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अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर गोष्ठी का आयोजन, सभी क्षेत्रों में उनके योगदान पर की चर्चा

अंबेडकर बचपन से ही सामाजिक भेदभाव और छुआछूत जैसी अमानवीय चीजों को झेलते आए लेकिन कभी हार नहीं मानी। कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।
 

अंबेडकर मूर्तियों में नहीं.. किताबों में

उनको पूजने की नहीं..पढ़ने की जरूरत हैं

कई विचारकों ने रखे अपने अपने विचार

चंदौली जिले के शहाबगंज में बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर की 133वीं जयंती की पूर्व संध्या पर रविवार को ब्लाक मुख्यालय स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्थल पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया,जिसमें उपस्थित लोगों ने उनके तैलीय चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुये उनके  शिक्षा, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, न्यायायिक योगदान पर चर्चा की।

Seminar organized

इस चर्चा के दौरान ग्राम प्रधान बदरूद्वजा अंसारी ने कहा कि आज हम सब यहां एक महान व्यक्तित्व को याद करने के लिए इकट्ठा हुए हैं, जिनका नाम सुनते ही भारत के संविधान, सामाजिक न्याय और समानता की भावना हमारे मन में जाग उठती है। भारत रत्न डॉ. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नगर के एक दलित परिवार हुआ। अंबेडकर बचपन से ही सामाजिक भेदभाव और छुआछूत जैसी अमानवीय चीजों को झेलते आए लेकिन कभी हार नहीं मानी। कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (इंग्लैंड) जैसे बड़े संस्थानों से डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

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उन्होंने आगे कहा कि डॉ. अंबेडकर को भारतीय संविधान का शिल्पकार कहा जाता है। उन्होंने भारत के संविधान की रचना करते समय यह सुनिश्चित किया कि देश के प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति,धर्म,भाषा या वर्ग से हो उसे समानता, न्याय और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो।

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भाकपा माले के जिला सचिव अनिल पासवान ने कहा कि संविधान आज भी हमारा सबसे मजबूत लोकतांत्रिक आधार है।
1956 में डॉ. अंबेडकर ने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया।उन्होंने कहा था 'मैं ऐसा धर्म अपनाऊंगा,जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता हो। उनके इस कदम ने सामाजिक चेतना की एक नई लहर को जन्म दिया।उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर का जीवन सिर्फ शिक्षा या संविधान तक सीमित नहीं था, वह एक सामाजिक क्रांतिकारी थे।उन्होंने जीवनभर छुआछूत, जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लिया।

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समाजसेवी किसान नेता राम अवध सिंह ने कहा कि बाबा साहब ने दलितों,महिलाओं और वंचितों को आत्मसम्मान और अधिकार दिलाने के लिए अनेक आंदोलन चलाए। आज भी जब समाज में असमानता, भेदभाव और अन्याय की खबरें आती हैं,तब हमें डॉ. अंबेडकर की शिक्षाओं को याद करने की जरूरत है। आज हम ये संकल्प ले कि हम शिक्षा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाएंगे। हम समानता और न्याय के लिए हर स्तर पर प्रयासरत रहेंगे। हम जात-पात, ऊंच-नीच की सोच को खत्म करेंगे। उन्होंने आगे की बाबा साहेब की मूर्तियों को क्षति पहुंचाने पर घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि अंबेडकर ने कहा था कि मैं मूर्तियों में नहीं, किताबों में हूँ, मुझे पूजने की नहीं, पढ़ने की जरूरत हैं।

इस अवसर पर प्रधान नित्यानंद खरवार, प्रधान सतीश सिंह चौहान, जितेन्द्र कुमार, निरंजन शर्मा, प्रधान सजाउद्दीन, प्रभु नारायण यादव, त्रिलोकी पासवान, सुराहु राम, चन्द्रमा प्रसाद, बाबूलाल भास्कर, मिथिलेश कुमार, सुरेन्द्र मोदनवाल, सियाराम सियाराम,मराछू, महमूद आलम, विनोद यादव, जितेन्द्र कुमार सहित आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन रतीश कुमार ने किया।

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