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हरिओम हॉस्पिटल में मनाई गई गुरु पूर्णिमा लोगों को वितरित किया गया यथार्थ गीता

यथार्थ गीता (Yatharth Gita hindi) स्वामी अड़गड़ानंद जी द्वारा लिखी गई है, और 1994 में मुंबई के परमहंस ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित की गई है । यथार्थ गीता में 388 पेज में उपलब्ध हैं।
 

डॉ विवेक ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मरीजों के परिजनों को वितरित किए यथार्थ गीता

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु द्वारा लिखित यथार्थ गीता का वितरण कर गुरु का किया सम्मान

हॉस्पिटल में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु के बताए हुए मार्गों पर चले

चंदौली जिले के जिला मुख्यालय स्थित हरि ओम हॉस्पिटल एवं ट्रामा सेंटर द्वारा गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु के सम्मान में उनके द्वारा लिखित 200 यथार्थ गीता को मरीजों परिजनों एवं लोगों को वितरित कर गुरु की महिमा बताने का कार्य किया गया।

 बता दें कि हरिओमहॉस्पिटल के संचालक डॉक्टर विवेक कुमार सिंह द्वारा हॉस्पिटल परिसर में गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर कार्यक्रम के दौरान क्षेत्र के लोगों एवं हॉस्पिटल के मरीजों की परिजनों को गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु के द्वारा लिखित 200 यथार्थ गीता को वितरित कर उनके महत्व को बताने का कार्य किया और कहा कि कोई भी व्यक्ति बिना गुरु के ज्ञान के आगे नहीं बढ़ सकता जो कि यथार्थ गीता में स्वामी अड़गड़ानंद द्वारा गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है और यथार्थ गीता अपने कर्मों के बारे में बताने का काम किया है ।

Yatharth geeta
वही आपको बता दें कि यथार्थ गीता (Yatharth Gita hindi) स्वामी अड़गड़ानंद जी द्वारा लिखी गई है, और 1994 में मुंबई के परमहंस ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित की गई है । यथार्थ गीता में 388 पेज में उपलब्ध हैं। यथार्थ गीता के पाठकों की सुविधा के लिए सरल भाषा में व्यक्त किया है। यथार्थ गीता को पढ़कर आप भगवद गीता के महत्व को समझ आसान हो सकते हैं।

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भारत की सर्वोच्च श्री काशी विद्वतपरिषद ने दिनांक 1-3-2004 में  “ श्रीमद् भगवद् गीता”,  मनुस्मृति तथा वेदों  आदि को विश्वमानव का धर्मशास्त्र और यथार्थ गीता को परिभाषा के रूप में स्वीकार किया और यह उद्घोषित किया कि धर्म और धर्मशास्त्र अपरिवर्तनशील होने से आदिकाल से धर्मशास्त्र “श्रीमद् भगवद् गीता” ही रही है।

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वही यथार्थ गीता की सूचि में संशय विषाद योग, कर्म पात्रता, शत्रुविनाश प्रेरणा, यज्ञकर्म स्पष्टीकरण, यज्ञभोक्ता महापुरुष महेश्वर, प्रयोगयोग, समग्र जानकारी, अक्षर ब्रह्मयोग, राजविद्या जाग्रति, विभूति विवरण, भक्तियोग, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रय विभाग योग, पुरुषोत्तम योग, दैवासुर सम्पद विभाग योग, सन्यास योग का विशेष वर्णन किया गया है। यह यथार्थ गीता का महत्वपूर्ण अंश माना गया है।

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