पंचायत भवन पर ताले, कई कंप्यूटर-इंटरनेट केवल प्रधानजी के हवाले
ग्राम पंचायतों में फेल हो रही है शासन की मंशा
गांव में कैसे मिल पाएंगी बेसिक सुविधाएं
पंचायत सहायकों की तैनाती के बाद भी नहीं हो रहा फायदा
पंचायत भवनों में कंप्यूटर और वाई-फाई पर लगा है ग्रहण
सरकार द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर जाति, आय, निवास प्रमाणपत्र, राशन कार्ड, परिवार रजिस्टर की नकल, जन शिकायत निवारण, और आवास योजना जैसी जरूरी सेवाओं को गांव में ही उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षी योजना चंदौली जिले में फेल होती नजर आ रही है। शासन के निर्देशानुसार पंचायत भवनों में कंप्यूटर, वाई-फाई और पंचायत सहायकों की तैनाती की गई थी, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर हालात निराशाजनक हैं।
734 में से आधे पंचायत भवनों के कंप्यूटर प्रधानों के घरों में
जिले की कुल 734 ग्राम पंचायतों में से लगभग 50 प्रतिशत पंचायत भवनों पर ताले लटके हुए हैं। जिन भवनों में सरकार द्वारा कंप्यूटर भेजे गए थे, वे अब कई ग्राम प्रधानों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। इससे पंचायत सहायक न तो सुचारु रूप से काम कर पा रहे हैं, न ही ग्रामीणों को आवश्यक प्रमाणपत्र व सेवाएं मिल रही हैं।
ग्रामीणों को अब मामूली दस्तावेज़ के लिए भी ब्लॉक या तहसील मुख्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इससे न केवल उनका समय और पैसा बर्बाद हो रहा है, बल्कि सरकारी व्यवस्था पर से भरोसा भी टूट रहा है।
कई भवन वर्षों से बंद, कंप्यूटर गायब या खराब
कई पंचायत भवन तो वर्षों से बंद पड़े हैं। कुछ में कंप्यूटर चोरी हो चुके हैं, तो कुछ में बिजली या इंटरनेट की सुविधा तक नहीं है। सबसे दयनीय स्थिति सदर, नियामताबाद और सकलडीहा विकास खंडों की बताई जा रही है, जहां पंचायत भवनों में न ताला खुलता है, न काम होता है। वहीं शहाबगंज विकास खंड के हाटा और बनरसिया पंचायत भवनों में महीनों से ताले लटके हुए हैं। यह सब कुछ प्रशासनिक लापरवाही और निगरानी तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है।
ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा
इन बंद भवनों और निष्क्रिय पंचायत व्यवस्था का खामियाजा आम ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है, जिन्हें सरकारी योजनाओं और मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। शासन की मंशा थी कि गांव में ही सभी सेवाएं उपलब्ध हों, लेकिन नीतियों का क्रियान्वयन धरातल पर दम तोड़ रहा है।
सीडीओ आर. जगत साईं बोले-
जिले के मुख्य विकास अधिकारी आर. जगत साईं कहते है कि पंचायतों पर ये सारी सुविधाएं एक्टिव होनी चाहिए। जहां-जहां शिकायत मिल रही है, वहां-वहां कार्रवाई की जा रही है। इस बारे में जिला पंचायतीराज अधिकारी व बीडीओ को भी निर्देशित किया जाएगा।
प्रशासनिक जवाबदेही पर उठ रहे सवाल
इस लापरवाही ने प्रशासनिक जवाबदेही और ग्राम स्तर पर विकास कार्यों की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह है कि जब पंचायत भवनों का उपयोग ही नहीं हो रहा, तो सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सुविधाएं और संसाधन कहां गए?
अब जरूरत है कि जिला प्रशासन इन मामलों की गंभीरता से जांच करे, पंचायतों की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करे और जवाबदेही तय करते हुए लापरवाह ग्राम प्रधानों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। सरकार की योजनाएं तभी सफल होंगी जब उनका सही और ईमानदार क्रियान्वयन हो। पंचायत भवनों का उद्देश्य सुविधाएं गांव तक पहुंचाना था, लेकिन जब दरवाजे ही बंद हैं, तो लाभ कहां से मिलेगा? अब समय आ गया है कि शासन केवल आदेश न जारी करे, बल्कि निगरानी और जवाबदेही का मजबूत तंत्र भी स्थापित करे।
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