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शहाबगंज क्षेत्र में धूमधाम से मनायी गई रविदास जयंती ​​​​​​​

शहाबगंज क्षेत्र में संत शिरोमणि रविदास जयंती बड़े ही धूमधाम से मनायी गयी। क्षेत्र के विभिन्न दलित बस्तियों में लोगों ने संत रविदास की मूर्ति स्थापित कर भजन-कीर्तन व पूजा किया।
 

चंदौली जिले के शहाबगंज क्षेत्र में संत शिरोमणि रविदास जयंती बड़े ही धूमधाम से मनायी गयी। क्षेत्र के विभिन्न दलित बस्तियों में लोगों ने संत रविदास की मूर्ति स्थापित कर भजन-कीर्तन व पूजा किया। शनिवार को देर शाम से ही दलित बस्तियां गुलजार रहीं। क्षेत्र के तियरा, अताय, बजनपुरवां, शहाबगंज, करनौल, मुरकौल, ठेकहां, सारिंगपुर, ढून्नू एकौना, अमांव, कवलपुरवां, रामपुर, जिगना, खखड़ा, खिलची, बिलासपुर, महड़ौर, रसियां, सलयां सहित आदि गावों में हर्षोल्लास के बीच मनाया गया।

इस दौरान विचार गोष्ठी का आयोजन भी हुआ जहां संत रविदास के  विचार पर प्रकाश डाला गया।इस दौरान बरियारपुर गाँव के बुजुर्ग व दलित चिंतक लालबिहारी शास्त्री ने कहा कि  संत रैदास कर्म तथा स्वभाव दोनों से मानवतावादी थे। वह आज कल के समाज सुधारकों जैसे नहीं थे। उनको अपने प्रचार-प्रसार की लालसा नहीं थी। उन्होंने करुणा,मैत्री, प्रज्ञा,चेतना एवं वैचारिकता द्वारा देश के दीन-हीन अवस्था और भेदभाव को समूल समाप्त करने का सदैव प्रयास किया था उनका समदर्शी भाव, समाज उत्थान, निरीह प्राणियों की सेवा ही उत्कृष्ट मानवता थी। उन्होंने आगे कहा कि संत रैदास जी बचपन से ही सुधारात्मक प्रवृत्ति के थे।मानवतावादी विचारों का प्रचार-प्रसार जीवनपर्यन्त किया।

ravidas jayanti


उन्होंने कहा कि रैदास जी कहते हैं कि जिस समाज में अविद्या है अज्ञानता है,उस समाज का उत्थान सम्भव नहीं है।मानव का स्वाभिमान सुरक्षित नहीं रह सकता है।उन्होंने कहा कि वास्तविक ज्ञान का प्रकाश विद्या से ही प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए सभी मानव को विद्या अर्जन करनी चाहिए। उनका कहना है कि बुद्धि, विचार, विवेक के बिना सभी अन्धे के समान हैं।उन्होंने कहा कि रैदास कई बार बुद्ध की बात को बढ़ाते दिखते हैं। तथागत ने भी तर्क की कसौटी पर परखने की बात कही है और वैचारिक क्रान्ति के प्रणेता रैदास ने कहा मन ही सेऊं सहज स्वरूप तथागत बुद्ध ने धम्मपद की दो गाथाओं में भी यही बात कही, जिसका चित राग द्वेष आदि से निरपेक्ष विरत व स्थिर है, पाप-पुण्य निहित है उस पुरुष के लिए भय नहीं है। सन्तों की सुमिरिनी बौद्धों की स्मृति का ही दूसरा रूप है।


उन्होंने कहा कि क्रान्तिकारी रैदास ने बताया कि सिर मुड़ाने,पूजा करने, कठिन तपस्या करने,योग एवं वैराग्य से इच्छाओं का दमन नहीं होता है।यही बात तथागत बुद्ध ने भी अपने धम्मदेशना में बताई कि माया मोह व तृष्णा में लिप्त मनुष्य की शुद्धि न नंगे रहने से,न जटा रखने से,न कीचड़ लपेटने से,न उपवास करने से,न तपती धूप में सोने से,न धूल लपेटने से और न उकड़ूं बैठने से होती है । कई बार दिखता है कि रैदास ने तथागत बुद्ध से भी जबरदस्त प्रहार किया है। 

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वही पूर्व जिला पंचायत सदस्य रतीश कुमार ने कहा कि सन्त शिरोमणि रैदास कहते हैं कि ‘अरे मन तू अब अमृत देश को चल जहां न मौत है न शौक है और न कोई क्लेश।हे निरंजन निर्विकार मैं आपका जन हूं। लोक और वेद का खण्डन करके आपकी शरण में आया हूं। तथागत बुद्ध ने कहा- अन्धविश्वासों को त्यागो और प्रज्ञा पर आधारित मध्यम मार्ग अपनाओ।इसी तरह क्रान्तिकारी रैदास ने अन्धविश्वासों को त्यागने का आवाह्न किया और तथागत बुद्ध ने सभी दुःखों का और अन्धविश्वासों का कारण अविद्या बताया।

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