इन 10 कारणों से परेशान हैं चंदौली के किसान, नेता-अफसर-किसान तीनों नहीं चाहते पूर्ण समाधान
चंदौली जिले में धान खरीद में हेराफेरी और समस्या
चंदौली समाचार की सीरीज का यह है दूसरा भाग,
तीसरे भाग में पढ़िए..क्यों व कैसे खूंटा गाड़े हैं डिप्टी आरएमओ साहब
चंदौली जिला धान का कटोरा कहा जाता है और धान को लेकर चंदौली जिले की राजनीतिक मंच के साथ-साथ अफसरों की बैठक में खूब चर्चाएं होती हैं, लेकिन धान की समस्याओं को जड़ से खत्म करने की चंदौली जिले के अफसरों और राजनेताओं के द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जाती है। ऐसी बात इसलिए कहने पड़ रही है क्योंकि चंदौली जनपद कि किसानों की मूलभूत समस्याएं जस की तस हैं। हंगामा मचने पर मौके पर पहुंचकर अफसर और राजनेता झूठे और दिखावे वाले आश्वासन तो दे देते हैं, लेकिन उसका फर्क पड़ता कहीं भी नजर नहीं आता है।
कुछ ऐसा ही आजकल चंदौली जिले में चल रही धान खरीद की व्यवस्था में हो रहा है चंदौली समाचार के एडिटर विजय कुमार तिवारी ने इन समस्याओं को जानने परखने और समझने की कोशिश की, जिसके चलते चंदौली जनपद में धान खरीद की 10 बड़ी समस्याएं नजर आयीं। अगर अधिकारी और राजनेता इन समस्याओं के समाधान पर पहल करेंगे तो चंदौली जनपद वास्तव में धान का कटोरा बनेगा और किसान शोषण का शिकार होने से बच जाएंगे।
.....आगे जारी है
6. क्रय केन्द्र प्रभारियों पर डिप्टी आरएमओ की खास कृपा
ऐसा कहा जाता है कि जिले में लगभग 3 सालों से भी अधिक समय से तैनात डिप्टी आरएमओ की क्रय केंद्रों पर विशेष कृपा रहती है। चंदौली जनपद में तैनात उप जिला विपणन अधिकारी अनूप कुमार श्रीवास्तव की कार्यशैली और क्रय केंद्रों से उनकी सेटिंग सेटिंग के चर्चे अक्सर आपको सुनने को मिल जाएंगे, लेकिन ऐसा सब कुछ कहने व जानने के बाद भी उनके खिलाफ न तो कोई जांच होती है और न ही कोई कार्रवाई होती है। अगर उनके ऊपर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो रही है तो इसका भी कुछ खास कारण जरूर होगा।
अक्सर देखा जाता है है कि जब उनकी शिकायत होती है तो मौके पर वह कितने मासूम बन जाते हैं। जैसे उन्हें किसी बात का कोई भी पता नहीं है, लेकिन हर कोई जानता है कि उनकी शासन-सत्ता व आला अफसरों में पकड़ वाली जड़ें काफी गहरी हैं, जिसे जांच पड़ताल करके ही जग जाहिर किया जा सकता है। अगर इमानदारी से अनूप कुमार श्रीवास्तव की कार्यशैली और उनकी सेटिंग गेटिंग की जांच हो तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। यह बात पुराने धान खरीद केंद्र चलाने वाले लोगों और पुराने राइस मिलर के साथ बैठकर कोई भी जान सकता है कि पिछले चार-पांच सालों में जिले में क्या-क्या हो रहा है।
क्रय केन्द्र के प्रभारियों के खिलाफ कैसे कैसे एक्शन लेते हैं और उसके बाद क्या होता है। अगर सारे मामलों की मन लगाकर जांच हो तो आप खुद भी जान जाएंगे।
7. क्या हुआ जिन पर कार्रवाई हुयी
