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कैसे होगी ईमानदारी से यूपी बोर्ड परीक्षा 2023, ऐसी गड़बड़ी है ढेर सारे परीक्षा केन्द्रों पर

अनेकों परीक्षा केंद्र पर ऐसे केन्द्र व्यवस्थापक नियुक्त किए गए हैं, जिनका वेबसाइट पर कोई रिकार्ड ही नहीं है। जबकि परिषद द्वारा स्पष्ट निर्देश है कि शासकीय सहायता प्राप्त एवं वित्तविहीन विद्यालयों में कार्यरत प्रधानाचार्य ही वहाँ के केन्द्र व्यवस्थापक होंगे।
 

उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा में पलीता लगा रहे बाबू

चंदौली जनपद में बाबुओं के सहारे फल फूल रहा DIOS कार्यालय

नकल माफियाओं से भी सांठगांठ का लगता है आरोप

वैसे तो जिले में कहने को तो उत्तर प्रदेश शासन एवं जिला प्रशासन की मुकम्मल व्यवस्था है। नकलमुक्त परीक्षा संपन्न कराने में परंतु जिलाधिकारी की नाक के नीचे जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के कुछ चिन्हित बाबुओं की कारस्तानियों की वजह से जनपद में परीक्षा की शुचिता पर प्रश्न चिन्ह लगता है, जिसके एक नहीं अनेकों कारण हैं। 

माध्यमिक शिक्षा परिषद की वेबसाइट पर बोर्ड परीक्षा का केन्द्र निर्धारण करने हेतु सभी विद्यालयों द्वारा अपनी आधारभूत संरचना, भौतिक संसाधनों, विद्यालय में कार्यरत कर्मचारियों का विवरण अपलोड किया जाता है एवं जिलाधिकारी द्वारा नामित कमेटी के सदस्यों द्वारा भौतिक सत्यापन किया जाता है। फिर जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा अग्रसारित किया जाता है। माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा केन्द्र व्यवस्थापक नियुक्त करने के गाइडलाइन भी दी जाती हैं, लेकिन उसकी वास्तविक सत्यता कुछ और ही है। 

https://youtu.be/V5lZXRXUl1I

परीक्षा की सुचिता न होने के जो कारण हैं उसमें से कुछ निम्नलिखित हैं....
अनेकों परीक्षा केंद्र पर ऐसे केन्द्र व्यवस्थापक नियुक्त किए गए हैं, जिनका वेबसाइट पर कोई रिकार्ड ही नहीं है। जबकि परिषद द्वारा स्पष्ट निर्देश है कि शासकीय सहायता प्राप्त एवं वित्तविहीन विद्यालयों में कार्यरत प्रधानाचार्य ही वहाँ के केन्द्र व्यवस्थापक होंगे।

अनेक केन्द्रों पर प्रधानाचार्य कोई और हैं तो केन्द्र व्यवस्थापक कोई और
जिले के परीक्षा केन्द्रों की इमानदारी से और दस्तावेजों को देखकर जांच होगी तो कई लोगों के फर्जीवाड़े की पोल खुलेगी। जिले में कई ऐसे केन्द्र भी हैं, जहाँ पर प्रबंधक ही केन्द्र व्यवस्थापक बनाये गए हैं।

ऐसे केन्द्र जहां वेबसाइट पर प्रधानाचार्य कोई और हैं और सहायक अध्यापक को केन्द्र व्यवस्थापक बनाया गया है। ऐसे प्रबंधक भी हैं जो केवल परीक्षा कराने के लिए अपने को वेबसाइट पर प्रधानाचार्य दिखाए हैं और व्यवस्थापक बने हुए हैं।

ऐसे केंद्र भी हैं जहां प्रधानाचार्य के रूप में किसी का वर्णन नहीं है और केन्द्र व्यवस्थापक ऐसा व्यक्ति बना है जिसका अध्यापक संवर्ग में भी नाम नहीं है। ऐसे केन्द्र जो परिषद की वेबसाइट पर अपने सगे संबंधी एवं परिवारजनों को अध्यापक बनाए हैं, सिर्फ परीक्षा को संपन्न कराने के लिए इस तरह का काम करते हैं।

कुछ सहायता प्राप्त शासकीय विद्यालयों को सिर्फ इस बिना पर केंद्र नहीं बनाया है जबकि वहां के प्रबंधक एवं प्रधानाचार्यों पर इनकी मनमानी नहीं चल पाती है और केन्द्र न बनाए जाने का कोई उचित लिखित कारण भी नहीं बताया जाता है। जबकि शासन की प्राथमिकता में शासकीय एवं सहायता प्राप्त विद्यालय को पहले केंद्र बनाया जाना चाहिए।

ऐसे अनेक उदाहरण हैं बताने के लिए है.. परंतु ऐसा नहीं है कि ये सभी चीजें अनजाने में हो गई हैं। पूरा संज्ञान में हुआ है, कार्यालय बाबुओं की मिलीभगत एवं सलाह से सारा गोलमाल किया गया है। उसके लिए दक्षिणा प्रथा सर्वविदित है। 

कुछ विद्यालयों का कोड और वहां की तैनाती के रिकॉर्ड को देखकर अपने आप इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। चाहे तो जिलाधिकारी व जिला विद्यालय निरीक्षक खुद इसकी जांच करवा सकते हैं। 


जिन विद्यालयों में गड़बड़ियों की शिकायत है उनके कोड 1013/1030/1044/1064/1109/1111/ और 1128/1131/1138/1150/1192/1197/1209/1222/1233/1244 बताये जा रहे हैं।

इतना ही नहीं जिले में अतिरिक्त केन्द्र व्यवस्थापक भी नियुक्ति करने में बाबुओं की मनमानी एवं अध्यापकों को परेशान करने की बदनियती रहती है, जिससे पीड़ित अध्यापक कार्यालय का चक्कर लगाने के लिए बाध्य होते हैं। उत्तर का दक्षिण एवं दक्षिण का उत्तर लगा दिया जाता है। जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के ये सारे बाबू सलाह तो ऐसे देते हैं जैसे पूरा शिक्षा विभाग उन्हीं के कंधों पर चल रहा है और ऐसा उनकी मठाधीशी के कारण होता है। 

इनमें से अधिकांश का स्थानांतरण राजकीय विद्यालय में होने के बावजूद जिला विद्यालय निरीक्षक  कार्यालय में ही अटैच रहकर धन उगाही में लिप्त रहते हैं। जबकि उनके पदस्थानी बाबू भी कार्यरत हैं। ऐसा अधिकारियों की मिलीभगत से खुलेआम चल रहा है, जिसके खिलाफ कोई आवाज भी नहीं उठा रहा है।

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