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चमत्कारी होता है महामृत्युंजय मंत्र का जाप, जपते समय बरतें ये सावधानियां वरना होगा नुकसान

भगवान शिव का सबसे चमत्कारी मंत्र माना जाता है “महामृत्युंजय मंत्र”। इस मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र भी कहा जाता है। 

 

भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना सबसे अच्छा उपाय होता है। साथ ही कई गंभीर बीमारियों, संकट और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र के जाप को प्रभावशाली बताया गया है। 

भगवान शिव का सबसे चमत्कारी मंत्र माना जाता है “महामृत्युंजय मंत्र”। इस मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र भी कहा जाता है। वहीं ये भी मान्यता है कि महामृत्युंजय के इस चमत्कारी मंत्र का जाप करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। साथ ही ये भी कहते हैं कि इस मंत्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है।

कई धार्मिक ग्रंथों के साथ ही शिवपुराण में भी इस मंत्र के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना सबसे अच्छा उपाय होता है। साथ ही कई गंभीर बीमारियों, संकट और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र के जाप को प्रभावशाली बताया गया है। 

कहते हैं कि जो व्यक्ति नियमित रूप से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता है उसको लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। इसके अलावा व्यक्ति की कुंडली में मौजूद कई ग्रह दोषों को दूर करने लिए भी महामृत्युंजय का जाप उपयोगी होता है। इस शिव मंत्र में इतनी ऊर्जा होती है कि अकाल मृत्यु को भी टाला जा सकता है। यही कारण है कि ज्योतिषी और पंडित बीमार व्यक्तियों को और ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्तियों को महामृत्युंजय मंत्र जप करवाने या करने की सलाह देते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र 

 ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।

इस मंत्र के जाप से प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ 

माना जाता है कि भगवान शिव इस मंत्र के जाप से प्रसन्न होते हैं और जाप करने वाले जातक के सारे संकट दूर करते हैं, उसकी बीमारियां दूर करते हैं और उसे मोक्ष प्राप्ति का वरदान देते हैं। वैसे भी शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का। शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ देता है। शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय के रूप में किया जाता है। इस मंत्र के जप से शिव की कृपा प्राप्त होती है। सतयुग में मूर्ति पूजा कर सकते थे, पर अब कलयोग में सिर्फ मूर्ति पूजन काफी नहीं है। भविष्य पुराण यह बताया गया है कि महामृत्युंजय मंत्र का रोज़ जाप करने से उस व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और लम्बी उम्र मिलती है।

असाध्य रोग से मुक्ति दिलाता है ये मंत्र 

अगर आप किसी भी रोग या बीमारी से ग्रसित हैं तो रोज़ इसका जाप करना शुरू कर दें, लाभ मिलेगा। यदि आपकी कुंडली में किसी भी तरह से मृत्यु दोष या मारकेश है तो इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जप करने से किसी भी तरह की महामारी से बचा जा सकता है साथ ही पारिवारिक कलह, संपत्ति विवाद से भी बाचता है।

shiva mantra

महामृत्युंजय मंत्र जाप का सही समय 

इस मंत्र का जाप वैसे तो जब भी आपको समय मिले आप कर सकते हैं पर इसका एक सही समय भी निर्धारित किया गया है जिससे आपको अधिक लाभ हो सकता है। जी हां, शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जाप करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है लेकिन अगर आप इस वक़्त जाप नहीं कर पाते हैं तो सुबह उठ कर स्नान कर साफ़ कपडे पहनें फिर कम से कम पांच बार रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जाप करें।

बेहद लाभदायी है महामृत्युंजय मंत्र का जाप 

कहते हैं कि स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का लगातार जाप करते रहने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए यदि इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप किया जाए और फिर वह दूध पी लें तो यौवन की सुरक्षा भी होती है। इस चमत्कारी मंत्र का नित्य पाठ करने वाले व्यक्ति पर भगवान शिव की कृपा निरन्तर बरसती रहती है।

