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अपने घर सगड़ी से जाते हैं हनुमान मंदिर के महंत बसंत मिश्रा, रामगढ़ से 250 किलोमीटर दूर है घर

वैष्णो रामशाला हनुमान मंदिर के महंत बसंत मिश्रा बहुत ही मेहनती इंसान हैं और वह जब भी अपने गांव जाते हैं तो वह किसी वाहन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि वह खुद  अपनी ट्रॉली या सगड़ी चलाकर जाते हैं।
 

 देवरिया जिले के सलेमपुर तहसील के निवासी है बसंत

55 साल की उम्र में भी करते हैं मेहनत

जानिए क्यों नहीं वाहन से घर जाते हैं महंत बसंत मिश्रा

 

चंदौली जिले के चहनिया विकास खंड के रामगढ़ में  स्थित वैष्णो रामशाला हनुमान मंदिर के महंत बसंत मिश्रा बहुत ही मेहनती इंसान हैं और वह जब भी अपने गांव जाते हैं तो वह किसी वाहन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि वह खुद  अपनी ट्रॉली या सगड़ी चलाकर जाते हैं।

आप को बताते चलें कि बसंत मिश्रा देवरिया जिले के सलेमपुर तहसील के निवासी हैं। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के चहानियां  विकासखंड के अंतर्गत रामगढ़ गांव मे वैष्णव रामशाला हनुमान मंदिर में महंत एवं पुजारी के रूप में कार्यरत हैं। इनकी उम्र 55 वर्ष के आसपास। ये जब भी अपने घर जाते हैं अपने निजी वाहन लारी, ट्रॉली या गंवई भाषा में सगडी से जाते हैं। इस लारी पर लगभग तीन कुन्तल भार लेकर भी चलते हैं। वैसे इनका घर रामगढ़ से 250 किलोमीटर दूर है। इनको अपने घर जाने में दो दिन लगत हैं। बीच मे ये बलिया जिले के नगरा बाजार के पास रूकते हैं ।फिर वहां से अपने घर को दूसरे दिन पहुँचते हैं। फिर वापस भी अपनी त्रिचक्र वाहिनी से आते हैं।

आशय यह है कि वर्तमान युग में भाग दौड़ में जहाँ मानव सामान लेने या रिलेशन में जाने के लिए अपने निजी साधन का उपयोग करता है। वही इसके विपरीत कुछ गरीब व हालात के मारे, साधन व पैसे की कमी से लोग  अपने कदम से धरती नाप लेते हैं। प्राचीन काल में साधन के अभाव में एक दूसरे देश की यात्रा पैदल ही करते थे। उस समय पैदल चलने से शारीरिक व मानसिक ब्यायाम हो जाता है।  लेकिन आज का युवा पैदल चलना नहीं चाहता है, जिससे वह तमाम रोगों व कुंठा से ग्रस्त है। वर्तमान समय में युवा अपना समय  मोबाइल व फालतू समय में ब्यतीत कर रहा है जरा सा दबाव व तकलीफ होने पर घबरा जाता है,सिंह, शायर और सपूत किसी के बनाये हुए रास्ते पर नहीं चलते वह अपना मुकाम खुद तय करते हैं। तू खुद को इतना कमजोर मत होने दे कि तुझे किसी के ऐहसान की जरूर पडे तूँ लगातार चलता रहें, सफलता के लिए तेज चलना जरुरी नहीं है, ब्लकि लगातार चलना जरूरी है, बेकार बैठने से तो लोहे में भी जंग लग जाती है।

बसंत मिश्रा जी लगातार चलकर आजके युवाओं के लिए एक प्रेरणा श्रोत हैं आज के युवा पीढी को इनसे सिंख लेना चाहिए और अपने कर्तव्य पथ पर लगातार आगे बढ़ना चाहिए, चाहे राह में आँधी और तुफान आये तुम घबराओ मत अपने अंदर हिम्मत की लौ को लगातार जलने दो।

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