CO बन चुके रतन सिंह यादव की सेवा बहाल, फिर से बनाए जाएंगे डिप्टी एसपी
रतन सिंह यादव को सेवा में वापस लेने का आदेश
हाईकोर्ट ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के आदेश को किया रद्द
3 सप्ताह में बहाल करने और सभी बकाए के भुगतान का निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लंबे समय तक चंदौली जिले में तैनात और चर्चित इंस्पेक्टर रतन सिंह यादव को योगी सरकार के द्वारा अनिवार्य रूप से दी गई सेवानिवृत्ति के आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही साथ सभी बकाया वेतन और भत्तों का भुगतान करने का फरमान उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस विभाग में को दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली जानकारी में बताया जा रहा है कि डिप्टी एसपी रतन कुमार यादव की अनिवार्य सेवा निवृत्ति के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को करारा झटका देते हुए कोर्ट ने डिप्टी एसपी को तीन सप्ताह के भीतर सेवा में वापस लेने और उनके सभी बकाए वेतन भत्तों का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
इस मामले में रतन कुमार यादव की याचिका पर आदेश जारी करते हुए न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया ने सरकार को रतन कुमार सिंह यादव के ट्रैक रिकार्ड को देखे बिना इस तरह से आदेश जारी करने का दोषी पाया है। न्यायमूर्ति के सामने पेश की गई याचिका में रतन कुमार सिंह यादव ने कहा था कि उसे सरकारी कार्य और कर्तव्य पालन में लापरवाही बरतने और स्वेच्छाचारिता के आरोप में निलंबित किया गया था। उसके बाद उसके दो इंक्रीमेंट 5 वर्ष के लिए रोकते हुए सर्विस रिकॉर्ड में दो परिनिंदा प्रस्ताव के आधार पर ये आदेश दिए गए। स्क्रीनिंग कमेटी ने उसके बाद 7 नवंबर 2019 को रतन कुमार यादव को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्ति दे दी थी।
इसी आदेश को रतन कुमार सिंह यादव ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और अपने सभी रिकार्ड को कोर्ट के सामने रखा। रतन सिंह यादव ने कहा कि उनके खिलाफ आदेश पारित करने के पहले उनके सर्विस रिकॉर्ड तथा उनके द्वारा दाखिल किए गए काउंटर एफिडेविट पर कोई विचार नहीं किया गया। रतन सिंह यादव ने कोर्ट को याद दिलाया कि 1998 में जब वह सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात थे तब उन्होंने मुन्ना बजरंगी गैंग से मुठभेड़ की थी। उसमें बहादुरी का परिचय दिया था। इस दौरान उनको एके-47 से 5 गोलियां लगीं थीं। उस जख्म से रिकवर होने के बाद उन्हें आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला और बाद में उनको डिप्टी एसपी के पद पर प्रमोट कर दिया गया है। इसके अलावा उनको उत्कृष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का मेडल भी मिल चुका है।
सरकार द्वारा बनाई गई स्क्रीनिंग कमेटी ने इन सभी तथ्यों पर गौर किए बगैर उनको अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश पारित कर दिया तथा पर निंदा प्रविष्टि के आधार पर उनकी अपील को खारिज किया। कोर्ट ने इन सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद उसके लिए कमेटी के द्वारा किए गए एक्शन को सही नहीं माना और कामचलाऊ तरीके से अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का आदेश पारित करने की कार्रवाई को रद्द कर दिया।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट में आदेश पारित करते हुए 7 नंबर 2019 को रतन कुमार सिंह यादव को दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि 3 सप्ताह के भीतर इनको पुनः ज्वाइन कराएं तथा 6 सप्ताह के भीतर उनके सभी बकाया वेतन भत्तों का भुगतान किया जाए।