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ऑनलाइन गेमिंग का मायाजाल: बच्चों को कैसे बचाएं इस बढ़ते खतरे से

स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण: बच्चों का मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप इस्तेमाल करने का समय सीमित करें। विशेषज्ञों के अनुसार, 5 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए प्रतिदिन 1 से 2 घंटे का स्क्रीन टाइम पर्याप्त है।
 

आज के डिजिटल युग में तकनीक ने बच्चों की जिंदगी में एक अहम स्थान बना लिया है। पढ़ाई हो या मनोरंजन, सब कुछ अब स्क्रीन पर सिमट गया है। पर इसी तकनीक के साथ जुड़ा एक गंभीर खतरा है – ऑनलाइन गेमिंग की लत। यह एक ऐसा जाल है जिसमें बच्चे कब फंस जाते हैं, उन्हें और उनके माता-पिता को भी पता नहीं चलता।

बढ़ती समस्या: एक चिंताजनक ट्रेंड

हाल ही के वर्षों में ऑनलाइन गेम्स की लोकप्रियता में तेजी से इज़ाफा हुआ है। गेमिंग कंपनियां बच्चों को लुभाने के लिए आकर्षक ग्राफिक्स, रिवॉर्ड सिस्टम और प्रतियोगिताएं पेश करती हैं। इससे बच्चे घंटों स्क्रीन से चिपके रहते हैं, जिससे न केवल उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि वे कई बार ऑनलाइन ठगी और साइबर अपराधों का भी शिकार बन जाते हैं।


क्या है खतरा?

मनोवैज्ञानिक प्रभाव: बच्चों में चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी, नींद की कमी और व्यवहार में बदलाव जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। कुछ मामलों में तो बच्चे डिप्रेशन और एंग्जायटी का भी शिकार हो जाते हैं।

शारीरिक स्वास्थ्य: अधिक समय तक स्क्रीन पर आंखें गड़ाए रखने से सिरदर्द, आंखों में जलन और मोटापा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

शैक्षणिक प्रदर्शन पर असर: गेमिंग में लिप्त रहने से बच्चे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते, जिससे उनके रिजल्ट और भविष्य पर असर पड़ता है।

साइबर अपराध: कई बार गेमिंग के नाम पर फर्जी वेबसाइट्स और नकली ऐप्स बच्चों को टारगेट करती हैं। उनसे निजी जानकारी ली जाती है या ऑनलाइन पैसे ठग लिए जाते हैं।


माता-पिता की भूमिका: सावधानी ही सुरक्षा है

बच्चों को इस खतरे से बचाने के लिए अभिभावकों को सजग और सतर्क रहना होगा। कुछ जरूरी कदम:

  •  स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण: बच्चों का मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप इस्तेमाल करने का समय सीमित करें। विशेषज्ञों के अनुसार, 5 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए प्रतिदिन 1 से 2 घंटे का स्क्रीन टाइम पर्याप्त है।
  •  खुले संवाद का माहौल बनाएं: बच्चों से दोस्ताना तरीके से बात करें। उनसे पूछें कि वे कौन-कौन से गेम खेलते हैं, उनमें क्या खास है और वे किससे ऑनलाइन बात करते हैं।
  • गेम को पहले खुद जांचें: कोई भी गेम बच्चों को देने से पहले उसे खुद खेलकर देखें या उसकी रेटिंग, समीक्षा और अनुमति मांगी जाने वाली एक्सेस को समझें।
  • फर्जी ऐप्स से सावधान: केवल आधिकारिक ऐप स्टोर (जैसे Google Play Store या Apple App Store) से ही गेम डाउनलोड करें। थर्ड पार्टी वेबसाइट्स से गेम डाउनलोड करना खतरनाक हो सकता है।
  • बदलते व्यवहार पर ध्यान दें: यदि बच्चा अचानक गुस्सैल हो गया है, अकेले रहना पसंद करने लगा है, या पैसे की मांग बढ़ गई है तो यह संकेत हो सकता है कि वह गेमिंग की लत का शिकार हो रहा है।
  • साइबर अपराध की शिकायत करें: अगर कोई गेम या ऑनलाइन गतिविधि से जुड़ी समस्या सामने आती है तो तुरंत 1930 पर कॉल करें या www.cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें।

टेक्नोलॉजी का संतुलित उपयोग

ऑनलाइन गेमिंग को पूरी तरह से बुरा कहना गलत होगा क्योंकि कुछ गेम्स बच्चों की सोचने की क्षमता और रिफ्लेक्सेस को बेहतर बनाते हैं। लेकिन जब इसका इस्तेमाल अति हो जाए, तो यह नुकसानदायक बन जाता है। जरूरी है कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल समझदारी और संतुलन के साथ हो।

निष्कर्ष

आज के समय में बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग के दुष्प्रभाव से बचाना उतना ही जरूरी है जितना उन्हें स्कूल भेजना या टीकाकरण कराना। टेक्नोलॉजी से दोस्ती जरूरी है, लेकिन बिना नियंत्रण के यह दोस्ती बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बना सकती है। अभिभावकों, शिक्षकों और समाज को मिलकर इस दिशा में गंभीर कदम उठाने होंगे।

याद रखें, सावधानी ही सुरक्षा है। बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखें, संवाद बनाए रखें, और जरूरत पड़ने पर तुरंत मदद लें। तभी हम अपने बच्चों को इस मायाजाल से सुरक्षित निकाल पाएंगे।

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