लक्ष्मण और परशुराम का संवाद सुनकर खुश हुए श्रोता, आस्था दुबे ने सुनायी मधुर कथा
परशुराम ने आक्रोश और लक्ष्मण का संवाद
पृथ्वी से क्षत्रियों का सर्वनाश कर चुके थे परशुराम
आस्था दुबे ने सुनाए कई रोचक प्रसंग
चंदौली जिले के शहाबगंज क्षेत्र के अमांव गांव में कर्मनाशा नदी के तट पर बाबा मुरलीधर खेल मैदान में चल रहे नौ दिवसीय संगीतमय रामकथा छठवें दिन क्षेत्रीय विधायक कैलाश खरवार आचार्य ने दीप प्रज्वलित कर कथा का शुभारंभ किया। इस दिन लक्ष्मण और परशुराम के संवाद व उससे जुड़े प्रसंग की कथा सुनायी गयी।
लक्ष्मण व परशुराम के संवाद को मानस नगर पियूषा जबलपुर से पधारी कथा व्यास आस्था दुबे ने संबोधित करते हुए शिव धनुष को तोड़े जाने पर गुस्से में लाल होकर परशुराम ने युद्ध करने की बात तक कर डाली परशुराम की बात सुनने के उपरांत लक्ष्मण मुस्कुराते हुए व्यंगपूर्वक उनसे कहते हैं कि, हमें तो सारे धनुष एक जैसे ही दिखाई देते हैं, किसी में कोई फर्क नजर नहीं आता। फिर इस पुराने धनुष के टूट जाने पर ऐसी क्या नुकसान हो गया, जो आप इतना क्रोधित हो रहे हैं। जब लक्ष्मण परशुराम जी से यह बात कह रहे थे, तब उन्हें श्री राम तिरछी आँखों से चुप रहने का इशारा कर रहे थे। आगे लक्ष्मण कहते हैं, इस धनुष के टूटने में श्री राम का कोई दोष नहीं है, क्योंकि इस धनुष को श्री राम ने केवल छुआ था और यह टूट गया। आप व्यर्थ ही क्रोधित हो रहे हैं।
परशुराम, लक्ष्मण जी की इन व्यंग से भरी बातों को सुनकर और भी ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं। वे अपने फ़रसे की तरफ देखते हुए कहते हैं कि हे मूर्ख लक्ष्मण! लगता है, तुम्हे मेरे बारे में पता नहीं । मैं अभी तक बालक समझकर तुझे क्षमा कर रहा था। परन्तु तू मुझे एक साधारण मुनी समझ बैठा है मैं बचपन से ही ब्रह्मचारी हूँ। सारा संसार मेरे क्रोध को अच्छी तरह से पहचानता है। मैं क्षत्रियों का सबसे बड़ा शत्रु हूँ। अपने बाजुओं के बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का सर्वनाश किया है और इस पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों को दान में दिया है। इसलिए हे राजकुमार लक्ष्मण! मेरे फरसे को तुम ध्यान से देख लो, यही वह फरसा है, जिससे मैंने सहस्त्रबाहु का संहार किया था।
इस दौरान हौसला विश्वकर्मा रिंकू विश्वकर्मा राजू चौहान मिथिलेश कुमार,जितेंद्र वर्मा श्याम सुंदर चौहान सदीक विशाल पाठक करीमन पाठक दशरथ गुप्ता श्याम नारायण चौहान भोनू चौहान सहित भक्त गण शामिल रहे।
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