चंदौली जिले में भी हैं ऑटिज्म के शिकार कई बच्चे, पहचान करके कराएं उपचार
जन्म के पहले साल में ही की जा सकती है लक्षण की पहचान
जिला अस्पताल में हर महीने आते हैं ऑटिज्म से पीड़ित 3-4 बच्चे
हजारों में से एक बच्चा हो ही जाता है ऑटिज्म का शिकार
चंदौली जिले के पं. कमलापति त्रिपाठी संयुक्त जिला चिकित्सालय में हर महीने ऑटिज्म से पीड़ित 3-4 बच्चे पहुंच रहे हैं। मनोचिकित्सक डॉ. नितेश सिंह का कहना है कि हजारों में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार होता है। उसके लिए दैनिक जीवन के काम करना, अपना नाम सुनते ही उसका जवाब देने में विफलता या लोगों से अलग-थलग रहने की समस्या हो सकती है। इसके लक्षण की पहचान जन्म के पहले साल में की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि इस रोग के शिकार बच्चों के तीमारदारों में जागरूकता बढ़ाने के उपाय करने और बच्चों में इसके जोखिम को कम करने के बारे में लोगों को शिक्षित करने का प्रयास किया जाता है। सभी लोगों को इस समस्या के वारे में जरूर जानना चाहिए। जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक की ओपीडी में एक माह में तीन-चार बच्चे ऐसे आ जाते हैं जो अपने आप में गुमसुम रहते हैं और उनका रहन सहन अलग होता है।
उन्होंने बताया कि ऐसे बच्चों के तीमारदारों को उनकी देखभाल करने के लिए काउंसिलर की ओर से विशेष जानकारी दी जाती है, ताकि वे अपने बच्चों का देखभाल कर सकें। पं. कमलापति त्रिपाठी स्वयं जिला चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज कुमार ने बताया कि ऑटिज्म को अंग्रेजी में स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का जाता है।
यह मस्तिष्क के विकास से संबंधित समस्या है जो इस बात को प्रभावित करती है कि एक व्यक्ति दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करता है। इसके शिकार लोगों में सामाजिक संपर्क और बातचीत के कौशल में समस्याएं होने लगती हैं। इस विकार के कारण व्यवहार और दैनिक जीवन के सामान्य कार्यों को करने तक में कठिनाई होने लगती है। लक्षण बचपन में दिखने लगते हैं। अक्सर बच्चों में जन्म के पहले साल में ही ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान की जा सकती है। 18-24 महीने की उम्र तक यह बढ़ी हुई समस्याओं के रूप में नजर आने लगती है।
मनोचिकित्सक डॉ नितेश सिंह ने बताया कि कुछ बच्चों में जन्म के पहले वर्ष में ही इसके स्पष्ट लक्षण नजर आने लगता हैं। जैसे बच्चों का आई कॉन्टैक्ट कम होना, नाम सुनने पर प्रतिक्रिया की कमी, बार-बार किसी बात को रटने रहना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होना आदि।
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