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दूरी नहीं सहयोग जरूरी : समझदार बनें-मनोबल बढ़ाएं, कोरोना विजेताओं का साथ निभाएं

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show चंदौली जिला ही नही आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस के दर्द से गुजर रही है। ऐसी परिस्थिति में जहां कोरोना विजेताओं को सकारात्मक सहयोग और व्यवहार मिलना चाहिए वहीँ उनको खिड़की-दरवाजों से देखा जा रहा है, जो किसी भी नजरिये से सही नहीं है। इस संकट के दौर में समाज में रह रहे लोगों को
 
दूरी नहीं सहयोग जरूरी : समझदार बनें-मनोबल बढ़ाएं, कोरोना विजेताओं का साथ निभाएं

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चंदौली जिला ही नही आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस के दर्द से गुजर रही है। ऐसी परिस्थिति में जहां कोरोना विजेताओं को सकारात्मक सहयोग और व्यवहार मिलना चाहिए वहीँ उनको खिड़की-दरवाजों से देखा जा रहा है, जो किसी भी नजरिये से सही नहीं है। इस संकट के दौर में समाज में रह रहे लोगों को कोरोना विजेताओं के प्रति व्यवहार में परिवर्तन लाना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि यह ऐसा वायरस है कि कभी भी–किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है। इसलिए पूरी सावधानी बरतें फिर भी कोई इसकी चपेट में आता है तो उससे उबरने में उसका हौसला बढायें।

जनपद के कोविड-19 नोडल अधिकारी डॉ डीके सिंह ने कहा कि जब भी किसी व्यक्ति को होम कोरेंटाइन किया जाता है। या आइसोलेशन के लिए ले जाया जा रहा होता है। तो उस वक़्त उसकी मनोदशा पर भारी प्रभाव पड़ता है। बहुत से विचार उत्पन्न होते हैं कि कैसे हो गया, क्यों हो गया, लोग क्या कहेंगे, आस-पड़ोस और मुहल्लों में सबको पता चल जायेगा आदि जैसे यह एक संक्रमण नहीं एक गंभीर अपराध हो गया है। इस विचारधारा से सभी को ऊपर उठना होगा और घरों-मुहल्लों मे कहीं भी कोविड-19 प्रभावित लोगों के साथ आत्मीयता सम्मानजनक व्यहार के साथ खड़ा होना होगा।

उन्होने कहा कि पड़ोसियों को कोरोना संक्रमितों की वीडियोग्राफी नहीं बनानी चाहिए जिससे उन्हें आपराध बोध महसूस हो। ऐसी परिस्थिति में उनका साथ देना चाहिए। अपने घर के दरवाजे, बाल्कनी से या छत से आवाज लगाकर, हाथ उठाकर, हाथ हिलाकर उनको ‘गेट वेल सून’ बोलना चाहिए जिससे उनका उत्साह बढ़े और साथ ही बीमारी से लड़ने में हिम्मत मिले।

डॉ डीके सिंह ने कहा कि कोरोना विजेताओं के प्रति व्यवहार परिवर्तन के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा जागरूकता अभियान के अंर्तगत संदेश दिये जा रहे हैं। यदि कोई संक्रमित हो जाता है तो उसको डरने की जरूरत नहीं है। समय पर इलाज होने से पूरी तरह से व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। कोरोना के लक्षण को छुपाने से कई लोग संक्रमित हो जाते हैं। इसी के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग द्वारा घर-घर सर्वे किया जा रहा है।

धनापुर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के प्रभारी चिकित्साधीक्षक डॉ जे पी गुप्ता ने बताया कि डॉक्टर मरीजों से दिन में कई बार बात करते है और उनको हिम्मत भी देते हैं, जिससे उनकी इच्छाशक्ति और मनोबल मजबूत होता है और दिल से बीमारी का डर ख़त्म होता है। मरीज जल्दी स्वस्थ होता है और जब इच्छाशक्ति मज़बूत होती है तो पौष्टिक खाना, नियमित योगा, चिकित्सकों द्वारा दी गई दवा और सुझाव भी जल्दी असर करता है।

यह कहना है कोरोना विजेताओं का…….
ग्राम ढोढ़िया ब्लॉक धनापुर निवासी मैनुद्दीन अंसारी (18) ने कहा कि कुछ दिनों पहले वह मुंबई से आए थे। कमला पति त्रिपाठी जिला संयुक्त चिकित्सालय में उनकी जाँच हुई। रिपोर्ट पॉज़िटिव आने के बाद वह बहुत घबरा गए थे और जब एंबुलेस उन्हें लेने आई तो बहुत अजीब सा लग रहा था। लेकिन इलाज के दौरान दिन में तीन से चार बार डाक्टर राउंड पर आते थे सभी से हालचाल पूंछते रहते थे। कहते थे घबराओ मत बिल्कुल ठीक हो जाओगे। अस्पताल के सभी स्टाफ कर्मचारी भी बहुत सहयोग करते थे और बहुत ध्यान देते थे। जब वह स्वस्थ होकर अस्पताल से घर जाने लगे तो डॉक्टर ने कहा कि 10 दिन तक घर में ही रहना, बाहर मत जाना, गर्म पानी ही पीना, घर में बने पौष्टिक भोजन करने पर ही ध्यान देना, साफ़ सफाई पर विशेष ध्यान देना आदि। उन्होने कहा कि जब वह स्वस्थ होकर घर आए तो आस-पास के लोगों का व्यवहार ठीक नही था। घर से थोड़ी दूरी पर नल है वहाँ से लोगो ने पानी लेने से मना कर दिया था। लेकिन प्रधान के समझाने के बाद सभी को असलियत समझ में आ गयी और सब सामान्य हो गया । उन्होने कहा कि किसी कोरोना पॉज़िटिव को प्लाज्मा देने की जरूरत पड़ी तो वह जरूर देंगे।

ग्राम सकरारी ब्लॉक धनापुर निवासी विशाल (20) की जुलाई के पहले सप्ताह में रिपोर्ट पॉज़िटिव आई। विशाल ने बताया कि घर वाले बहुत घबरा गये थे। 17 दिनों तक वह अस्पताल में रहे। पॉज़िटिव होने की बात जब आस-पड़ोस के लोगों को पता चली तो उन्होने दूरी बनाना शुरू कर दी। ऐसे में सिर्फ घर वालों का ही पूरा सहयोग रहा।

ग्राम अमरा ब्लॉक धनापुर निवासी राजेश चौहान (20) ने बताया की कोरोना की रिपोर्ट पॉज़िटिव आने के बाद उन्हें 14 दिन के लिए स्कूल में रखा गया। लक्षण बहुत कम थे। पॉज़िटिव होने की बात सुनते ही लोग दूर हो गए हैं और बात भी नहीं करना चाहते हैं। उनका कहना है बीमारी हो जाने के बाद उसका सहयोग करना चाहिए न कि उसका तिरस्कार करना चाहिए।

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