-इसके अलावा और भी कई संकटों से मुक्ति दिलाता है इस मंत्र का जाप। जैसे अगर आपको लगातार कार्यों में असफलता मिल रही है तो आप इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। सफलता आपके कदम चूमने लगेगी। 
- वहीं नया घर बनाने पर महामृत्युंजय पाठ का जप करवाना अति शुभ माना गया है। 
- कुंडली में कोई ग्रह दोष के निवारण करने के लिए।
- महामृत्युंजय के जाप से शोक और मृत्यु तुल्य संकट टल जाते हैं।
- कई तरह के भय को समाप्त करने के लिए भी इस मंत्र का जाप किया जाता है। 

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महामृत्युंजय मंत्र के जाप में बरतें ये सावधानियां 

-महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय इसके शब्दों का उच्चारण का महत्व बहुत होता है, इसलिए जाप करते समय उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखें।
-जाप करते समय माला से ही जाप करें क्योंकि संख्याहीन जाप का फल प्राप्त नहीं होता है। प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप पूरा करके ही उठे।  
-अगर आप दूसरे दिन जाप करने जा रहे है तो पहले दिन से कम जाप न करें। अधिक से अधिक कितना भी जाप किया जा सकता है। 
-मंत्र का उच्चारण करते समय  स्वर होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। धीमे स्वर में आऱाम से मंत्र जाप करें। 
-महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करें। 
-जाप करते समय माला को गौमुखी में ढककर रखें।
-जाप से पहले भगवान के समक्ष धूप दीप जलाएं। जाप के दौरान दीपक जलता रहे।
- इस मंत्र का जाप करते समय शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में से कोई एक को अपने पास अवश्य रखें। 
- मंत्र जाप हमेशा कुशा के आसन पर किया जाता है। इसलिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कुशा के आसन पर करें। 
-महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय एवं सभी सभी पूजा-पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर ही रखें। 
-अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर जाप कर रहे हैं तो जल या दूध से अभिषेक करते रहें। 
-जाप के समय उबासी न लें और न ही आलस्य करें। अपना पूरा ध्यान भगवान के चरणों में लगाएं। 
जाप करने के दिनों में पूर्णतया ब्रह्मचार्य का पालन करें।
-जितने दिन जाप करना हो उतने दिनों तक तामसिक चीजों जैसे मांस, मदिरा लहसुन, प्याज या अन्य किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ आदि से दूर रहें। 
-जिस स्थान पर प्रथम दिन जप किया हो प्रतिदिन उसी स्थान पर बैठकर जप करें। 
-जाप के दौरान बीच में किसी से बात न करें। सांसारिक बातों से दूर रहें।  
-यदि स्वयं न कर सके तो किसी पंडित द्वारा कराना चाहिए। इससे सद्बुद्धि, मनःशान्ति, रोग मुक्ति एंव सवर्था सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

ये है इससे जुड़ी पौराणिक कथा 

पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र के उत्पत्ति के बारे में कथा बताई गई है जिसके अनुसार ऋषि मृकण्डु के पुत्र मार्कण्डेय का जीवनकाल मात्र 16 वर्ष था। जब मार्कण्डेय को इस बात का पता चला तो वे शिवलिंग के समाने बैठकर भगवान शिव की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी 16 वर्ष की आयु पूरी होने पर जब यमराज मार्कण्डेय को लेने आए तो उन्होंने शिवलिंग को अपनी बाहों से लपेटकर दया याचना की। यम ने जबरन मार्कण्डेय को शिवलिंग से अलग करने का प्रयत्न किया जिसपर भगवान शिव क्रोधित हो उठे और यम को मृत्यु दण्ड दे दिया। भगवान शिव ने यम को इस शर्त पर जीवित किया कि ये बच्चा हमेशा जीवित रहे। यहीं से इस मंत्र की उत्पत्ति हुई।

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