इस रक्षाबंधन पर है भद्रा का साया, जानिए भद्रा में क्यों नहीं बांधनी चाहिए राखी..?, कैसे हुई भद्रा की उत्पत्ति
पूर्णिमा तिथि को है रक्षाबंधन का पावन पर्व
दोपहर के 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगा भद्रा
जानिए इसकी पौराणिक कथा
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाएगा। रक्षाबंधन का पर्व भाई बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देते हैं। अक्सर देखा गया है कि राखी के इस त्योहार पर भद्रा का साया पड़ जाता है, जिस कारण राखी बांधने का समय कम हो जाता है। दरअसल भद्राकाल में रक्षाबंधन का पर्व मनाना अशुभ माना जाता है। यही कारण है जब भी भद्राकाल पड़ता है बहनें शुभ मुहूर्त पर ही राखी बांधती है। आइए जानते हैं इस बार भद्रा का साया है या नहीं। इसी क्रम में आगे जानते हैं भद्रा कौन थीं और उनका साया अशुभ क्यों है।
इस रक्षाबंधन पर है भद्रा का साया
इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन पूर्णिमा तिथि के प्रारंभ के साथ भद्रा की शुरुआत होगी जो दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा, लेकिन इसका प्रभाव दोपहर के 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इस दौरान रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाएगा। इस कारण इस बार रक्षाबंधन दोपहर बाद मनाया जायेगा।
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
भद्रा के कारण राखी बांधने का मुहूर्त दोपहर में नहीं है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल राखी बांधने का शुभ मुहूर्त दोपहर 01:30 से रात्रि 09:07 तक रहेगा। कुल मिलाकर शुभ मुहूर्त 07 घंटे 37 मिनट का रहेगा
भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्राकाल को एक विशेष समय बताया गया है। इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है। भद्रा का समय विष्टीकरण कहलाता है। माना जाता है कि भद्राकाल के दौरान किए गए कार्य अशुभ होते हैं।
भद्राकाल में नहीं करते शुभ कार्य
हिंदू धर्म में भद्राकाल को अशुभ माना जाता है और मान्यताओं के अनुसार इस दौरान भाई की कलाई पर राखी बांधना जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। दरअसल, भद्रा के दौरान राखी बांधने से भाई-बहन के रिश्ते में तनाव पैदा होता है और उनकी इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं। इसलिए भाई को राखी बांधने का पवित्र कार्य केवल शुभ समय या मुहूर्त में ही करना चाहिए। यही कारण है कि लोग राखी बांधते समय भद्रा काल का विशेष ध्यान रखते हैं और केवल शुभ अवसरों पर ही राखी बांधी जाती है।
जानिए कैसे हुई भद्रा की उत्पत्ति
पुराणों में भद्रा से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया की कन्या और शनिदेव की बहन हैं। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो भद्रा की उत्पत्ति दैत्यों के नाश के लिए सूर्य नारायण और देवी छाया की पुत्री के रूप में गधे(गदर्भ) के मुंह, लंबी पूंछ और तीन पैर युक्त हुई थी। यह काले वर्ण, लंबे केश, बड़े दांत और भयंकर वेश वाली है। जन्म लेते ही भद्रा यज्ञ में विघ्न डालने लगी, मंगल कार्यों में उपद्रव कर सारी सृष्टि को प्रताड़ित करने लगी।
भद्रा के इस दुर्व्यवहार के कारण सूर्य देव को इसके विवाह की चिंता थी, पर कोई भी देवता इसके के लिए राजी नहीं था। इस पर सूर्य नारायण ने ब्रह्माजी से परामर्श मांगा। तब ब्रह्माजी ने विष्टि से कहा कि, भद्रे! तुम बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में निवास करो और जब व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश और मांगलिक कार्य करे तभी विघ्न डालो। जो तुम्हारा आदर न करे, उसका काम बिगाड़ देना। यह उपदेश देकर ब्रह्माजी चले गए और भद्रा देव दानव मानव सभी प्राणियों को कष्ट देते घूमने लगी।
कब रहती है भद्रा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कृष्ण पक्ष की तृतीया, दशमी, शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी, एकादशी के उत्तरार्ध में और कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, सप्तमी और शुक्ल पक्ष की अष्टमी, पूर्णमासी तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है।
भद्रा कब देती है शुभ फल?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिथि के पूर्वार्ध की भद्रा, दिन की भद्रा और तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा रात की भद्रा कहलाती है। यदि दिन की भद्रा रात के समय और रात की भद्रा दिन के समय पड़े तो भद्रा को शुभ मानते हैं। यदि भद्रा में कोई काम करना भी हो तो भद्रा के शुरुआत की पांच घटी यानी मुख की भद्रा का समय जरूर छोड़ देना चाहिए। ज्योतिषियों के अनुसार भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ और 11 घटी हृदय में रहती है, जबकि 4 घटी पुच्छ में रहती है।
भद्रा के दोष और प्रभाव
जब भद्रा मुख में हो तो कार्य का नाश होता है।
जब भद्रा कंठ में रहे तो धन का नाश होता है।
जब भद्रा हृदय में रहे तो प्राण का नाश होता है।
जब भद्रा पूछ में हो तो विजय प्राप्त होती है और कार्य सिद्ध होते हैं।
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