मंथरा ने भरे कान, कैकेयी ने मांगे दो वरदान
माता कौशिल्या से आदेश लेते श्री राम जी
कैकेयी को समझाते राजा दशरथ
कैकेयी का कान भरती दासी मंथरा
चंदौली जिले के चहनिया में रामलीला समिति रामगढ़ के तत्वावधान में चल रहे रामलीला के छठवें दिन श्रीराम के वनगमन की लीला का मंचन हुआ, जिसे देखकर दर्शक भावविभोर हो गए।
लीला मंचन में मंथरा-कैकेयी संवाद, कोप भवन में रानी कैकेयी का राजा दशरथ से दो वर मांगना और फिर श्रीराम लक्ष्मण और सीता के वनगमन की लीला में रामगढ़ के कलाकारों का जीवंत अभिनय सराहनीय रहा।
रामलीला शुरू होने से पूर्व गांव के रिटायर्ड फौजी सुभाष सिंह, रामवतार कुशवाहा,सुरेंद्र मौर्य,सारनाथ पांडेय,नागेंद्र सिंह ने भगवान की आरती उतारी।
तत्पश्चात लीला मंचन में राजा दशरथ सभी सभासदों के समक्ष श्रीराम को युवराज पद देने का प्रस्ताव रखते हैं और सभी उस पर अपनी सहमति देते हैं। धूमधाम से राम के राजतिलक की तैयारियां चलती हैं इसी बीच दासी मंथरा जाकर रानी कैकेयी के कान भरती है। तब रानी अपनी दासी मंथरा की बातों में आकर आभूषण आदि त्यागकर कोप भवन में चली जाती हैं। यह समाचार पाकर राजा दशरथ वहां जाते हैं और रानी से इसका कारण पूंछते हैं। रानी कैकेयी तब राजा को पूर्व में दिए गए दो वर मांगने का वचन याद दिलाती हैं।
राम की शपथ दिलाकर राजा से दो वर भरत को राजगद्दी और राम को वनवास मांगती हैं। यह सुनकर राजा हतप्रभ रह जाते हैं और दुखी मन से रानी के सामने अनुनय विनय करते हैं लेकिन रानी की हठ के आगे उनकी एक नहीं चलती। अंतत: वह असहनीय कष्ट के चलते मूर्छित हो जाते हैं। जब यह समाचार राम को मिलता है तो वह अपने पिता की आज्ञा से सहर्ष ही वन जाने को तैयार हो जाते हैं। वहीं सीताजी और लक्ष्मण भी उनके साथ वन जाने की हठ करते हैं। बल्कल वस्त्र धारणकर राम लक्ष्मण और सीता अपने पिता से अनुमति लेने जाते हैं और पुत्र वियोग में राजा दशरथ हृदय विदीर्ण करने वाला विलाप करते हैं। राम अपने पिता के वचन का मान रखने के लिए राजा दशरथ को बिलखता हुआ महल में छोड़कर वन के लिए रवाना होते हैं।
इस दौरान मुख्य रूप से धनञ्जय सिंह,उनेश सिंह,राम अनुज यादव,कौशलेंद्र सिंह,प्रभुनाथ पांडेय,सुधीन्द्र पांडेय,राजकुमार सिंह,राजेश सिंह,ऋषिकेश यादव,अकरम अली,प्रेमलाल श्रीवास्तव ,लुसन सिंह , मुलायम यादव,रामकृपाल सिंह,शैलेन्द्र सिंह,रविन्द्र सिंह,श्यामसदन, रामायन साव दया राम प्रदीप गुप्ता आदि लोग उपस्थित थे ।
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