75 साल पुराने आयुर्वेदिक अस्पताल में डॉक्टर नहीं, इलाज के लिए भटक रहे मरीज
दो महीने से डॉक्टर विहीन पड़ा आयुर्वेदिक अस्पताल
डॉ. श्याम सुंदर नीरज के तबादले के बाद ठप हुई सेवा
दूर-दूर से आने वाले मरीज हो रहे मायूस
चंदौली जिले के इलिया के वनांचल क्षेत्र के सरैया-बसाढ़ी स्थित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय में पिछले दो महीने से डॉक्टर न होने के कारण चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई है। यह अस्पताल वर्ष 1949 में आजादी के बाद स्थापित हुआ था और तब से ग्रामीण व आसपास के लोग यहां इलाज के लिए आते रहे हैं, लेकिन वर्तमान में डॉक्टर की अनुपस्थिति से मरीज और उनके तीमारदार मायूस होकर लौट रहे हैं।
डॉक्टर के तबादले के बाद ठप हुई व्यवस्था
जानकारी के अनुसार, दो माह पूर्व यहां तैनात चिकित्साधिकारी डॉ. श्याम सुंदर नीरज का स्थानांतरण कर दिया गया था। उनके जाने के बाद से अस्पताल में किसी डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है। इस समय अस्पताल में केवल एक फार्मासिस्ट, एक आउटसोर्सिंग योग प्रशिक्षक और एक आउटसोर्सिंग कर्मचारी मौजूद हैं, जो बुनियादी सेवाएं तो दे सकते हैं, लेकिन मरीजों का सही इलाज और गंभीर मामलों का उपचार संभव नहीं हो पा रहा है।
दूर-दूर से आते थे मरीज
इस अस्पताल से इलिया क्षेत्र के अलावा छीत्तमपुर, वनभीषमपुर, ताला, तेंदुई, कोल्हुआ, ढोढ़नपुर, मुसाखांड़, बेलावर, उसरी, शाहपुर, रामशाला, अर्जी, ईसापुर, घुरहूपुर, गांधीनगर, बरहुआ, सेंदूपुर, सरैया, बसादी, पालपुर, मनकपड़ा, पड़रिया, सीहर, वनरसिया, बेन, खझरा, मालदह जैसे गांवों के लोग इलाज कराते थे। इसके अलावा मिर्जापुर जिले और बिहार के कैमूर जिले से भी मरीज यहां पहुंचते थे। अस्पताल की लोकेशन बॉर्डर के नजदीक होने के कारण यह कई इलाकों के लिए सुविधाजनक केंद्र था।
अतीत में भी रहा है डॉक्टरों का अभाव
ग्रामीण बताते हैं कि वर्ष 2016 से 2018 तक भी यहां कोई डॉक्टर तैनात नहीं था। लंबी मांग और संघर्ष के बाद डॉ. श्याम सुंदर नीरज की नियुक्ति हुई थी, जिससे इलाज की व्यवस्था पटरी पर आई थी। लेकिन उनके तबादले के बाद एक बार फिर हालात बदतर हो गए हैं।
गरीब तबके पर सबसे ज्यादा असर
इलाके के गरीब और वंचित तबके के लोग सरकारी अस्पताल पर ही निर्भर हैं। डॉक्टर न होने के कारण उन्हें या तो इलाज के बिना घर लौटना पड़ता है या महंगे प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ता है, जो उनकी आर्थिक क्षमता से बाहर है।
ग्रामीणों की पीड़ा
अशोक कुमार गुप्त कहते हैं कि वर्षों पुराना यह अस्पताल डॉक्टर विहीन पड़ा है। स्थाई चिकित्सक की नियुक्ति से ग्रामीणों को राहत मिलेगी।
वकील शेख मंसूरी का कहना है कि यह अस्पताल वनांचल क्षेत्र के लिए वरदान है, लेकिन डॉक्टर न होने से मरीज भटक रहे हैं।
मनोहर केसरी ने कहा कि यहां इलाज के लिए बिहार और मिर्जापुर से भी लोग आते हैं, लेकिन डॉक्टर न मिलने पर मायूस होकर लौट जाते हैं।
नंद कुमार ने कहा कि गरीब मरीजों के लिए सरकारी अस्पताल ही सहारा है, लेकिन डॉक्टर न होने से वे परेशान हैं।
लक्षमण वर्मा का कहना है कि 75 साल पुराने इस अस्पताल में डॉक्टर का न होना चिंता की बात है, जिम्मेदार अधिकारियों को प्राथमिकता के आधार पर नियुक्ति करनी चाहिए।
आयुष मंत्रालय की नीति पर सवाल
प्रदेश सरकार और आयुष मंत्रालय लगातार आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने पर जोर दे रहे हैं। इसके बावजूद आजादी के बाद से स्थापित यह अस्पताल आज डॉक्टर और सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहा है। ग्रामीण सवाल उठा रहे हैं कि जब सरकार आयुर्वेदिक चिकित्सा के विस्तार पर काम कर रही है, तो इतने महत्वपूर्ण अस्पताल को नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है।
ग्रामीणों की मांग
ग्रामीणों ने स्वास्थ्य विभाग और आयुष मंत्रालय से मांग की है कि अस्पताल में जल्द से जल्द स्थाई चिकित्सक की नियुक्ति की जाए। उनका कहना है कि डॉक्टर की नियुक्ति होने से न केवल स्थानीय लोगों को बल्कि आसपास के जिलों और प्रांत के मरीजों को भी राहत मिलेगी।
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