लखन-भरत जैसा पवित्र भाई संसार में नही, आचार्य शान्तनु ने सुनायी मार्मिक कथा
तियरा गांव के महारथपुर के हनुमान मंदिर में कथा
भरत चरित्र की कथा सुनाते हुए बतायी प्रेम की महत्ता
कथा सुनकर भावुक हुए लोग
तीर्थराज प्रयाग ने कहा कि भरत सब विधि साधु हैं। भगवान ने स्वयं कहा कि लखन भरत जैसा पवित्र भाई संसार में नहीं मिल सकता। जनक जी ने सुनयना जी से कहा कि रानी भरत की महिमा राम जानते तो हैं, परंतु वे बता नहीं सकते।
भरत जी की साधना को बताते हुए कहा कि उनकी कठिन साधना को देखकर बड़े बड़े साधु संत भी उनके पास जाने में घबराते थे। स्वयं वसिष्ठ जी भी जाने से कतराते थे।
पिता की मृत्यु अवाम भगवान के वनगमन का समाचार मिलने पर भरत जी विह्वल हो गए और विलाप करने लगे। माता कैकेई को बहुत बुरा भला कहा है। सारी सभा को फटकार लगाई है। कौशल्या जी के समझाने पर भरत जी शांत हुए है और सबको आश्वासन किया है कि हम सबको भगवान से मिलाने ले चलेंगे और पूरी प्रजा भरत जी के साथ भगवान से मिलने चित्रकूट चली जाती है।
जब भरत का भगवान से मिलन हुआ तो भगवान के आदेश से उनकी पादुका शिरोधार्य कर भरत जी अयोध्या वापस आये हैं और उसी पादुका को सिंहासन पर रखकर अयोध्या के राजकाज को संभाला है।
इस कारुणिक प्रसंग को सुनकर सम्पूर्ण जनमानस श्रोता समाज भावविह्वल हो गया। सबकी अश्रुधारा फूट पड़ी है। सम्पूर्ण वातावरण भक्तिमय हो गया। इस दौरान श्याम नारायण उपाध्याय, रमाशंकर पाण्डेय, सतीश कुमार, विवेकानंद, लालव्रत सहित कथा प्रेमी उपस्थित थे।
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