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पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला, अजय राय ने की कार्रवाई की मांग

छत्तीसगढ़ में एक युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या एक अरबपति ठेकेदार ने महज इसलिए कर दी क्योंकि उसकी बनाई सड़क के गढ्ढों पर एक खबर उसे नागवार गुजरी थी।
 



मुगलसराय में पत्रकार संगठन व पत्रकार साथियों ने सड़क पर उतर कर जताया विरोध

चंदौली जनपद में अन्य जगहों के पत्रकारों की चुप्पी तोड़ सड़क पर उतरने की किया अपील

चंदौली जिले में चकिया इलाके के निवासी और  एआईपीएफ राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय ने कहा कि पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्या नृशंस लोकतंत्र  के चौथे स्तंभ पर हमला है। यह किसी एक व्यक्ति की हत्या नहीं बल्कि कलम के सच्चे सिपाही जो चौथे स्तंभ की मान मर्यादा और सम्मान को अपना अभियान मानकर सामाजिक चेतना जन जागृति के लिए चारों पहर बिना किसी सुरक्षा बिना किसी लोभ निडर होकर निर्भीकता से लोगों की आवाज है। दमनकरियों द्वारा इस तरीके से मौत की घाट उतारना लोकतंत्र को खुली चुनौती है और सरकार के लिए उसके मुंह पर कालिख।

उन्होंने कहा कि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, क्योंकि यह जनता और सत्ता के बीच संवाद का माध्यम है। पत्रकार समाज की आवाज़ उठाते हैं, अनियमितताओं को उजागर करते हैं और सच को सामने लाने का कार्य करते हैं। लेकिन जब पत्रकारों को उनकी जिम्मेदारियों के लिए निशाना बनाया जाता है, तो यह न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि समाज और लोकतंत्र पर भी गहरा प्रहार है।

उन्होंने कहा कि सड़क को सड़क पर उतर कर विरोध न करना कोई नई बात नहीं हैं आज कल पत्रकारों की लम्बी लिस्ट हैं जो सत्ता व अधिकारियों की चाटूकारिता कर उदर पुर्ति करते हैं। छत्तीसगढ़ में एक युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या एक अरबपति ठेकेदार ने महज इसलिए कर दी क्योंकि उसकी बनाई सड़क के गढ्ढों पर एक खबर उसे नागवार गुजरी थी। हत्या का राज उजागर नहीं होता अगर मारे गए पत्रकार की गुमशुदगी से परेशान उसके मित्र पत्रकारों ने निजी खोजबीन न की होती। पुलिस गुमशुदगी पर भी बहुत एक्टिव नहीं थी और दिल्ली या राज्य के मीडिया को तो छोड़िए, खुद उसके जिले में भी मीडिया समूहों ने इस पर कोई हो हल्ला नहीं मचाया। खुद मुकेश जिस संगठन एनडीटीवी के लिए पत्रकारिता करता था, उसने भी इसे कोई गंभीर या ध्यान देने योग्य मुद्दा नहीं बनाया।

जब मित्र मंडली के हो हल्ला मचाने के बाद ठेकेदार के एक परिसर से पत्रकार की लाश मिली, तो भी मीडिया समूहों ने इसे किसी बड़ी या चिंताजनक खबर की तरह पेश नहीं किया। एक बड़े मीडिया समूह ने तो मुकेश को पत्रकार की बजाय यूट्यूबर लिखा। मानों पत्रकार केवल उन्हें ही माना जाएगा, जिन्हें सरकार मान्यता प्राप्त का दर्जा देती है। जबकि मान्यता लेने के लिए या लेने के बाद पत्रकार कितनी पत्रकारिता करते हैं और सरकार की कितनी चाटुकारिता, दलाली या गलत धंधे करते हैं, यह शायद ही किसी को नहीं पता होगा।

बहरहाल, स्थानीय स्तर पर उन्हीं तथाकथित यूट्यूबर यानी पत्रकारों ने जमकर हो हल्ला मचाया तो राज्य में खलबली मच गई। ठेकेदार की गिरफ्तारी और बुलडोजर एक्शन आदि की शुरुआत हुई। सिवाय छिटपुट बयानबाजी के उनकी तरफ से कोई हो हल्ला नहीं हुआ। न ही मीडिया समूहों ने इसे कोई बड़ा मुद्दा बनाया। ऐसे में ज्यादातर खबरें मुझे भड़ास पर ही मिलीं, जिसने इस मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा लिखा और पत्रकारों के बीच अहम बनाए रखा।

इसके बावजुद जब मुकेश जैसे युवा पत्रकारों को मीडिया को मिशन मानकर अपनी जान गंवाते देखता हूं तो दिल नहीं मानता और कुछ लिख ही देता हूं। क्योंकि मिड डे मील में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले मिर्जापुर के बनारस में मुसहर परिवार को एक तरह  की घास खाने को लेकर सवाल उठाने पर पत्रकारों  पर दमन होते देखा हैं।

अंत में में  छोटी छोटी बात पर अधिकारियों के खिलाफ  व कई नेताओं के द्वारा पत्रकार  बंधुओं के खिलाफ कुछ  बोलने पर धरना देते हैं  उनकी भावना  आहत होती है। उन पत्रकार संगठन व पत्रकार बंधुओं को  आज भी इस नृशंस हत्या पर आवाज उठाने की जरूरत हैं।

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