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आमलकी एकादशी आज, जानिए महत्व, इस दिन काशी में होली का रहस्य और पूजाविधि

आमलकी एकादशी जिसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 मार्च को सुबह 07 बजकर 45 मिनट पर हो रही है।
 

आमलकी एकादशी जिसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 मार्च को सुबह 07 बजकर 45 मिनट पर हो रही है। वहीं तिथि का समापन 10 मार्च को सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर होगा है। ऐसे में 10 मार्च कोआमलकी एकादशी मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को हजारों अश्वमेध यज्ञों और तीर्थयात्राओं के समान पुण्य प्राप्त होता है।


शास्त्रों में आंवले के वृक्ष को पवित्र और दिव्य बताया गया है। पद्म पुराण में वर्णित है कि इस वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु, तने में भगवान शिव, शाखाओं में मुनि, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु और फलों में प्रजापति निवास करते हैं। इस वृक्ष की पूजा करने से सभी देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है। जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करता है, उसे उत्तम स्वास्थ्य, सौभाग्य और सफलता प्राप्त होती है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करना और दान-पुण्य करना विशेष फलदायी माना गया है।  


इस दिन प्रातःकाल घर के पूजा स्थल को स्वच्छ करके भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है। भगवान विष्णु को पीले फूल, चंदन, तुलसी दल और पीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। पूजा के दौरान श्रीहरि को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और विशेष रूप से आंवले के फल का भोग अर्पित किया जाता है। यदि संभव हो तो इस दिन आंवले के वृक्ष के समीप जाकर उसकी पूजा करनी चाहिए। आंवले के वृक्ष के नीचे रंगोली बनाई जाती है और जल से भरा कलश रखा जाता है। इस कलश पर चंदन का लेप लगाया जाता है और उसके ऊपर घी का दीपक जलाया जाता है। आंवले के वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करके भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप किया जाता है। रात्रि में भगवान विष्णु की कथा और भजन-कीर्तन करना शुभ माना जाता है। संपूर्ण दिन उपवास रखकर भगवान का ध्यान किया जाता है।


धार्मिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था और रंगभरी एकादशी के दिन वे काशी में माता पार्वती को गौना कराकर लाए थे। इसी कारण इस दिन को शिव-पार्वती के गृह प्रवेश का पर्व भी कहा जाता है। काशी में इस दिन भगवान विश्वनाथ का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है और श्रद्धालु गुलाल व फूलों से उनका स्वागत करते हैं। माना जाता है कि इस दिन स्वयं भगवान शिव अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं, इसलिए यह एकादशी होली महोत्सव की शुरुआत मानी जाती है। भक्तों के लिए यह दिन शिव भक्ति और आनंद का प्रतीक होता है।

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