कहीं बिराजे रामलला कहीं चले बुलडोजर..कविता पर लगे ठहाके
चंद्रप्रभा साहित्यिक संस्था की मासिक गोष्ठी संपन्न
कई बुद्धिजीवियों ने की शिरकत
अपनी अपनी कविता से किया व्यंग
सर्वप्रथम वरिष्ठ साहित्यकार संस्था के अध्यक्ष बेचई सिंह मालिक द्वारा रामकेश सिंह केश के तैल चित्र पर माल्यार्पण करके कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। संस्था के सचिव डॉ हरिवंश सिंह बवाल द्वारा उनकी स्मृतियों को चर्चा करते हुए बताया कि संकोची स्वभाव के स्पष्टवादी कवि थे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में वाणी वंदना अलियार प्रधान -विणवा के तार झंकार था हे माई सुनाया। एडवोकेट प्रदीप पाठक गांव वालों न भुलों गांवों को। मनोज द्विवेदी मधुर-किसने कितना किया है देख लिया। किसने कितना दिया है देख लिया। शशिरंजन सिंह श्रीकृष्ण- मिथिलेश सिंह - कहीं विराजे रामलला कहीं चले बुलडोजर। कहीं होत बा प्राण प्रतिष्ठा कहीं होत प्राण कै शोषण। सरकार पर तंज कसती हुई है कविता सुनाया। बेचई सिंह मालिक ने नए साल पर जनता नयी सरकार लाएगी ।
राजेंद्र प्रसाद भ्रमर -नव वर्ष सुखद मंगलमय हो। उपस्थित सभी लोगों को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए। शिवदास अनपढ़-राम नाम सत्य ह त का कोई के वियाहे में बोलबा। मेहर तोहर रहे त का नंगा चौराहे पर करबा। तेजबली अनपढ-कांच का दिल बनावो ना उजड़े चमन। प्रेम की ज्योति से जगमग होवे अमन वसीम अहमद-नए साल पर जश्न मनावे, पीके दारु बियर, बोले हैप्पी न्यू ईयर आधुनिक नव वर्ष व्यंगात्मक प्रहार करती हुई कविता की प्रस्तुति की और श्रोताओं से वाह वाही लुटी।
बंधु पाल बन्धू-नया-नया फसल चूड़ा चावल गुड़ नया-नया नई आलू गोभी से भरल भंडार बा। सुना कर गांव के नया साल का आभास कराया।
आधुनिक नया साल पर व्यंग्य करते हुए राजेश विश्वकर्मा राजू-बस जनवरी क बदलल कैलेंडर दिखे,का एहीं से कहीं की नया साल हव। अलियार प्रधान-जाहो पुराने नया जाने आवा, खुशियां मनावा जी खुशियां मनावा। संतोष कुमार धुर्त-फटेहाल थे फटेहाल है फटे रहेंगे फटेहाल , मनाए कैसे नया साल।
इस अवसर पर दो अमरेश चंद्र शर्मा, शैलेश शर्मा, रवि कुमार, अजय सहित तमाम लोग उपस्थित रहे। अध्यक्षता बेचई सिंह मलिक ने संचालन हरिवंश सिंह बवाल ने किया।
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