चंदौली जिले के लोग जानना चाहते हैं कि धान खरीद केन्द्रों पर लापरवाही करने वालों क्या ऐसी ठोस कार्रवाई हुयी जिससे लोगों में संदेश जाय कि अगर किसी तरह की लापरवाही या हेराफेरी होगी तो उन पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है। चंदौली जिले के किसान यह जानना चाहते हैं कि जिन धान खरीद केंद्रों के प्रभारियों के खिलाफ F.I.R. हुई या कोई और कार्रवाई हुई है..उसके बाद उसमें क्या हुआ। उसमें लगायी गयी धाराएं क्या थीं और उनसे किस तरह का संदेश दिया गया। लोग पूछते हैं कि उनमें से किसी को जेल क्यों नहीं हुयी..अगर जेल नहीं हुयी तो क्या वह बाहर घूम कर मौज कर रहे हैं।
किसान कहते हैं कि कार्रवाई और एफआईआर के नाम पर केवल क्रय केंद्र प्रभारी बदल देने से सारी व्यवस्था बदल नहीं जाएगी। केंद्र प्रभारियों का बदला जाना केवल तत्कालिक समस्या का निदान है। अगर अधिकारी या राजनेता वास्तव में क्रय केंद्र प्रभारियों की मनमानी रोकना चाहते हैं तो उन्हें दो-चार क्रय केंद्र प्रभारियों के खिलाफ कम से कम ऐसी कार्रवाई जरूर करनी चाहिए, जिससे एक बड़ा संदेश जाय कि सरकार किसान को परेशान करने वालों को छोड़ने वाली नहीं है। लेकिन चंदौली जिले में नेता व अफसर ऐसा संदेश देने में फेल रहे हैं।
अभी भी डिप्टी आरएमओ साहब कहते हैं कि जिले में 8 लोगों के खिलाफ एडवर्स एंट्री हो गयी है। एक लोगों के खिलाफ एफआईआर हो गयी है। जिनकी शिकायत मिलती है। उन सभी पर कार्रवाई होती है।
8. विधायकों का भ्रमण व निर्देश बेअसर
धान खरीद के चल रहे खेल को लेकर सत्ता पक्ष के विधायक जी लोग या तो वास्तव में उदासीन हैं या तो उन्हें सबकुछ मालूम है पर वह कुछ भी कर नहीं पा रहे हैं। माननीय विधायक जी लोग कई बार केन्द्रों पर जाकर समस्याओं को देक चुके हैं, लेकिन हर बार उनको अजीबोगरीब तरह की शिकायतों का सामना करना पड़ता है। वह मौके पर आदेस व निर्देश भी देते हैं, लेकिन शायद चंद घंटे बाद सब कुछ जैसे का तैसा हो जाता है।
कहा जाता है कि चंदौली जिले के विधायक गण भी धान खरीद की समस्या पर कई बार धन धान खरीद केंद्रों पर भागदौड़ मचाते देखे तो गए पर वह दिल पर हाथ रखकर बताएं कि वह समस्याओं को हल कराने में सफल हो गए क्या। आखिर बार-बार विधायक सुशील सिंह को इन कर्मचारियों को जेल भेजने की धमकी क्यों देनी पड़ती है। विधायक साधना सिंह भी ऑफलाइन टोकन से खरीद होने के पहले जाकर तमाम तरह की बातें करके आयीं थीं। क्या उससे खरीद केन्द्रों पर कोई फर्क पड़ा। यह देखने व लोगों को सच-सच बताने की जरूरत है।
किसान नेता ने कहा कि अगर विधायकों की बात का किसी अफसर या क्रय केंद्र प्रभारी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, तो इसका भी एक साथ मैसेज जाता है कि सत्ता पक्ष के विधायकों की हनक कमजोर हो गई है या फिर उनका भौकाल खत्म होता जा रहा है। या ऐसा भी हो सकता है कि अधिकारी उनकी बात को कोई तवज्जो भी न दे रहे हों। नहीं तो एक ही बात को बार-बार विधायकों को क्रय केंद्र पर जाकर नहीं कहनी पड़ती। ताजा मामला विधायक सुशील सिंह का ही है, जो क्रय केंद्र पर जाकर गड़बड़ी करने वालों को जेल भेजने तक की चेतावनी दे चुके हैं। लेकिन उसके बाद भी जब वह क्रय केंद्र पहुंचे तो उनको उसी तरह की समस्या से रूबरू होना पड़ा। फिर उनको यही बात कहनी पड़ी। ऐसे में लोग जानना चाहते हैं कि आखिर विधायक जी किसी गड़बड़ी करने वाले केन्द्र प्रभारी को क्यों नहीं जेल भेजवा पा रहे हैं। उसका असली कारण क्या है। सिर्फ इस तरह के बयानों से क्या फर्क पड़ता है।
