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1823 आंगनवाड़ी केंद्रों में केवल दो सौ केन्द्रो में हुई है वाटिका की स्थापना, वाटिका के देखरेख के अभाव में सुख रहे पौधें

आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने के लिए पोषण वाटिका की स्थापना की गई है। यह योजना अपेक्षाओं पर खरा नहीं उत्तर सकी है। इससे सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठ रहें हैं।
 

सरकार की व्यवस्था पर उठ रहें सवाल

देखरेख के अभाव में सूख जा रहें वाटिका के पौधे

1823 आंगनवाड़ी केंद्रों में केवल दो सौ में वाटिका की स्थापना

चंदौली जिले में आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने के लिए पोषण वाटिका की स्थापना की गई है। यह योजना अपेक्षाओं पर खरा नहीं उत्तर सकी है। इससे सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठ रहें हैं। केंद्रों में कहीं जगह का अभाव है तो कहीं वाटिका के पौधे देखरेख के अभाव में सूख जा रहें हैं। 

जनपद के 1823 आंगनवाड़ी केंद्रों में केवल दो सौ में वाटिका की स्थापना की गई है लेकिन इन वाटिकाओं में न तो साग, सब्जी के पौधे हैं और न ही औषधीय पौधों की ही उपलब्धता सुनिश्चित हो पा रही है। ऐसे में वाटिका की स्थापना के नाम पर आंगनबाड़ी केंद्र शासन की मंशा पर पानी फेरते नजर आ रहें हैं।

दरअसल केंद्र सरकार की ओर से 18 मई 2018 को बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण आहार में सुधार लाने और कुपोषण जैसी समस्या के हल के लिए पोषण अभियान की शुरूआत की गई। अभियान का उद्देश्य पौष्टिक तत्वों को उपलब्ध कराना है। इस क्रम में आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण वाटिका स्थापित की गई हैं ताकि वाटिका के माध्यम से फलों, सब्जियों, औषधीय जड़ी बूटियों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।

 वाटिका में हरी सब्जियों को उगाने के साथ ही सहजन के पौधों को रोपित किया जाना है ताकि कुपोषित बच्चों को पोषण युक्त आहार उपलब्ध कराया जा सके लेकिन पौधे नहीं लगाए जा रहें हैं। एक वाटिका पर दस हजार रुपये खर्च किया जा रहा है। जनपद में अब तक दो सौ वाटिका की स्थापना में 20 लाख रुपये खर्च किए जा चुके हैं। 

 जनपद में अधिकांश आंगनबाड़ी केंद्र परिषदीय विद्यालयों के परिसर में ही संचालित हो रहे हैं। विद्यालय परिसर में इंटरलाकिंग कराने के कारण वाटिका के लिए जगह हो नहीं मिल रही। वहीं जो केंद्र अलग से संचालित हो रहे हैं उनके पास वाटिका के लिए भूमि ही नहीं है।

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