भगवान राम के वियोग में डूबे अयोध्यावासी: डॉ. कमलाचार्य वेदांती का भावपूर्ण प्रवचन

मसोई गांव के हनुमान मंदिर में सप्तदिवसीय श्रीराम कथा का भव्य समापन
श्रीमद् जगद्गुरु रामानंदाचार्य डॉ. राम कमलाचार्य वेदांती का प्रवचन
चंदौली जिले के शहाबगंज क्षेत्र के मसोई गांव में हनुमान मंदिर परिसर में चल रही सप्त दिवसीय राम कथा में वाराणसी से पधारे श्रीमद् जगतगुरु रामानंदाचार्य काशी पीठाधीश्वर स्वामी डॉक्टर राम कमलाचार्य वेदांती महाराज ने समापन दिवस पर श्री राम कथा के ऊपर प्रवचन करते हुए श्री भरत जी के अद्भुत चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि आज के राजनैतिकज्ञों व समाजसेवियों को भारत जी के चरित्र से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।

भरत जी ने अपने आप की राजा घोषित किए बिना कभी राज सिंहासन पर न बैठने के बावजूद भी ऐसा अद्भुत एवं लोक कल्याणकारी राज्य 14 वर्ष तक चलाया। जिसमें एक भी नागरिक की मृत्यु नहीं हुई और ना ही नए बच्चे का जन्म हुआ क्योंकि भगवान राम के वियोग में डूबे अयोध्या वासी विभिन्न अनुष्ठानों के साथ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते रहे और श्री भरत जी ने अपने राज्य के सभी लोगों को यह विश्वास दिलाया कि श्री राम वनवास काल व्यतीत होने के बाद अवश्य ही अयोध्या लौटेंगे।

इसीलिए भगवान राम के दर्शनों की लालसा रखते हुए सभी अवधवासी जिंदा रहे आज जहां चंदपैसों तथा जमीन के टुकड़ों के लिए भाई-भाई का दुश्मन बन जाता है। वही राम कथा श्री राम तथा भारत जी के ऐसे भ्रातृप्रेम को प्रस्तुत करती है। जिसमें जहां एक ओर श्री राम अपने वनवास व भरत को 14 वर्ष राजा घोषित होने पर हर्षपूर्वक अवध को छोड़कर वनवास को चले जाते हैं । वहीं दूसरी ओर अपने भाई राम के प्रेम में निमग्न श्री भरत जी अयोध्या के समृद्धिशाली राज्य को छोड़कर अपने भैया को मनाने चित्रकूट जाते हैं। श्री भरत जी ने यह कहकर राज्य को ठुकरा दिया कि वस्तुत मेरे पिता राजा दशरथ जी के मन में श्री राम को राजा बनाने की इच्छा थी अतः इनका पुत्र होने के नाते मेरा यह कर्तव्य बनता है कि मैं अपने पिता की इच्छा के अनुरूप चलूँ तथा उनके अंतिमस्वप्न रामराज्य को स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाऊंइसीलिए वे अपने भैया को मनाने चित्रकूट गए किंतु भगवान ने भरत को हृदय से लगाकर शास्त्रों के अनेक उदाहरण देते हुए अपने पूज्य पिता के दिए गए वचनों को पूर्ण करने की बात की दूसरी ओर भगवान श्री राम के अवतार का एक महत्वपूर्ण कारण था।
ऋषि मुनियों देवताओं का संपूर्ण त्रिभुवन को अत्याचारी नचारी रावण के आतंक से मुक्ति दिलाना ऐसे अनेकों कारण भगवान राम जब श्री भारत के विशेष आग्रह करने पर भी नहीं आए और तब श्री भरत जी अपने प्रभु श्री राम से आग्रह करके उनके चरण पादुकाओं को ही लेकर अवधलौटे और धात्री प्रेम का एक अद्भुत तथा आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करके युगों युगों के लिए एक अनुपम में भ्राता प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत किया।
श्रीमद् जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी डॉक्टर राम कमलाचार्य वेदांती जी ने कहा कि वाराणसी तीर्थ की सीमा 84 कोशिका की है और उसके अंतर्गत चकिया चंदौली के क्षेत्र में अवस्थित सभी ग्रामपवित्र तीर्थ हैं यहां के प्रत्येक ग्राम में आध्यात्मिकता से जुड़े ऐतिहासिक चिन्ह प्राप्त किया जा सकते हैं श्रीमद् जगतगुरु जी ने मसोई संकट मोचन हनुमान जी के पास में विद्यमान सरोवर को श्री राम सरोवर धाम के नाम पर घोषित किया। क्षेत्र के सभी लोगों में इस पवित्र तीर्थ स्थान के प्रति श्रद्धा व उत्साह बढ़ा हुआ देखने को मिला।
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