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मुहर्रम परिवार और दिलों को जोड़ने का नाम है, सत्य और अहिंसा मुहर्रम का मुख्य संदेश

चंदौली और आसपास के कई जिलों की अंजुमनें हिस्सा ले रही हैं। अज़ाखाने के प्रबंधक डा. सैयद गज़न्फर इमाम ने बताया कि मुहर्रम के दस दिनों तक मजलिसों और दौर चलेगा।
 

मौलाना कबीर हुसैनी ने दिया संदेश

अज़ाख़ाना-ए-रज़ा में शुरू हुआ मजलिस का दौर

उमड़ा अज़ादारों का हूजूम

8 मुहर्रम को निकलेगा दुलदुल

दस दिनों तक चले मजलिसों का सिलसिला

चंदौली जिले में मुहर्रम हमें केवल सत्य और अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता। मुहर्रम परिवार और दिलों को जोड़ना भी सिखाता है। इमाम हुसैन ने जुल्म के खिलाफ़ संघर्ष में अपनी बहन, बेटों-बेटियों, भाईयों और दूसरे पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलकर जिस तरह सच्चाई की लड़ाई लड़ी वो अपने आप में एक मिसाल है और यह दर्शाता है कि इंसान के जीवन में परिवार का क्या महत्व है। लखनऊ से आए मौलाना अली कबीर हुसैनी ने मुहर्रम की पहली तारीख को अजाखाना ए रज़ा में मजलिस पढ़ते हुए ये बातें अज़ादारों से कहीं।

मौलाना हुसैनी ने कहा कि  इमाम हुसैन का रास्ता सच का रास्ता था, इमाम चाहते तो करबला की जंग में विजयी होकर अपनी विजय पताका लहराते हुए भी इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपने और अपने बहत्तर साथियों को अहिंसा के रास्ते पर कुर्बान कर दिया। उन्होंने दर्शाया की जंग हथियारों के दम पर नहीं अहिंसा के रास्ते भी जीती जा सकती है।

 इमाम हुसैन की ये बातें आज के संदर्भ में पूरी तरह सच हैं दुनिया को इमाम हुसैन की कुर्बानी से सीख लेनी चाहिए क्योंकि शांति का रास्ता ही नए युग के निर्माण में सहायक हो सकता है। नगर के वार्ड नंबर 14  स्थित स्वर्गीय डा. अब्दुल्ला मुजफ्फर  के अज़ाखाना-ए-रज़ा में प्रतिवर्ष की भांति इस साल भी मुहर्रम बड़े पैमाने पर मनाया जा रहा है।

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 जिसमें चंदौली और आसपास के कई जिलों की अंजुमनें हिस्सा ले रही हैं। अज़ाखाने के प्रबंधक डा. सैयद गज़न्फर इमाम ने बताया कि मुहर्रम के दस दिनों तक मजलिसों और दौर चलेगा।

पांच मुहर्रम को अलम और आठ मुहर्रम को दुलदुल निकलेगा। मुहर्रम के दिनों में रसूल के नवासे इमाम हुसैन को करबला में बादशाह यजीद और उसकी फौजों द्वारा उनके बहत्तर साथियों के साथ शहीद करवा दिया गया था। यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन उसके साथ हाथ मिलाकर उसकी नाजायज़ बातें जनता तक पहुंचाएं लेकिन इमाम हुसैन ने उसकी शर्त मानने से इंकार कर दिया। इमाम हुसैन से नाराज होकर यजीद ने अपनी लाखों फौज़ें उनके और परिवार के पीछे लगा दीं।

 इमाम हुसैन आखिरी वक्त युद्ध टालते रहे और आखिरकार उन्हें करबला के मैदान में शहीद कर दिया। तब से हर वर्ष इमाम हुसैन की कुर्बानी की याद में मुहर्रम मनाया जाता है।

सोमवार को मजलिस के बाद बनारस के नक्खीघाट से आई अंजुमन सदा-ए-अब्बास ने नौहाजनी और मातम किया।  इस दौरान मायल चंदौलवी ने सोजख्वानी की जबकि मशहूर शायर शहंशाह मिर्जापुरी, दानिश कानपुरी समेत कई दूसरे अजादारों ने पेशख्वानी कर इमाम हुसैन को खिराजे अकीदत पेश की।

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