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बिजली के निजीकरण के विरोध में बड़ा आंदोलन करेगा किसान मोर्चा, 4 जून को जिला मुख्यालयों पर होगा प्रदर्शन

संशोधन के जरिये कार्य बहिष्कार करने पर अधिकारियों - कर्मचारियों को सीधे बर्खास्त करने का प्रावधान करके श्रमिकों के आंदोलन करने, विरोध करने और हड़ताल करने के कानूनी नागरिक अधिकार का हनन किया गया है।
 

संयुक्त किसान मोर्चा ने किया है आंदोलन का ऐलान

किसान संगठन 4 जून को जिला मुख्यालयों पर करेंगे प्रदर्शन

प्रदेश के मुख्यमंत्री के  नाम सौंपेंगे अपना ज्ञापन

कर्मचारियों के कार्य बहिष्कार का किसान संगठनों ने किया है समर्थन 

प्रदेश में बिजली के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारियों के साथ ही अब किसानों ने भी सड़कों पर उतरने का ऐलान कर दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा की राज्य इकाई की बैठक में  उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों ने 29 मई से कर्मचारियों के कार्य बहिष्कार और आंदोलन का समर्थन करने का फैसला लिया है।
   
कहा जा रहा है कि विरोध प्रदर्शन के साथ ही राज्य की बिजली के निजीकरण के फैसले को वापस लेने की मुख्य मांग को लेकर 4 जून को प्रदेश के संयुक्त मोर्चा के सभी घटक किसान संगठन मिलकर जिला मुख्यालयों पर विरोध दर्ज करते हुए मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपेंगे। साथ ही पावर कारपोरेशन द्वारा बिजली दरों में वृद्धि के प्रस्ताव और स्मार्ट मीटर योजना का विरोध किया जाएगा। 

SKM Protest

किसान मोर्चा गांव-कस्बों और शहरी इलाकों में सभी वर्गों और तबकों को निजीकरण के विरोध में लामबंद करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के अलावा पर्चे-पंपलेट के जरिए जनजागरण करेगा। जल्द ही मंडल स्तर पर बिजली के निजीकरण के विरोध में तमाम वर्गों से जनसमर्थन जुटाने के लिए सम्मेलनों-महापंचायतों का ऐलान भी होगा। 
   
बैठक के दौरान किसान नेताओं ने उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन कार्मिक (अनुशासन एवं अपील) विनियमावली में संशोधन किए जाने को सरकार का जनविरोधी कदम बताया। संशोधन के जरिये कार्य बहिष्कार करने पर अधिकारियों - कर्मचारियों को सीधे बर्खास्त करने का प्रावधान करके श्रमिकों के आंदोलन करने, विरोध करने और हड़ताल करने के कानूनी नागरिक अधिकार का हनन किया गया है। किसान संगठनों ने निर्णय लिया कि सूबे का किसान बिजली के निजीकरण का विरोध करेगा, साथ ही हड़ताली कर्मचारियों के किसी भी प्रकार के राजकीय दमन का पुरजोर विरोध करेगा।  

बिजली कर्मचारियों द्वारा कार्य बहिष्कार या हड़ताल के दौरान विद्युत सेवा सुचारू रखने और उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान की ज़िम्मेदारी लेने और सरकारी कामकाजों के बहिष्कार के ऐलान को एसकेएम ने जनपक्षीय कदम बताया। किसान नेताओं का कहना था कि बांध, खंभे, पावर स्टेशन सभी निर्माणों के लिए किसानों ने अपनी जमीनें श्रम दान और आर्थिक सहयोग दिया, कर्मचारियों-श्रमिक ने इस विभाग को बनाने में पसीना बहाया है, फिर सरकार को इसे निजी कंपनियों को सौंपने का कोई हक नहीं है। किसानों-मजदूरों और कर्मचारियों के विरोध के बावजूद आमजन की जरूरत बिजली को निजी हाथों में सौंपने का फैसला सरकार वापस ले, अन्यथा गांव से राजधानी तक किसान - मजदूर विरोध को और तेज करेंगें।

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