9. चुपचाप शोषण सह रहे हैं किसान, किससे करें शिकायत
चंदौली जिले के किसान भी अपनी समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं। वह दलों व जातियों में बंटे हैं। इसीलिए कुछ नेताओं के पिछलग्गू बनकर रहते हैं और हर तरह के शोषण के खिलाफ किसान चुप रहते हैं। घर बैठे सरकार व अफसरों का दोष देकर सारे जुल्म सहते रहते हैं।
चंदौली जनपद के किसान, अधिकारियों व राजनेताओं की उपेक्षा के साथ-साथ क्रय केंद्र प्रभारियों के शोषण को चुपचाप सिर्फ इसलिए कहते रहते हैं कि अगर वह विद्रोह पर उतारू होंगे तो उन्हें जो कुछ भी मिल रहा है वह भी मिलना बंद हो जाएगा। अगर उन्हें अपनी फसल का मूल्य चाहिए तो उन्हें सत्ता और अधिकारियों के इसी सिस्टम को मानना होगा। अफसरों के वसूली के काम में सहयोग करना होगा। अगर वह उनके बनाए गए सिस्टम को बदलने की कोशिश करेंगे तो वह सिर्फ परेशान होंगे। किसी भी समस्या का हल नहीं निकलेगा। इसी वजह से वह जानबूझकर किसी अफसर या क्रय केंद्र प्रभारी से पंगा लेने की बजाय बिचौलियों को औने पौने दाम में अपना धान बेचा करते हैं।
अगर किसान केंद्र पर खुद धान बेचने आते हैं तो वह क्रय केंद्र प्रभारी की हर बात मान लेते हैं, क्योंकि आंदोलन का झंडा बुलंद करने वाले बड़े लोग तो अपना काम करा लेते हैं, लेकिन छोटे किसान सिर्फ परेशान होते हैं। उससे न तो किसी राजनेता पर कोई फर्क पड़ता है ना ही किसी अफसर पर। इसलिए जनपद के किसान चुपचाप सारे शोषण को सहते रहते हैं और जो कुछ भी मिलता है उसे लेकर घर चले जाते हैं।
10. शिकायत दिखते ही अनजान बन जाते हैं अफसर
आप लोगों ने भी देखा व महसूस किया होगा कि चंदौली जिले में अफसर क्रय केंद्र प्रभारियों या धान खरीद केंद्रों पर किसी भी तरह की शिकायत मिलने पर मौके पर पहुंचने पर अक्सर ऐसे अनजान व मासूम बन जाते हैं, जैसे उन्हें किसी भी चीज का कोई पता ही नहीं हो। वह देखने जांच करने की बात कहकर कागज में नोट कर लेते हैं। उसके बाद क्या होता है..आप भी जानते व समझते होंगे।
आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अफसरों को इसी बात की तनख्वाह मिलती है और इन चीजों को देखना उनका काम है। जबकि सच्चाई ऐसी होती है कि उन्हें हर चीज का पता होता है और वह कुछ खास कारणों से इन में सुधार नहीं करना चाहते। मौके पर स्थानीय लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए जांच पड़ताल या कार्यवाही करने का आदेश निर्देश तो दे देते हैं लेकिन उसके बाद मामले में सेटिंग गेटिंग ही होती है।
अगर अफसर किसान की बात पर ईमानदारी से काम करें और चार पांच शिकायतों पर बड़ा एक्शन ले लें तो फर्क दिखेगा। पर जिले में तैनात अधिकारी फर्क दिखाने से ज्यादा .यथास्थिति बरकरार रखने में भरोसा रखते हैं।
चंदौली समाचार ने ये बातें किसानों व अफसरों से मिली जानकारी के आधार के साथ साथ नेताओं के बयान के आधार पर लिखी है। यह समस्याएं थोड़ी कम या अधिक हो सकती हैं, लेकिन इनको एक सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। इस समस्या का समाधान तभी होगा जब किसान-नेता-अफसर तीनों चाहेंगे और इमानदार पहल करेंगे।