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सर्दियों में प्यास न लगना शरीर के लिए खतरे की घंटी, इन अंगों पर होता है खास असर

सर्दियों में तापमान गिरने के साथ प्यास कम महसूस होना एक गंभीर समस्या बन सकती है। जानें क्यों ठंड में शरीर पानी की मांग कम कर देता है और कैसे 'थर्मल डिहाइड्रेशन' आपके मस्तिष्क और त्वचा को नुकसान पहुँचाता है।
 

सर्दियों में थर्मल डिहाइड्रेशन का खतरा

ठंड में प्यास कम लगने का वैज्ञानिक कारण

हीटर और ब्लोअर से बढ़ता डिहाइड्रेशन

त्वचा और किडनी पर बुरा असर

सर्दियों में हाइड्रेटेड रहने के आसान टिप्स

सर्दियों में प्यास का विज्ञान और डिहाइड्रेशन का भ्रम सर्दियों का मौसम जितना सुहावना होता है, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उतना ही चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है। इस मौसम में सबसे बड़ा स्वास्थ्य जोखिम डिहाइड्रेशन यानी शरीर में पानी की कमी के रूप में सामने आता है। गर्मियों के दौरान शरीर पसीने के माध्यम से पानी बाहर निकालता है, जिससे हमें प्यास का तीव्र अनुभव होता है और हम पर्याप्त पानी पीते हैं। इसके विपरीत, जैसे ही पारा गिरता है, शरीर की प्यास महसूस करने की क्षमता कम हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, प्यास न लगना इस बात का संकेत नहीं है कि शरीर को पानी की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह शरीर की एक जटिल आंतरिक प्रक्रिया का परिणाम है।

ठंड में प्यास कम लगने का मुख्य वैज्ञानिक कारण 
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (एनसीबीआई) के शोध बताते हैं कि सर्दियों में शरीर की रक्त कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं ताकि शरीर की आंतरिक गर्मी को बचाया जा सके। जब ये नसें सिकुड़ती हैं, तो मस्तिष्क के उस हिस्से तक रक्त का प्रवाह बदल जाता है जो प्यास को नियंत्रित करता है। इस अवस्था में दिमाग का प्यास केंद्र शरीर में पानी की वास्तविक कमी का सटीक आकलन नहीं कर पाता। इस स्थिति को वैज्ञानिक रूप से 'थर्मल डिहाइड्रेशन' कहा जाता है। यही कारण है कि प्यास न लगने के बावजूद शरीर अंदरूनी तौर पर पानी की कमी से जूझ रहा होता है।

अदृश्य रूप से कम होता शरीर का पानी 
सर्दियों में पानी की कमी केवल प्यास न लगने तक सीमित नहीं है। हवा में नमी का स्तर कम होने के कारण जब हम सांस लेते हैं, तो शरीर के अंदर की गर्म हवा वाष्प के रूप में बाहर निकलती है। इसे 'रेस्पिरेटरी फ्लूइड लॉस' कहा जाता है, जिससे फेफड़ों के माध्यम से पानी का निरंतर ह्रास होता रहता है। इसके अतिरिक्त, ऊनी और भारी कपड़ों के नीचे होने वाला सूक्ष्म पसीना भी शुष्क हवा में तुरंत सूख जाता है, जिससे हमें अपनी त्वचा से होने वाले पानी के नुकसान का आभास नहीं होता। ऑफिस और घरों में चलने वाले हीटर व ब्लोअर हवा की नमी सोखकर गले, नाक और त्वचा को और अधिक शुष्क बना देते हैं।

डिहाइड्रेशन के गंभीर लक्षण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
 शरीर में पानी की कमी के लक्षण अक्सर थकान और ऊर्जा की कमी के रूप में प्रकट होते हैं। यदि आपको बार-बार सिरदर्द, गहरे पीले रंग का पेशाब, कब्ज, फटे होंठ या त्वचा में अत्यधिक रूखापन महसूस हो रहा है, तो यह डिहाइड्रेशन के स्पष्ट संकेत हैं। लंबे समय तक पानी की कमी मेटाबॉलिज्म को सुस्त कर देती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम को कमजोर बना देती है। इतना ही नहीं, पानी की कमी मस्तिष्क की कार्यक्षमता को भी धीमा कर सकती है और भविष्य में किडनी से जुड़ी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है।

सर्दियों में हाइड्रेटेड रहने के प्रभावी और आसान तरीके
 सर्दियों के दौरान शरीर में पानी का संतुलन बनाए रखना बहुत सरल है, बशर्ते कुछ आदतों को जीवनशैली में शामिल किया जाए। दिन की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी के साथ करने से पाचन तंत्र सक्रिय होता है। पानी पीने को दिनचर्या का हिस्सा बनाने के लिए हर 90 मिनट का अलार्म लगाया जा सकता है या पानी की बोतल को हमेशा आंखों के सामने रखा जा सकता है। इसके अलावा, खान-पान में सूप, संतरा, अंगूर और मौसमी सब्जियों जैसे तरल पदार्थों की मात्रा बढ़ानी चाहिए। चाय या कॉफी जैसे कैफीन युक्त पेय पदार्थों के सेवन से पहले पानी पीना भी जरूरी है ताकि शरीर का जलीय संतुलन बना रहे।

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