क्षेत्र में धूमधाम से मनायी गई रविदास जयंती, सन्त रविदास के कार्यक्रम में पहुंचे पूर्व विधायक

कर्म और स्वभाव दोनों से मानवतावादी थे संत रविदास
पूर्व विधायक जितेंद्र कुमार ने पूजा पाठ में शिरकत
कई गावों की पूजा में हुए शामिल
चंदौली जिले के शहाबगंज मे संत शिरोमणि रविदास जयंती को क्षेत्र में बड़े ही धूमधाम से मनायी गयी।क्षेत्र के विभिन्न दलित बस्तियों में लोगों ने संत रविदास की मूर्ति स्थापित कर भजन-कीर्तन व पूजा किया। मंगलवार को देरशाम से ही दलित बस्तियां गुलजार रहीं।
क्षेत्र के तियरा, अताय, बजनपुरवां, शहाबगंज, करनौल, मुरकौल, ठेकहां, सारिंगपुर, एकौना, अमांव, कवलपुरवां, रामपुर, जिगना, खखड़ा, खिल्ची, बिलासपुर, महड़ौर, रसियां, सलयां सहित आदि गावों में हर्षोल्लास के बीच मनाया गया।

इस दौरान विभिन्न गांवों में विचार गोष्ठी का आयोजन भी हुआ जहां संत रविदास के विचार पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान पूर्व विधायक जितेंद्र कुमार ने कहा कि संत रैदास कर्म तथा स्वभाव दोनों से मानवतावादी थे।वह आज कल के समाज सुधारकों जैसे नहीं थे।उनको अपने प्रचार-प्रसार की लालसा नहीं थी। उन्होंने करुणा,मैत्री, प्रज्ञा,चेतना एवं वैचारिकता द्वारा देश के दीन-हीन अवस्था और भेदभाव को समूल समाप्त करने का सदैव प्रयास किया था उनका समदर्शी भाव, समाज उत्थान, निरीह प्राणियों की सेवा ही उत्कृष्ट मानवता थी।
उन्होंने आगे कहा कि संत रैदास जी बचपन से ही सुधारात्मक प्रवृत्ति के थे। मानवतावादी विचारों का प्रचार-प्रसार जीवनपर्यन्त किया। उन्होंने कहा कि रैदास जी कहते हैं कि जिस समाज में अविद्या है अज्ञानता है,उस समाज का उत्थान सम्भव नहीं है। मानव का स्वाभिमान सुरक्षित नहीं रह सकता है।उन्होंने कहा कि वास्तविक ज्ञान का प्रकाश विद्या से ही प्राप्त किया जा सकता है,इसलिए सभी मानव को विद्या अर्जन करनी चाहिए।

उनका कहना है कि बुद्धि, विचार, विवेक के बिना सभी अन्धे के समान हैं।उन्होंने कहा कि रैदास कई बार बुद्ध की बात को बढ़ाते दिखते हैं। तथागत ने भी तर्क की कसौटी पर परखने की बात कही है और वैचारिक क्रान्ति के प्रणेता रैदास ने कहा मन ही सेऊं सहज स्वरूप तथागत बुद्ध ने धम्मपद की दो गाथाओं में भी यही बात कही, जिसका चित राग द्वेष आदि से निरपेक्ष विरत व स्थिर है, पाप-पुण्य निहित है उस पुरुष के लिए भय नहीं है। सन्तों की सुमिरिनी बौद्धों की स्मृति का ही दूसरा रूप है।
उन्होंने कहा कि क्रान्तिकारी रैदास ने बताया कि सिर मुड़ाने, पूजा करने, कठिन तपस्या करने, योग एवं वैराग्य से इच्छाओं का दमन नहीं होता है। यही बात तथागत बुद्ध ने भी अपने धम्मदेशना में बताई कि माया मोह व तृष्णा में लिप्त मनुष्य की शुद्धि न नंगे रहने से न जटा रखने से, न कीचड़ लपेटने से, न उपवास करने से, न तपती धूप में सोने से, न धूल लपेटने से और न उकड़ूं बैठने से होती है।कई बार दिखता है कि रैदास ने तथागत बुद्ध से भी जबरदस्त प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि सन्त शिरोमणि रैदास कहते हैं कि ‘अरे मन तू अब अमृत देश को चल जहां न मौत है न शौक है और न कोई क्लेश। हे निरंजन निर्विकार मैं आपका जन हूं।लोक और वेद का खण्डन करके आपकी शरण में आया हूं। तथागत बुद्ध ने कहा- अन्धविश्वासों को त्यागो और प्रज्ञा पर आधारित मध्यम मार्ग अपनाओ। इसी तरह क्रान्तिकारी रैदास ने अन्धविश्वासों को त्यागने का आवाह्न किया। और तथागत बुद्ध ने सभी दुःखों का और अन्धविश्वासों का कारण अविद्या बताया।A
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