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क्या आप जानते हैं चमत्कारी जागेश्वर महादेव मंदिर की खासियत, सावन में जरूर करें दर्शन

जागेश्वर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की गूढ़ और गहराईपूर्ण सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यहां की हर मान्यता, हर कथा और हर बूंद जल भक्तों के दिल में श्रद्धा और भक्ति की लौ को प्रज्वलित करती है।
 

चंदौली के जंगलों में बसा चमत्कारी जागेश्वर महादेव मंदिर

हर साल 'तिल' भर बढ़ता है शिवलिंग

सावन में उमड़ती है आस्थावानों की भीड़

श्रद्धा और रहस्य से भरा है यह शिवधाम

चंदौली सावन का महीना है और शिवभक्तों का उत्साह चरम पर दिख रहा है। भक्तगण कांवड़ लेकर गंगा जल से भोलेनाथ का अभिषेक करने निकलते हैं, तो कहीं शिवालयों में घंटा-घड़ियाल गूंजते हैं। ऐसे ही एक विशेष शिवधाम की चर्चा इन दिनों चंदौली जिले के चकिया तहसील के पहाड़ी इलाके में जोरों पर है—जागेश्वर महादेव मंदिर, जो न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि चमत्कारों और मान्यताओं का अद्भुत संगम भी है।

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 जंगल में चंद्रप्रभा नदी के किनारे बसा है शिवधाम 
चकिया के घने जंगलों के बीच, चंद्रप्रभा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ न तो कोई भव्य प्रवेश द्वार है, न ही राजसी व्यवस्था, लेकिन श्रद्धा का ऐसा प्रवाह है कि हर साल सावन मास में हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर जलाभिषेक और दर्शन-पूजन कर पुण्य अर्जित करते हैं।

हर साल 'तिल' जितना बढ़ता है शिवलिंग
इस मंदिर की सबसे अद्भुत विशेषता यह है कि यहां स्थापित शिवलिंग हर वर्ष ‘तिल’ के आकार भर बढ़ता है। अब तक सात बार शिवलिंग का अर्घा (जलधारी) टूट चुका है, क्योंकि शिवलिंग का आकार उससे बड़ा हो गया। यह तथ्य न केवल वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित करता है, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए यह आस्था का प्रतीक बन चुका है।

पौराणिक मान्यताएं और तपोभूमि
माना जाता है कि यह स्थान महर्षि याज्ञवल्क्य की तपोभूमि रहा है। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे। तब से यह स्थान योगेश्वर महादेव के नाम से जाना गया, लेकिन कालांतर में नाम का अपभ्रंश हुआ और अब यह जागेश्वर महादेव के रूप में विख्यात है। काशीखंड जैसे धार्मिक ग्रंथों में भी इस स्थल का उल्लेख मिलता है।

 कुल्हाड़ी से गिरी और शिवलिंग से निकली खून की धार
एक पुरानी किंवदंती के अनुसार, कभी यहां पीपल का वृक्ष हुआ करता था। काशी नरेश के एक महावत ने उस पेड़ की टहनी हाथी को खिलाने के लिए काटनी चाही, लेकिन कुल्हाड़ी फिसलकर शिवलिंग पर गिर गई। तभी शिवलिंग से खून की धार बह निकली और यह दृश्य देखकर हाथी व महावत दोनों पागल हो गए। आज भी स्थानीय लोग इस कथा को भाव-विभोर होकर सुनाते हैं।

 12 माह बहती है अर्घा से जलधारा
जागेश्वर महादेव के अर्घा से अविरल जलधारा बहती है, जो एक प्राकृतिक कुंड में इकट्ठा होकर पास की चंद्रप्रभा नदी में मिल जाती है। यह जल इतना शुद्ध और पवित्र माना जाता है कि श्रद्धालु इसे पीते हैं, और कई भक्त इसी जल से प्रसाद बनाकर भोजन करते हैं। यह जलधारा साल भर निरंतर बहती रहती है, जिसे लोग भगवान शिव का आशीर्वाद मानते हैं।

सावन में लगता है मेला
सावन के पवित्र महीने में यहाँ विशेष मेला लगता है, जिसमें चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र सहित कई जिलों से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। भक्ति, भजन और भोलेनाथ की जयकारों से जंगल का यह शांत कोना शिवमय हो जाता है।

आस्था, रहस्य और प्रकृति का अद्भुत संगम
जागेश्वर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की गूढ़ और गहराईपूर्ण सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यहां की हर मान्यता, हर कथा और हर बूंद जल भक्तों के दिल में श्रद्धा और भक्ति की लौ को प्रज्वलित करती है।

अगर आप सावन में किसी अनोखे, प्राचीन और चमत्कारी शिवधाम की यात्रा करना चाहते हैं, तो जागेश्वर महादेव, चंदौली आपके लिए एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव हो सकता है।

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