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धनुष कठोरता का प्रतीक और कठोरता का मतलब अहंकार : आस्था दुबे

कठोरता का मतलब अहंकार होता है। भगवान को अहंकार को तोड़ने में तनिक भी देरी नहीं होती। लेकिन फूल जैसी कोमल भावना को तोड़ने में भगवान को भी पसीना छूट जाया करता है। 
 

चंदौली जिले के शहाबगंज क्षेत्र के अमांव गांव में चल रहे नौ दिवसीय संगीतमय रामकथा के छठवें दिन बाबा मुरलीधर खेल मैदान  में लक्ष्मण परशुराम संवाद प्रसंग सुनाते हुए कथा वाचिका आस्था दुबे ने  कहा कि वाणी में संयम जरूरी है। उन्होंने कहा कि शरीर के दो अंग रस इंद्रिय और जन इंद्रिय पर काबू रखना होगा। जिस दिन दोनों इंद्रिय ढीली होगी तो समाज में अनाचार और अत्याचार बढ़ेगा।

 धनुष यज्ञ प्रसंग, लक्ष्मण परशुराम संवाद तथा सीता स्वयंवर प्रसंग के माध्यम से जनमानस को सही जीवन जीने का विशेष सूत्र दिया। धनुष यज्ञ प्रसंग को सुनाते हुए  दुबे ने कहा कि धनुष कठोरता का प्रतीक है। कठोरता का मतलब अहंकार होता है। भगवान को अहंकार को तोड़ने में तनिक भी देरी नहीं होती। लेकिन फूल जैसी कोमल भावना को तोड़ने में भगवान को भी पसीना छूट जाया करता है। 

विश्वामित्र जी के साथ श्रीराम और लक्ष्मण जी जनकपुर धनुष यज्ञ में जाते हैं। इस पर महाराज श्री ने कहा कि किसी भी यज्ञ को पूर्ण होने में सत्य और समर्पण की जरूरत है। राम यानी सत्य और लक्ष्मण यानी समर्पण। लक्ष्मण जी समर्पण और वैराग्य की प्रतिमूर्ति हैं। यह दोनों जिस यज्ञ में जाएंगे वही यज्ञ पूर्ण होगा। इसी क्रम में पुष्प वाटिका का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि पुष्प बाग अर्थात संतों का समूह ही भाग है, जिनको भी संत या भगवंत का दर्शन हुआ है उनको बाग में जाना पड़ा है। बिना बाग में गए ना संत का दर्शन होगा और ना ही भगवंत का। आगे की चर्चा में उन्होंने कहा अंत में सीता स्वयंवर प्रसंग में महाराज श्री ने जनकपुर अर्थात मिथिला नगरी का जीवंत दर्शन कराया।

इस दौरान हौसिला विश्वकर्मा, भोनू चौहान, मिथिलेश कुमार, रामकेवल चौहान, हनुमान, विकास, सुनील, राकेश पाठक, रमेश यादव, मुकेश यादव, इन्दावती, अमरावती पुनम गायत्री, सबिता ममता, मंजू, शान्ति, संगीता आदि भक्तगण उपस्थित थे।

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