कैसे कंफर्म होगी गांवों में पंचायत की खुली बैठक, अधिकांश जगहों पर होती है खानापूर्ति
गांव वालों के सामने होने वाली खुली बैठकें कागजों तक सिमटीं
ग्रामीणों की सहमति से कम बनती है विकास की कार्य योजना
पहले दो-तीन दिन पूर्व गांव की गलियों में कराई जाती थी मुनादी
फिर लोगों के साथ होती थी मीटिंग
चंदौली जिले के शहाबगंज विकास खंड में ग्राम पंचायत की खुली बैठक कागजों तक सिमट कर रह गई है। इससे ग्रामीणों के अति आवश्यक कार्य गांव में नहीं हो पाते हैं। इससे ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों की हर सुविधा के लिए ग्राम स्वराज की स्थापना की गई है। जिसमें गांव के हर विकास की सुगमता से जानकारी मिल सके। साथ ही खुली बैठक में कार्य योजना बनाकर गांव के अतिआवश्यक कार्य की रूपरेखा तैयार होती है। जिस पर ग्रामीण सहमति देते है। लेकिन अब गांव पंचायत की खुली बैठक मात्र कागजों पर होती है। वहीं बीडीओ साहब अपना रटा-रटाया जबाव देकर हकीकत से पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं।
आपको बता दें कि खुली बैठक के लिए पंचायत सचिव दो-तीन दिन पूर्व गांव के समस्त गलियों में मुनादी कराते थे। निश्चित तिथि व निश्चित स्थान पर गांव के जागरूक निवासी खुले बैठक में पहुंच कर गांव की समस्या सार्वजनिक होती थी। जिसमें ब्लॉक स्तरीय अधिकारी भी उपस्थित होते थे। गांव में वर्ष में दो खुली बैठकें अनिवार्य रूप से होती थी। एक बैठक रवि तो दूसरी खरीफ फसलों के कटने के समय होती थी। प्रत्येक माह गांव के नियमित सदस्य व अध्यक्ष के साथ बैठक होना अनिवार्य था। लेकिन गांव की खुली बैठक अब कागज पर हो जाती है। जिसके कारण गांव के ग्राम विकास अधिकारी की अब पहचान नहीं हो पाती है।
विकास खंड के शहाबगंज, अरारी, कटवा माफी, मसोई, सारिंग पुर सहित अन्य गांवों में खुली बैठक नहीं हो रही है। मात्र गांव के अभिलेखों में दर्ज कर बैठक हो जाती है। एआइपीएफ राज्य कार्यसमिति सदस्य अजय राय ने बताया कि लगभग गांवों खुली बैठक नहीं की जा रही है। जिससे गांव को कार्य योजना सही तरीके से नहीं बन पा रही है। लगभग सभी प्रधान अपने ढंग से कार्य योजना बना गांव के विकास कार्य कर रहे हैं।
इस सम्बंध में खंड विकास अधिकारी दिनेश सिंह का कहना है कि जांच कराकर आवश्यक कार्यवाही की जाएगी । यदि खुली बैठक नहीं हुई है तो पुनः तिथि निर्धारित कर गांव में खुली बैठक कराई जाएगी।
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