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सावित्रीबाई फुले राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चकिया में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन ​​​​​​​

चकिया स्थित सावित्रीबाई फुले राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में रविवार को उच्च शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित भारतीय ज्ञान परंपरा विज्ञान, समाज और संस्कृति की संपोषिका' विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह का आयोजन रविवार को किया गया।
 

गोष्ठी में जुटे कुलपति सहित कई विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर

भारतीय ज्ञान परंपरा का राष्ट्रीयकरण पर जोर

कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी रहे मौजूद 

 

चंदौली जिला के चकिया स्थित सावित्रीबाई फुले राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में रविवार को उच्च शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित भारतीय ज्ञान परंपरा विज्ञान, समाज और संस्कृति की संपोषिका' विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह का आयोजन रविवार को किया गया।

 समापन सत्र में मुख्य अतिथि प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी कुलपति महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी, विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर दयाशंकर तिवारी संस्कृत विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय एवम् प्रोफेसर अमिता सिंह कुलानुशासक महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी एवम् महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर संगीता सिन्हा द्वारा संयुक्त रुप से मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित करके सम्पन्न किया गया। अतिथियों का स्वागत माल्यार्पण,बैज अलंकरण, अंगवस्त्र और स्मृतिचिन्ह देकर किया गया।

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 कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने अपने उद्धबोधन में कहा कि आज भी हम सभी अपनी परंपरा से जुड़े हैं जिसका निरंतर प्रवाह अपने वैज्ञानिकता के कारण बना हुआ है। लेकिन आज आम आदमी और शास्त्र के बीच खाई बढ़ती जा रही, जिससे हमारी परंपरा आडंबर का स्वरूप लेता जा रहा है। अतः इससे मुक्त होने के लिए भारतीय शास्त्रों में वर्णित ज्ञान को सभी विद्यार्थियों तक विस्तारित करना बहुत जरूरी है। इस कार्य हेतु भारतीय ज्ञान परंपरा का राष्ट्रीयकरण करना आवश्यक है, ताकि ज्ञान आम आदमी को सुलभ हो सके। उन्होंने कहा कि हमारा ज्ञान कौशल एवम् मानवीय मूल्यों पर आधारित रहा है, जिससे जुड़कर वर्तमान पीढ़ी को उन्नति का मार्ग कर प्रशस्त कर सकते हैं।

 कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर दयाशंकर तिवारी ने कहा कि धर्म, ज्ञान का मूल स्रोत है,जिससे विद्या का सृजन होता है। यह विद्या भौतिक और आध्यात्मिक विज्ञान को लोककल्याणी स्वरूप प्रदान किया। यह स्वरूप वेद उपनिषद आरण्यक, अर्थशास्त्र आदि ग्रंथों में वर्णित किया गया है। पाइथोगोरस प्रमेय बौधायन सूत्र,ज्यामितीय रूप यजुर्वेद और संख्या का विकास वेद में, ऐसे ही अनेक ज्ञान अनंत की अवधारणा, वर्षा मापन, वास्तु शास्त्र,औषधि ज्ञान हमारे मूल ग्रंथो में विद्यमान है,जिसका अध्ययन हमारे शोधार्थी और छात्र छात्राओं जरूर ध्यान देना चाहिए।

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 विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर अमिता सिंह ने अपने उद्धबोधन में कहा कि अपनी परंपरा, ज्ञान और संस्कृति की वैज्ञानिकता के माध्यम से जुड़कर ही हम प्राचीन काल में विश्वगुरु के रूप ख्याति प्राप्त किया था। व्याख्यान में वैवाहिक संस्कार की वैज्ञानिकता और उपयोगिता, हमारा परंपरागत समाज ज्ञानवर्धक, समावेशी सोच और वैज्ञानिक स्वरूप पर विस्तार पूर्वक चर्चा प्रदान की।

 कार्यक्रम के छह तकनीक सत्रों में अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर के विद्वतजनों द्वारा अनेक शोध पत्र ऑफलाइन एवम् ऑनलाइन मोड में प्रस्तुत किया, जिससे हमारे श्रोतागण भारतीय ज्ञान परंपरा के विचार, संस्कृति और पद्धति से संबंधित नई जानकारी प्राप्त कर लाभान्वित हुए।      


              
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही प्राचार्या प्रो संगीता सिन्हा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा है कि हम सभी को अपने मूल से जुड़ना अत्यंत आवश्यक है, जिसपर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण धूमिल हुआ है । अतः यह अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी इस धूमिल परत को हटाने में और अपने जड़ों से जुड़ने में जरूर प्रोत्साहित करेगा।

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 समापन समारोह में रमाकांत गौड़, डॉ अमिता सिंह, संतोष कुमार, डॉ सरवन कुमार यादव, डॉ सुरेन्द्र कुमार सिंह ने संपादित किया। कार्यक्रम में डॉ सुबोध थेरो(विजिटिंग, श्री लंका), डॉ बृजेश कुमार सिंह (रिसर्च साइंटिस्ट, लास वेगास )प्रो दयाशंकर तिवारी, प्रो सुनील कुमार तिवारी, प्रो विजय शंकर त्रिवेदी,डॉ कलावती, डॉ प्रियंका पटेल, श्री पवन कुमार सिंह, डॉ संतोष कुमार यादव,डॉ समशेर बहादुर, श्री विश्व प्रकाश शुक्ल एवम् डॉ अंकिता सिंह, श्री देवेन्द्र बहादुर सिंह, श्री राणा प्रताप सिंह, श्री सुरेन्द्र प्रसाद, श्री विपिन शर्मा, श्री श्याम जन्म सोनकर आदि विद्वतजन, सहायक प्रोफेसर, शोधार्थी और अनेक छात्र छात्राएं देश और विदेश से ऑनलाइन एवम् ऑफलाइन मोड़ पर प्रतिभागी के रूप में विद्यमान रहे।

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