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एक पैर पर खड़े हो गए थे भगवान राम, केवट ने सामने रखी थी ये शर्त

केवट कहता है कि..मैंने आपका मर्म समझ लिया है। प्रभु आपके पैरों की धूल किसी जड़ी बूटी से कम नहीं है। इसलिए आपको नाव पर बैठने से पहले अपने पांव धुलवाने होंगे तभी वह नाव पर चढ़ने देगा।
 

प्रभु श्रीराम के गुणों की जितनी व्याख्या की जाए कम है। वह बचपन से ही शांत स्वभाव के वीर पुरुष थे। भगवान राम ने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया है। इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है।

भगवान राम पुत्र, भाई, राजा और पति हर रूप में पूर्ण दिखाई देते हैं। रामायण में प्रभु श्री राम के सभी संघर्षों का उल्लेख किया गया है। साथ ही अपने वनवास काल में उन्होंने जिन ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की थी उनका भी धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख किया गया है। लेकिन कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जिनका जिक्र ग्रंथों व पुस्तकों में कम किया गया है। लेकिन उन कहानियों से परिचित रहना सभी के लिए जरूरी है। इन्हीं कहानियों में से एक कहानी उस भक्त की जिसके कहने पर भगवान राम एक पैर पर खड़े हो गए थे। आइए उस भक्त के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।

एक पैर पर होना पड़ा खड़ा

हम सभी जानते हैं कि कैकेयी ने राजा दशरथ से वचन मांगा था कि वह उनके बेटे भरत को राजगद्दी पर बिठाए और राम को 14 साल के लिए वनवास भेज दें। जब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ वन गमन के लिए जा रहे थे तब उनकी मुलाकात केवट से हुई। माना जाता है कि केवट का संबंध भोईवंश से था और वह मल्लाह (नदी में नाव चला कर अपनी जीविका अर्जित करने वाला व्यक्ति) का काम किया करता था। वनवास के दौरान केवट ने भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण को नाव में बिठा कर गंगा पार करवाई थी। भगवान राम ने गंगा पार करने के लिए केवट को पुकारते हुए कहा कि.. 'निषाद राज तनिक नाव को किनारे लाएं, पार जाना है।' हालांकि केवट नाव को नहीं लाता और राम जी के सामने एक शर्त रख देता है।

Bhagwan Ram and Kevat

केवट कहता है कि..मैंने आपका मर्म समझ लिया है। प्रभु आपके पैरों की धूल किसी जड़ी बूटी से कम नहीं है। इसलिए आपको नाव पर बैठने से पहले अपने पांव धुलवाने होंगे तभी वह नाव पर चढ़ने देगा। केवट की क्या मंशा है भगवान राम समझ जाते हैं और वह इस बात के लिए तैयार हो जाते हैं। हालांकि, केवट के इस बर्ताव से लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वे अपना धनुष उठा लेते हैं। इस बात पर तब केवट कहता है कि ...मार दें प्रभु। इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा मेरे सामने भगवान राम, माता सीता और गंगा का तट इससे अच्छी मृत्यु मेरे लिए हो ही नहीं सकती है। इससे तो मेरा उद्धार हो जाएगा। केवट की ये बात सुनकर लक्ष्मण का क्रोध शांत हो जाता है।

इस दौरान भगवान राम मुस्कराते हैं और कहते हैं केवट आओ ...मेरे पैर धो लो.. इतना सुनकर केवट की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहता है। वह दौड़कर पैर धोने के लिए कटोरा लेकर आता है। इसके बाद वह कटोरा लाता है और वह प्रभु श्रीराम का एक पैर धोता है। वहीं दूसरा पैर मिट्टी में लिपट जाता है। इस दृश्य को देख केवट बहुत दुखी होता है। केवट का ये दुख देख प्रभु श्रीराम एक पैर पर खड़े हो जाते हैं। एक पैर पर खड़े होने से प्रभु राम की परेशानी देख केवट कहता है कि.. मेरे प्रभु आप कब तक ऐसे एक पैर पर खड़े रहेगें मैं जबतक आपके चरण धोता हूं.. आप मेरे सिर का सहारा ले लीजिए।

ये बात सुनने के बाद प्रभु राम ने केवट के सिर पर हाथ रख दिया। जिसके बाद आसमान से देवों ने पुष्प वर्षा की। भगवान राम के चरण धोने के बाद केवट ने चरणामृत परिजनों और बंधु जनों को पिलाया और बाद में वह भगवान को पार ले गया। आगे जाकर जब उतराई देने का समय आया तो केवट ने प्रभु राम से उतराई लेने से मना कर दिया। उसने कहा कि प्रभु मुझे भवसागर पार करा दें।

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