663 नहरों और माइनरों का 856 किलोमीटर लंबा जाल, फिर भी किसान बेहाल…!
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चंदौली जिले के किसानों के लिए तमाम तरह की बातें करने वाले लोग आखिर इस बात पर क्यों नहीं सोचते हैं कि धान का कटोरा कहे जाने वाले जिले में किसान क्यों परेशान है और जिले में कर्मनाशा, चंद्रप्रभा सिस्टम व नरायनपुर लिफ्ट कैनाल से निकली 663 नहरों और माइनरों का 856 किलोमीटर तक जाल फैलने के बाद भी पानी की समस्या क्यों है..?
हर साल सरकारी अफसर व नेता दावा व वायदा करते हैं पर टेल के किसानों की सैकड़ों एकड़ फसल हर साल बेपानी सूख जाती है। नहरों के टेल पर बसे नरवन क्षेत्र के 370 गांवों तक पानी नहीं पहुंच पाता है। इसको लेकर किसान अक्सर हंगामा करते हैं। लेकिन सिचाई संसाधनों को दुरूस्त करने को लेकर शासन-प्रशासन उदासीन है।
21 लाख की आबादी वाले जिले में 1.76 लाख लघु, सीमांत व 11 हजार 500 बड़े किसान हैं। वहीं तकरीबन एक 27 हजार हेक्टेयर भूमि में खरीफ व रबी फसलों की खेती होती है। चावल उत्पादन के मामले में प्रदेश में चंदौली का शाहजहांपुर के बाद दूसरा स्थान है। सालाना करीब पांच लाख एमटी धान और चार लाख मिट्रिक टन गेहूं का उत्पादन होता है।
1951 में पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान जिले को चंद्रप्रभा बांध की नींव पड़ी तो 1962 में मूसाखाड़ बांध की सौगात मिली। दोनों बांधों से निकली लेफ्ट कर्मनाशा व राइट कर्मनाशा के साथ नरायनपुर लिफ्ट कैनाल से निकली मुख्य गंगा नहर की बदौलत ही धान के कटोरे का अधिकांश हिस्सा आबाद है। हालांकि नहरों व माइनरों की मरम्मत व सफाई में लापरवाही बरती जाती है। नियमित सफाई न होने से नहरें झाड़-झंखाड़ से पटी हुई हैं। वहीं कई जगहों पर तटबंध टूटे होने से टेल तक पानी नहीं पहुंचता है। इससे नरवन के किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। रेड़ा के पीक सीजन में सिचाई के अभाव में धान की फसल सूख जाती है।
इसको लेकर किसान कई बार आंदोलन कर चुके हैं। हर बार सिचाई विभाग व प्रशासनिक अधिकारी आश्वासन देकर किसानों को शांत करा देते हैं। लेकिन आज तक समस्या बरकरार है। हेड पर ही कमजोर है नहर मूसाखाड़ बांध से निकली लेफ्ट कर्मनाशा मुख्य नहर हेड पर ही कमजोर है। करीब दो किलोमीटर तक नहर का तटबंध जर्जर है। इसके चलते फुल गेज से नहर संचालित करने पर तटबंध टूट जाता है। बारिश के मौसम में तटबंध की मरम्मत कराना विभाग के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है।
शासन से धनराशि मिलने के बाद तटबंध के कुछ भाग की मरम्मत कराई गई है। लेकिन शेष हिस्सा अभी भी जर्जर है। मूसाखाड़ बांध में सिंचाई के लिए 35 दिनों का पानी शेष है। वर्तमान में धान की नर्सरी डालने के लिए नहरों में पानी छोड़ा गया है।
एक्सईएन, चंद्रप्रभा सुरेशचंद्र आजाद कहा करते हैं कि मूसाखाड़ बांध में 35 दिनों तक नहर चलाने के लिए पानी शेष है। शासन की मंशा के अनुरूप साल में एक बार नहरों व माइनरों की सफाई कराई जाती है। धान की रोपाई के दौरान किसानों को पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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