदेश प्राप्त करके चल पड़े। जैसे ही चले भगवान के रास्ते पर, नगर से बाहर निकलते ही उनको देवर्षि नारद मिल गये।देवर्षि द्वारा दिए गए मन्त्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जप करते हुए तीन माह के घोर तपस्या के उपरांत जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए।
व्यास जी ने कहा कि साध्य के लिए साधन की नितांत आवश्यकता है। कथा में क्षेत्र के दर्जनों गाँव के महिला-पुरुष भाग ले रहे हैं।