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इसलिए की जाती है दशहरे के दिन शमी की पूजा, ऐसी है मान्यताएं

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show दशहरा के दिन शमी पूजा का महत्व बहुत अधिक है। यह विजयदशमी दिवस पर किए जाने वाले महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। हिन्दू परंपराओं में दशहरा पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। परंपरागत रूप से शमी पूजा क्षत्रिय और राजाओं द्वारा की जाती थी। आज भी यह परंपरा कायम है। ऐसी मान्यता
 

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दशहरा के दिन शमी पूजा का महत्व बहुत अधिक है। यह विजयदशमी दिवस पर किए जाने वाले महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। हिन्दू परंपराओं में दशहरा पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। परंपरागत रूप से शमी पूजा क्षत्रिय और राजाओं द्वारा की जाती थी। आज भी यह परंपरा कायम है। ऐसी मान्यता है कि इस पूजन से सारी धन संबंधी समस्याएं दूर होती है। लेकिन किसी भी शामी पेड़ जो शहर या शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित है, उसकी पूजा की जा सकती है। शमी पेड़ को कुछ क्षेत्रों में छोंकर पेड़ भी कहा जाता है। यदि शमी का पेड़ नहीं मिले तो पूजा के लिए अशमंतक (अभमन्तक) पेड़ का उपयोग किया जा सकता है। अशमंतक पेड़ को बाहेडा पेड़ भी कहा जाता है। भारत में कुछ दक्षिणी राज्यों में शमी पूजा को बनी पूजा और जमी पूजा भी कहा जाता है।

श्रद्धालु दशहरा की शाम को शमी वृक्ष का पूजन कर उससे आशीर्वाद प्राप्त करते है। इस परंपरा के पीछे शमी वृक्ष का महत्व छुपा है। दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने के बाद जल और अक्षत के साथ वृक्ष की जड़ से सींचना चाहिए। शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्र भी हैं जिनका उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों में भी अमंगलों और दुष्कृत्य का शमन करने, दुस्वप्नों का नाश करने वाली, धन देने वाली, शुभ करने वाली शमी के प्रति पूजा अर्पित करने की बात कही गई है। कहते हैं कि लंका पर विजय पाने के बाद राम ने भी शमी पूजन किया था। शमी के पेड़ की पूजा का महत्व महाभारत के संदर्भ से पता चलता है कि पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे।

संभवतः इन्हीं दो कारणों से शमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई होगी। शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अग्नि प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी के उपकरण बनाए जाते हैं।

शमी मंत्र

अमङ्गलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम् ।।

शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका । धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी ।।

करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया । तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वंभवश्रीरामपूजिते ।।

 

पौराणि‍क मान्यताओं में शमी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है. लंका पर विजयी पाने के बाद श्रीराम ने शमी पूजन किया था. नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का विधान है. गणेश जी और शनिदेव, दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है. वास्तु शास्त्र के मुताबिक, नियमित रूप से शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है.

शमी को वह्निवृक्ष भी कहा जाता है. आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधि मानी गई है. कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं. शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है. सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है. शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है.

शमी के पंचांग, यानी फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है.शमी का वृक्ष घर के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है. इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नि तत्व पाया जाता है.

हर वृक्ष और हर पौधा अपने अंदर एक विशेष गुण रखता है. उसकी आकृति, रंग, सुगंध, फल और फूल अलग-अलग प्रभावों के कारण अलग-अलग ग्रहों से सम्बन्ध रखती है. अगर ग्रहों से सम्बंधित पौधे लगाकर उनका ध्यान रखें तथा पूजा उपासना की जाए, तो विशेष लाभ हो सकता है. शनि से सम्बन्ध रखने वाला पौधे का नाम शमी है. शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए और उसकी पीड़ा से मुक्ति के लिए शमी के पौधे का विशेष प्रयोग होता है.

शमी का संबंध शनि से क्यों है और इसका धार्मिक महत्व क्या है-

– माना जाता है कि श्रीराम ने लंका पर आक्रमण के पूर्व इस पौधे की पूजा की थी.

– पांडवों ने अज्ञातवास में अपने सारे अस्त्र-शस्त्र इसी वृक्ष में छुपाए थे. इसलिए इस पौधे को अद्भुत शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है.

– शमी का पौधा किसी भी स्थिति में जीवित रह सकता है. – अत्यंत शुष्क स्थितियां भी इसको नुकसान नहीं पहुंचा सकती है.

– इसके अंदर छोटे-छोटे कांटे भी पाए जाते हैं, ताकि यह सुरक्षित रहे.

– इसके कठोर गुणों और शांत स्वभाव के कारण इसका संबंध शनि देव से जोड़ा जाता है.

शमी की स्थापना कैसे करें-

– शमी का पौधा विजयादशमी को लगाना सबसे उत्तम होता है.

– शमी को शनिवार के दिन लगा सकते हैं इसे गमले में या भूमि पर घर के मुख्य द्वार के निकट लगाएं, लेकिन इसे घर के अंदर नहीं लगाना चाहिए.

– प्रातःकाल इसमें जल डालें और प्रयास करें कि यह पौधा सूखने न पाएं.

किस प्रकार शमी के पौधे की उपासना करें कि शनि की पीड़ा से मुक्ति मिले-

– घर में लगाएं हुए शमी के पौधे के नीचे हर शनिवार को दीपक जलाएं.

– यह दीपक सरसों के तेल का होना चाहिए. – नियमित रूप से इसकी उपासना से शनि की हर प्रकार की पीड़ा का नाश होता है.

– शमी के पत्ते जितना ज्यादा घने होते हैं, उतनी ही घर में धन-संपत्ति और समृद्धि आएगी.

– अगर शनि के कारण स्वास्थ्य या दुर्घटना की समस्या है, तो शमी की लकड़ी को काले धागे में लपेट कर धारण करें.

– शनि की शान्ति के लिए शमी की लकड़ी पर काले तिल से हवन करें.

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