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शिक्षक दिवस विशेष : शिक्षकों में ऐसे गुण की कल्पना करते थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। शिक्षा के महत्व को उन्होंने जिस तरह रेखांकित किया, वह अनुकरणीय है। एक आदर्श शिक्षक श्री राधाकृष्णन ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किए। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद
 
शिक्षक दिवस विशेष : शिक्षकों में ऐसे गुण की कल्पना करते थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन

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हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। शिक्षा के महत्व को उन्होंने जिस तरह रेखांकित किया, वह अनुकरणीय है।

एक आदर्श शिक्षक

श्री राधाकृष्णन ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किए। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे।

राधाकृष्णन का मानना था कि ‘एक अच्छे शिक्षक को पता होना चाहिए कि वह अध्ययन के क्षेत्र में छात्रों की रुचि कैसे पैदा कर सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल होते हुए, उसे इस क्षेत्र में आ रहे सारे परिवर्तनों की जानकारी होनी चाहिए।’

डॉ राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनंददायी अभिव्यक्ति और हंसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। वे छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। वे जिस विषय को पढ़ाते थे, पढ़ाने के पहले स्वयं उसका अच्छा अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वे अपनी शैली की नवीनता से सरल और रोचक बना देते थे।

1962 में जब वे भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने, तो उनके कुछ शिष्य और प्रशंसक उनके पास गए। उन्होंने उनसे निवेदन किया था वे उनके जन्मदिन को एक समारोह के रूप में मनाना चाहते हैं। यह सुनकर उन्होंने कहा, ‘सिर्फ मेरा जन्मदिन मनाने से अच्छा अगर तुम इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाओगे, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी।’ तब से 5 सितम्बर सारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। उनकी यह इच्छा अध्यापन के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है। वे जीवनभर अपने आप को शिक्षक मानते रहे।

मात्र ढाई हज़ार वेतन

1952 से 1962 तक देश के उप-राष्ट्रपति रहने के बाद सन् 1962 में वे भारत के राष्ट्रपति चुने गए। उन दिनों राष्ट्रपति का वेतन 10 हजार रुपए मासिक था लेकिन डॉ राधाकृष्णन मात्र ढाई हजार रुपए ही लेते थे और शेष राशि प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करा देते थे। देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचकर भी वे सादगी भरा जीवन बिताते रहे।

साक्षर हमें बनाते हैं,

जीवन क्या है समझाते हैं।

जब गिरते हैं हम हार कर तो साहस वही बढाते हैं,

ऐसे महान व्यक्ति ही तो शिक्षक व गुरु कहलाते हैं।

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