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मुहर्रम का पानी से है खास कनेक्शन, अज़ादारों ने किया मातम, सोमवार को निकलेगा दुलदुल का जुलूस

स्वर्गीय डाक्टर अब्दुला मुजफ्फर के अजाखाना-ए-रजा में सातवीं मुहर्रम की मजलिस खिताब फरमाते हुए मौलाना अली कबीर हुसैनी ने पानी को खुदा की सबसे बड़ी नेमत बताया।
 

पानी ख़ुदा की सबसे बड़ी नेमत है, इसका एहतराम करें

मौलाना कबीर हुसैनी ने सबको दी नसीहत

बताया क्या है मुहर्रम का पानी से रिश्ता

क्यों इतना अहम है सबके लिए पानी

चंदौली जिला मुख्यालय पर करबला की शहादत को याद किया गया। शहादत के वक्त इमाम हुसैन ने अपने चाहने वालों से कहा था कि जब कभी ठंडा पानी पीना अपने इमाम की कुर्बानी को याद करना। करबला की जंग में इंसानियत के साथ-साथ हम सबकी जिंदगी में पानी का महत्व भी बताती है। यजीदी फौजों को जब ये लगा कि वो इमाम और उनके बहत्तर साथियों से जीत नहीं सकते तो उन्होंने पानी के एकमात्र स्रोत नहरे फ़रात पर फौजों का कब्जा लगा दिया। इमाम के काफिले में मौजूद छोटे-छोटे बच्चे रेगिस्तान में तीन दिन तक पानी को तरस गए।

Moharram and water

स्वर्गीय डाक्टर अब्दुला मुजफ्फर के अजाखाना-ए-रजा में सातवीं मुहर्रम की मजलिस खिताब फरमाते हुए मौलाना अली कबीर हुसैनी ने पानी को खुदा की सबसे बड़ी नेमत बताया। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में पानी का संकट पैदा हो गया है। इमाम हुसैन ने कहा था कि पानी हमेशा इज्जत करो। रसूले अकरम की भी हदीस है कि पानी पिलाना सबसे बड़ा सवाब का काम है। इसलिए हम सबका फर्ज है कि पानी की किसी भी हाल में न खुद बर्बादी करें न दूसरों को करने दें।  मुहर्रम की सातवीं तारीख को इस्लामी तारीखों में बेहद अहम है क्योंकि इसी दिन से ये तय हो गया था कि यजीद बिना जंग के इमाम हुसैन को करबला से निकलने का रास्ता नहीं देगा। इमाम हुसैन ने अपनी ओर से हर संभव प्रयास किया कि जंग न हो लेकिन यजीद किसी भी हाल में लड़ाई करना चाहता था उसने नहरे फरात पर फौजों का कब्जा बिठा दिया। बच्चे, बूढ़े, जवान बूंद बूंद पानी को तरसने लगे। मौलाना ने इमाम हुसैन ने के भतीजे जनाबे कासिम के मसायब पढ़े। जनाबे के कासिम को करबला के मैदान में बेरहमी से कत्ल करने के बाद उनकी लाश पर हजारों घोड़े दौड़ा दिए गए थे जिसकी वजह इमाम हुसैन को सिर्फ उनके शरीर के टुकड़े मिले।  मौलाना ने इमाम की चार साल की बेटी सकीना और खेमे में मौजूद दूसरे बच्चों के मसायब पढ़े जिन पर इमाम हुसैन के कत्ल के बाद बहुत जुल्म ढाए गए। उन्हें जेल में भूख प्यासा रखा गया।

दुलहीपुर से आई अंजुमन नासेरूल अजा ने अपने पुरखुलूस अंदाज में मसायबी नौहे पढ़े जिसके बाद मजलिस में मौजूद अज़ादार रोने लगे। वहीं बनारस से आई अंजुमन ए सदाए अब्बास नक्खीघाट ने नौहाख्वानों ने इमाम हुसैन की बहन जनाबे जैनब के हवाले से नौहे पढ़े जिसमें इमाम हुसैन के बाद करबला का दर्दनाक मंजर पेश हुआ।

 मातमख्वानी  और सीनाजनी करने वालों में ऐंलहीं सिंकदरपुर, धारा मठना, डिग्घी, बसिला, बिछियां से आई अंजुमनें और अजादार प्रमुख रहे। इस दौरान अरशद जाफरी, सरवर मिर्जापुरी, खुर्रम, शहंशाह, सैयद अली इमाम  दानिश, रियाज अहमद, नौशाद, सफदर हुसैन,  मायल चंदौलवी आदि मौजूद रहे।

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