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जरा याद करो कुर्बानी : करो या मरो का नारा लगा कर आज ही के दिन फूंका गया था सैयदराजा थाना

 

देश को आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी ने जब 9 अगस्त 1942 को मुंबई के नरीमन प्वाइंट्स से करो या मरो का सिंहनाद किया तो उसका असर सैयदराजा की धरती पर भी देखा गया था। कहते हैं कि यहां के देशभक्तों ने भी आंदोलन को अपने हाथ में लिया और यहां के जर्रे-जर्रे में क्रांति की चिंगारी दहक उठी थी। सैयदराजा कांड की बरसी शनिवार को मनाई जा रही है। 
 
आप को बता दें कि 16 अगस्त को धानापुर में तिरंगा फहराने के बाद क्रांतिकारियों ने 28 अगस्त 1942 को जान की बाजी लगाकर सैयदराजा थाने पर तिरंगा फहरा दिया था। बताया जाता है कि मुटकपुआं निवासी जगत नारायण दुबे साथियों संग सैयदराजा थाने पर पहुंचे। दारोगा तक बात गई कि स्वतंत्रता सेनानी थाने पर तिरंगा फहराना चाहते हैं। दारोगा ने मना किया और कहा यदि इस तरह की कोई भी गलती की गई तो अंजाम बहुत बुरा होगा, लेकिन सिर पर कफन बांध कर पहुंचे रणबांकुरों ने हल्ला बोल दिया। थाने को आग के हवाले कर दिया गया। फिरंगी जब मुंह की खाने लगे तो बंदूकों का सहारा लिया और तड़ातड़ फायरिंग शुरू कर दी। थाना पर तिरंगा फहराने की कोशिश में आजादी के तीन सिपाही शहीद हो गए। जबकि चौदह अन्य सेनानी भी गोली से जख्मी हुए। खुद जगत नारायण दुबे को दो गोली लगी। पुलिस की गोलाबारी में दर्जनों लोग बुरी तरह से घायल भी हुए। कहते हैं कि पुलिस ने यहां 920 राउंड गोलियां चलाई थी। 


इस दौरान सैयदराजा में 28 अगस्त को श्रीधर, फेकू राय, और गणेश सिंह भी शहीद हो गए थे। बावजूद, इसके सैयदराजा थाना भवन पर थोड़ी देर के लिए ही सही तिरंगा फहराया। उस ऐतिहासिक घटना की यादें आज भी ताजा बनी हुई हैं। 

आजादी के पहले आजाद हुए धानापुर व सैयदराजा कांड की गूंज ब्रिटेन की संसद में सुनायी दी थी। इस घटना ने प्रधानमंत्री चर्चिल को बयान देने को मजबूर कर दिया था। इस कांड में फंसे क्रांतिकारियों की पैरवी अधिवक्ताओं ने बिना किसी शुल्क के किया था। 16 अगस्त 1942 को धानापुर में घटी घटना ने रातों-रात विश्व विख्यात कर दिया था। 

जिले में नौ से 28 अगस्त तक लगातार क्रांतिकारियों का जुलूस निकालता रहा। 13 से 28 अगस्त के बीच चार दिन तत्कालीन बनारस के चार स्थानों पर क्रांतिकारियों पर फायरिंग हुई थी। इसमें 15 क्रांतिकारी शहीद हो गए थे। 

कहा जाता है कि धानापुर के आंदोलन के बाद सैयदराजा में पंडित जगत नारायण दुबे, स्वर्गीय देवनाथ सिंह, चंद्रिका दत्त शर्मा, रामनरेश सिंह, रामधनी सिंह, रामदेव सिंह, जोखन सिंह, राम सेवक राम, राम सुधार पांडेय आदि आंदोलनकारियों ने अपने हौसले से थाने पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया। 

पहले से सतर्क पुलिस ने गोली चला कर उनको रोकने का प्रयास किया और गोलीबारी में यहां भी श्रीधर, फेंकू राय और गणेश सिंह शहीद हो गए।

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