..तो क्या चंदौली में महेन्द्र नाथ पांडेय लगाएंगे भाजपा की ओर से दूसरी हैट्रिक, ऐसे हैं जातिगत समीकरण
 

1984 में फिर कांग्रेस की वापसी हुई और कमलापति त्रिपाठी की बहू चंद्रा त्रिपाठी सांसद निर्वाचित हुईं। 1989 में जनता दल के टिकट पर कैलाशनाथ सिंह सांसद चुने गए।
 

चंदौली लोकसभा का चुनाव

हर दलों को चंदौली की जनता ने दिया था मौका

कांग्रेस के बाद भाजपा ने बनाया अपना गढ़

सपा-बसपा भी जोर आजमाइमश में जुटी

चंदौली जिले की लोकसभा में हर दल के लोग चुनाव जीतकर संसद में जा चुके हैं, लेकिन कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के सांसदों को सबसे अधिक मौका यहां की जनता ने दिया है, जबकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के भी सांसद चंदौली लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। बदलते समय में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी ने लगातार तीसरी बार मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय को लोकसभा का टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया है।

अगर यहां का इतिहास देखा जाय तो चंदौली जिले में 1952 में हुए पहले आम चुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी। 1962 तक यहां कांग्रेस अजेय रही। 1952 और 57 में डॉ. राम मनोहर लोहिया को भी यहां हार का सामना करना पड़ा था।

बताते चलें कि 1952 और 1957 दोनों ही चुनाव में उन्हें कांग्रेस पार्टी के त्रिभुवन नारायण सिंह ने शिकस्त दी थी। त्रिभुवन नारायण सिंह बाद में यूपी के सीएम भी बने। 1967 में चंदौली में सोशलिस्ट पार्टी के निहाल सिंह सांसद बने। 1971 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और सुधाकर पांडेय ने यहां से जीत दर्ज की। 1977 के चुनाव में नरसिंह भारतीय लोकदल के टिकट पर जीते थे और 1980 में जनता पार्टी के टिकट पर निहाल सिंह जीते थे।  

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1984 में फिर कांग्रेस की वापसी हुई और कमलापति त्रिपाठी की बहू चंद्रा त्रिपाठी सांसद निर्वाचित हुईं। 1989 में जनता दल के टिकट पर कैलाशनाथ सिंह सांसद चुने गए। इसके बाद कांग्रेस पार्टी कभी चंदौली की सीट नहीं जीत सकी।

1991 में पहली बार बीजेपी ने यहां जीत का खाता खोला और लगातार तीन बार 91, 96 और 98 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर आनंदरत्न मौर्य सांसद निर्वाचित हुए। लेकिन इसके बाद भाजपा को फिर से टिकट पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।

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1999 में समाजवादी पार्टी  के जवाहरलाल जायसवाल सांसद बनकर संसद में गए।  2004 में बसपा ने पहली बार सीट जीती जब बहुजन समाजवादी पार्टी के टिकट पर कैलाशनाथ सिंह यादव ने जीत हासिल की।  2009 में समाजवादी पार्टी के रामकिशुन यादव ने एक कांटेदार मुकाबले बसपा को हराकर सीट पर जीत हासिल की। सपा उम्मीदवार ने 459 वोटों से जीत हासिल की।

इसके बाद 2014 में भाजपा  डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय को उम्मीदवार बनाकर उतारा। उसके बाद  डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय ने 1 लाख 56 हजार 756 वोटों से जीत हासिल की थी।  इसके बाद जब 2019 में बीजेपी के डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय के खिलाफ बसपा व सपा के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में डॉ. संजय चौहान उतरे। इसके बाद भी 13 हजार 959 वोटों से जीत हासिल की। अब वह तीसरी बार उम्मीदवार के रूप में वोट मांग रहे हैं। जबकि सपा से वीरेन्द्र नाथ सिंह और बसपा के टिकट पर सत्येन्द्र मौर्या चुनाव मैदान में आकर वोट मांग रहे हैं।

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ऐसा है जातिगत आंकड़ा

बता दें कि 18 लाख से ज्यादा मतदाताओं वाली चंदौली लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा दलित व अनुसूचित जाति के मतदाता कहे जाते हैं। यहां यादव मतदाताओं की संख्या करीब दो लाख 75 हजार के आसपास हैं। वहीं दलितों का वोट भी लगभग 3 लाख के आसपास है। पिछड़ी जाति में आने वाले मौर्य बिरादरी की आबादी 1 लाख से डेढ़ लाख के बीच बतायी जाती है, जबकि राजपूत और ब्राह्मणों की तादात डेढ़-डेढ़ लाख के आसपास बताते हैं। लोकसभा के क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता भी करीब एक लाख के करीब हैं। वहीं राजभर व निषाद समाज के मतदाता भी 50-50 हजार के आसपास गिनाए जाते हैं।

ऐसे में जातिगत आंकड़ों को देखते हुए लोग अपने अपने पक्ष में समीकरण बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अब देखना यह है कि भाजपा की हैट्रिक लगती है या सपा-बसपा का सपना पूरा होता है।

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